लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

भूगोल

जल संकट की स्थिति

  • 24 Jul 2019
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही के वर्षों में भारत के साथ ही वैश्विक परिदृश्यों पर भी जल संकट की समस्याएँ सामने आ रही है।

जल संकट क्या है?

  • एक क्षेत्र के अंतर्गत जल उपयोग की मांगों को पूरा करने हेतु उपलब्ध जल संसाधनों की कमी को ही ‘जल संकट’ कहते हैं।
  • विश्व के सभी महाद्वीप में रहने वाले लगभग 2.8 बिलियन लोग प्रत्येक वर्ष कम-से-कम एक महीने जल संकट से प्रभावित होते हैं। लगभग 1.2 बिलियन से अधिक लोगों के पास पीने हेतु स्वच्छ जल की सुविधा उपलब्धता नहीं होती है।

जल संकट का वैश्विक परिदृश्य

  • जल संसाधनों की बढ़ती मांग, जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या विस्फोट के कारण जल की उपलब्धता में कमी देखी जा रही है।
  • एक अनुमान के अनुसार एशिया का मध्य-पूर्व (Middle-East) क्षेत्र , उत्तरी अफ्रीका के अधिकांश क्षेत्र, पाकिस्तान, तुर्की, अफगानिस्तान और स्पेन आदि देशों में वर्ष 2040 तक अत्यधिक जल तनाव (Water Stress) की स्थिति होने की संभावना है।
  • इसके साथ ही भारत, चीन, दक्षिणी अफ्रीका, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित कई अन्य देशों को भी उच्च जल तनाव का सामना करना पड़ सकता है।

water Stress

भारत में जल संकट की स्थिति:

  • भारत में लगातार दो वर्षों के कमज़ोर मानसून के कारण 330 मिलियन लोग या देश की लगभग एक चौथाई जनसंख्या गंभीर सूखे से प्रभावित हैं। भारत के लगभग 50% क्षेत्र सूखे जैसी स्थिति से जूझ रहे हैं, विशेष रूप से पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में जल संकट की गंभीर स्थिति बनी हुई है।
  • नीति आयोग द्वारा 2018 में जारी समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (Composite Water Management Index) रिपोर्ट के अनुसार, देश के 21 प्रमुख शहर (दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद) और इन शहरों में निवासरत लगभग 100 मिलियन लोग जल संकट की भीषण समस्या से जूझ रहे हैं। भारत की 12% जनसंख्या पहले से ही 'डे ज़ीरो' की परिस्थितियों में रह रही हैं।

डे ज़ीरो: केपटाउन शहर में पानी के उपभोग को सीमित और प्रबंधित करने हेतु सभी लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिये डे ज़ीरो के विचार को पेश किया गया था ताकि जल के उपयोग को सीमित करने संबंधी प्रबंधन और जागरूकता को बढ़ाया जा सके।

भारत में जल संकट का कारण:

  • भारत में जल संकट की समस्याओं को मुख्यता दक्षिणी और उत्तर-पश्चिमी भागों में इंगित किया गया है, इन क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहाँ पर कम वर्षा होती है, चेन्नई तट पर दक्षिण-पश्चिम मानसून से वर्षा नहीं हो पाती है। इसी प्रकार उत्तर-पश्चिम में मानसून पहुँचते-पहुँचते कमज़ोर हो जाता है, जिससे वर्षा की मात्रा भी घट जाती है।
  • भारत में मानसून की अस्थिरता भी जल संकट का बड़ा कारण है। हाल ही के वर्षों में एल-नीनो के प्रभाव के कारण वर्षा कम हुई, जिसके कारण जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई।
  • भारत की कृषि पारिस्थितिकी ऐसी फसलों के अनुकूल है, जिसके उत्पादन में अधिक जल की आवश्यकता होती है, जैसे- चावल, गेहूँ, गन्ना, जूट और कपास इत्यादि। इन फसलों वाले कृषि क्षेत्रों में जल संकट की समस्या विशेष रूप से विद्यमान है। हरियाणा और पंजाब में कृषि गहनता से ही जल संकट की स्थिति उत्पन्न हुई है।
  • भारतीय शहरों में जल संसाधन के पुर्नप्रयोग के गंभीर प्रयास नहीं किये जाते हैं, यही कारण है कि शहरी क्षेत्रों में जल संकट की समस्या चिंताजनक स्थिति में पहुँच गई है। शहरों में ज़्यादातर जल के पुर्नप्रयोग के बजाय उन्हें सीधे किसी नदी में प्रवाहित करा दिया जाता है।
  • लोगों के बीच जल संरक्षण को लेकर जागरूकता का अभाव है। जल का दुरुपयोग लगातार बढ़ता जा रहा हैं; लॉन, गाड़ी की धुलाई, पानी के उपयोग के समय टोंटी खुला छोड़ देना इत्यादि।

जल संरक्षण हेतु प्रयास:

सतत् विकास लक्ष्य 6 के तहत वर्ष 2030 तक सभी लोगों के लिये पानी की उपलब्धता और स्थायी प्रबंधन सुनिश्चित किया जाना है, इस लक्ष्य को पूरा करने के लिये जल संरक्षण के निम्नलिखित प्रयास किये जा रहे हैं:

  • वर्तमान समय में कृषि गहनता के कारण जल के अत्यधिक प्रयोग को कम करने हेतु कम पानी वाली फसलों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • द्वितीय हरित क्रांति में कम जल गहनता वाली फसलों पर ज़ोर दिया जा रहा है।
  • बांधो के माध्यम से जल को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। सरकार द्वारा बांध मरम्मत और पुनर्निर्माण के लिये विश्व बैंक से भी सहयोग लिया जा रहा है।
  • सरकार द्वारा शहरों में भवन निर्माण के दौरान ही जल संभरण कार्यक्रम के तहत पानी के टैंकों के निर्माण के लिये दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं।
  • नीति आयोग ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जल के प्रभावी प्रयोग को प्रेरित करने के लिये समग्र जल प्रबंधन सूचकांक जारी किया है।

आगे की राह:

  • ज़्यादा पानी वाली फसलों जैसे गेहूँ, चावल आदि को मोटे अनाजों से स्थानांतरित किया जाना चाहिये; क्योंकि इन फसलों के प्रयोग से लगभग एक तिहाई पानी को सुरक्षित किया जा सकेगा। साथ ही मोटे अनाजों का पोषण स्तर भी उच्च होता है।
  • कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कम पानी वाली फसलों के उपयोग को बढ़ाया जाना चाहिये। हाल ही के वर्षों में तमिलनाडु सरकार द्वारा ऐसे प्रयास किये गए हैं।
  • जल उपभोग दक्षता को बढ़ाया जाना चाहिये, क्योंकि अभी तक सर्वश्रेष्ठ मामलों में यह 30% से भी कम है।
  • जल संरक्षण हेतु जन जागरूकता अतिआवश्यक है, क्योंकि भारत जैसे देशों की अपेक्षा कम जल उपलब्धता वाले अमेरिका के कुछ क्षेत्रों में अभी तक जल संकट की कोई समस्या उत्पन्न नहीं हुई है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ एवं इंडिया टुडे

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2