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भारतीय अर्थव्यवस्था

वैश्विक तेल कीमतों में गिरावट

  • 09 Sep 2022
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन प्लस (OPEC+), RBI, मुद्रास्फीति, राजकोषीय  

मेन्स के लिये:

तेल की कीमतों में गिरावट और भारत पर इसका प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पिछले दस दिनों में ब्रेंट क्रूड की कीमतों में भारी गिरावट आई है, अर्थात् कीमतें घटकर 90 डॉलर प्रति बैरल से नीचे आ गई हैं।

  • जबकि वे जुलाई, 2022 में करीब 110 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहे थे।

वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का कारण:

  • कच्चे तेल की कीमतों में लगभग 4% की तेज़ी से गिरावट आई है, यह पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OPEC+) द्वारा कीमतों को बढ़ाने के लिये अक्तूबर, 2022 से प्रति दिन 100,000 बैरल की आपूर्ति में कटौती की घोषणा के बावजूद गिरावट आई है।
  • हाल ही में कच्चे तेल की कीमतों में तेज़ गिरावट यूरोप में मंदी और चीन से मांग में गिरावट के कारण हुई है, जो कमज़ोर आर्थिक गतिविधि के दौरान नए कोविड लॉकडाउन उपायों में लाया गया है, जबकि पिछले कुछ महीनों में कीमतों में कमी आई है।
  • इस बात की चिंता है कि ये कारक कच्चे तेल की भविष्य की मांग को प्रभावित कर सकते हैं।
  • बाज़ार सहभागियों के अनुसार, OPEC का उत्पादन में कटौती का फैसला अपने आप में इस बात का संकेत है कि उसे मांग में गिरावट एवं कीमतों में और कमी की उम्मीद है।

वैश्विक कच्चे तेल की कीमत का भारत पर पड़ने वाला प्रभाव :

  • वैश्विक तेल मूल्य में वृद्धि का प्रभाव:
    • भारत अपनी कच्चे तेल की आवश्यकता का लगभग 85% आयात करता है और मार्च 2022 में कीमतों में वृद्धि के कारण तेल आयात बिल दोगुना होकर 119 बिलियन अमेरीकी डॉलर हो गया।
    • आयात बिल में वृद्धि से न केवल मुद्रास्फीति और चालू खाता घाटा तथा राजकोषीय घाटे में वृद्धि होती है, बल्कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमज़ोर होता है और शेयर बाज़ार को प्रभावित करती है।
    • कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि का भारत पर भी अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है क्योंकि इससे खाद्य तेल की कीमतों, कोयले की कीमतों और उर्वरकों की कीमतों में भी वृद्धि होती है क्योंकि वे फीडस्टॉक के रूप में गैस का उपयोग करते हैं। सभी उर्वरक उत्पादन लागतों में गैस का योगदान 80% है।
    • इसलिये यदि कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से आयात का बोझ बहुत बढ़ सकता है, तो इससे अर्थव्यवस्था में मांग में कमी आती है जो विकास को प्रभावित करती है।
    • यदि सरकार सब्सिडी प्रदान करने का विकल्प चुनती है तो इससे राजकोषीय घाटा भी बढ़ सकता है।
  • वैश्विक मूल्य में गिरावट का प्रभाव:
    • कच्चे तेल की कीमतों में कमी सभी हितधारकों सरकार, उपभोक्ताओं और यहाँ तक कि विभिन्न उद्योगों के लिये एक बड़ी राहत है।
    • यदि कच्चे तेल का कम कीमतों पर व्यापार जारी रहता है, तो परिणामस्वरुप निम्न मुद्रास्फीति स्तर, उच्च प्रयोज्य आय और उच्च आर्थिक विकास होगा।
    • यदि एक तरफ यह वैश्विक विकास में मंदी का प्रतिबिंब है जिसका असर भारत के विकास पर भी पड़ सकता है, तो दूसरी तरफ यह भारत के लिये एक बड़ी राहत भी है।
    • कच्चे तेल की कीमतों में कमी ने इक्विटी और ऋण बाज़ारों में सूचकांक वृद्धि में भी एक भूमिका निभाई है क्योंकि सभी क्षेत्रों की कंपनियाँ कच्चे तेल की कीमतों के प्रति संवेदनशील हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष प्रश्न :

प्रश्न: कभी-कभी समाचारों में पाया जाने वाला शब्द 'वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट' निम्नलिखित में से किसे संदर्भित करता है:(2020)

(a) कच्चा तेल
(b) बहुमूल्य धातु
(c) दुर्लभ मृदा तत्त्व
(d) यूरेनियम

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI), जिसे टेक्सास लाइट स्वीट के रूप में भी जाना जाता है, कच्चे तेल का ग्रेड है जिसका उपयोग तेल मूल्य निर्धारण में बेंचमार्क के रूप में किया जाता है।
  • WTI को अपेक्षाकृत कम घनत्व के कारण हल्के कच्चे तेल के रूप में वर्णित किया जाता है, और इसकी कम सल्फर सामग्री के कारण मीठा होता है।
  • यह मुख्य रूप से टेक्सास, लुइसियाना और नॉर्थ डकोटा में अमेरिकी तेल क्षेत्रों से प्राप्त होता है।

अतः विकल्प (a) सही है।


प्रश्न. पेट्रोलियम रिफाइनरियाँ विशेष रूप से कई विकासशील देशों में आवश्यक रूप से कच्चे तेल उत्पादक क्षेत्रों के निकट स्थित नहीं हैं। इसके निहितार्थ स्पष्ट कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2017)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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