हिम पर निर्भर प्रजातियाँ | 13 Mar 2020
प्रीलिम्स के लिये:सबनिवियम उपहिम सतह मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन का परिहिमानी जैव पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
चीन की लिनई यूनिवर्सिटी (Linyi University) के शोधकर्त्ताओं के अनुसार, जो प्रजातियाँ अपने अस्तित्व तथा आजीविका के लिये हिम आवरण पर निर्भर रहती हैं, उन प्रजातियों को ग्लोबल वार्मिंग के कारण निकट भविष्य में संकट का सामना करना पड़ सकता है।
मुख्य बिंदु:
- यह अध्ययन नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (National Aeronautics and Space Administration- NASA) और जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (Japan Aerospace Exploration Agency- JAXA) के आँकड़ों पर आधारित है।
- इस अध्ययन में वर्ष 2071-2100 के बीच शीतकालीन हिम आवरण में होने वाले संभावित बदलाव की तुलना वर्ष 1982-2014 के आँकड़ों से की गई है।
- अध्ययन के अनुसार, हिम परत का आधार तल तथा जमे शीर्ष पर हिमावरण के बीच का क्षेत्र जिसे ‘सबनिवियम’ (Subnivium) के रूप में जाना जाता है, को ग्लोबल वार्मिंग से खतरा है।
सबनिवियम (Subnivium):
- यह लैटिन शब्द Nivis अर्थात् हिम तथा Sub अर्थात उप से मिलकर बना है यानी उपहिम सतह।
- सबनिवियम उपहिम सतह का तापमान लगभग 32°F (0°C) पर स्थिर रहता है। हालाँकि तापमान का यह स्तर शीत प्रतीत होता है परंतु इस सतह का तापमान चरम सर्दियों के मौसम में आसपास की वायु के तापमान से 30-40°C अधिक गर्म होता है।
अधिक तापमान का कारण:
- सबनिवियम उपहिम सतह का तापमान हिम की गहराई तथा घनत्व पर निर्भर करता है।
- जब हिम की परतें (एक के ऊपर दूसरी) बहुत दबी हुई रहती हैं तो कठोर हिम सतह का निर्माण करती हैं परंतु जब इन परतों के मध्य अंतराल अधिक होता है तो वायु इन परतों के मध्य कैद हो जाती है तथा यह वायु ऊष्मा की कुचालक होने के कारण इन हिम सतहों को आसपास की वायु की अपेक्षा गर्म रखती है।
- प्रजातियों का संरक्षण:
- सबनिवियम तथा आसपास की वायु के तापांतर के कारण शीतकाल में विभिन्न प्रकार की प्रजातियाँ जैसे- पक्षियों में रफ्ड ग्राउज (Ruffed Grouse), स्तनधारियों में छछूंदर (Shrews) तथा कई घास की प्रजातियाँ सुरक्षा के लिये सबनिवियम उपसतह पर निर्भर रहती हैं।
ताप वृद्धि का सबनिवियम पर प्रभाव:
- सामान्यतया ऐसा माना जाता है कि तापमान वृद्धि या ग्लोबल वार्मिंग का न्यून ताप क्षेत्रों यथा- आर्कटिक क्षेत्र, की प्रजातियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। परंतु सबनिवियम
- उपहिम सतह पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है।
- यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि वर्ष 1970 के बाद से हिमपात की अवधि (वह अवधि जब बारिश की तुलना में हिमपात की संभावना अधिक होती है) कम हो गई है।
- अधिक बारिश के कारण हिम का घनत्व अधिक हो जाता है तथा इसकी इन्सुलेट क्षमता (उष्मारोधी क्रिया से तापमान वृद्धि ) भी कम हो जाती है और सबनिवियम उपसतह का तापमान अधिक होने के स्थान पर कम हो जाता है। इससे इस उपसतह पर निर्भर प्रजातियों की वातावरण के प्रति सुभेद्यता बढ़ जाती है।
संभावित प्रभाव:
हिम आवरण युक्त दिनों की संख्या में कमी:
- वर्ष 1982-2014 के बीच शीत काल के दौरान प्रतिवर्ष 126 दिन हिमपात का समय रहा, जिसके आने वाले समय में इसके 110 दिन होने की संभावना है। सर्वाधिक हिम आवरण में कमी 40- 50 डिग्री अक्षांश के मध्य उत्तरी अमेरिका एवं एशिया में होने की संभावना है।
प्रजातियों की सुभेद्यता में वृद्धि:
- ऐसी प्रजातियाँ जिनका जीवन हिमावरण पर निर्भर रहता है उन्हें हिमपात के दिनों की संख्या कम होने पर जीवित रहने के लिये संकट का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि इन प्रजातियों की शिकारी जानवरों के प्रति सुभेद्यता बढ़ जाएगी।
जैव विविधता में कमी:
- हिमीकरण तथा हिमद्रवन (Freeze and Thaw Cycle- रात्रि में हिम का जमना और दिन में हिम का पिघलना) चक्रों में वृद्धि होने से पौधों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा तथा अधिक शीत मिट्टी से जीवों की विविधता भी प्रभावित होगी और केवल वे प्रजातियाँ जो इन नवीन परिस्थितियों में वातावरण के अनुसार अपने को अनुकूल कर पाएंगी वे ही जीवित रहेंगी।
वैश्विक जैव विविधता का पुनर्वितरण:
- जलवायु परिवर्तन से प्रजातियों के वितरण तथा जैव विविधता प्रतिरूप में व्यापक पैमाने पर बदलाव होने की संभावना है क्योंकि इसका अलग-अलग जलवायु पर विभेदी प्रभाव होता है।
परिहिमानी (स्थायी हिमावरण) क्षेत्रों में मानवीय क्रियाकलापों के कारण कई प्रकार की समस्याएँ पैदा हो गई हैं, अत: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिये इन क्षेत्रों में उपयुक्त भू-तकनीकी एवं इंजीनियरिंग उपायों को अपनाना चाहिये।