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बीएस- 3 वाहनों की बिक्री पर रोक के मायने

  • 01 Apr 2017
  • 6 min read

समाचारों में क्यों ?

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने 1 अप्रैल, 2017 से बीएस-3 (BS-3) इंजन वाली गाड़ियों की बिक्री पर रोक लगा दी है। इसलिये,1 अप्रैल से देश में केवल बीएस-4 (BS-4) इंजन वाली गाड़ियाँ ही बनाई और बेची जाएंगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय देश में प्रदूषण के बढ़ते स्तर को ध्यान में रखते हुए दिया है। गौरतलब है कि वायु प्रदूषण, भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिये चिंता का सबब बना हुआ है, लेकिन पश्चिमी दुनिया के अधिकांश देशों में फैक्ट्रियों से बनकर बाहर आ रहे वाहनों को ‘सख्त उत्सर्जन मानदंड’ (tight emisssion norms) से गुज़रना होता है। ‘इमिशन नॉर्म्स’ को लागू करने के मामले में भारत पहले से ही दुनिया के अन्य देशों से पीछे है क्योंकि अधिकांश देश जहाँ इमिशन नॉर्म्स-6 के स्तर का अनुपालन कर रहे हैं, वहीं भारत में अभी भी बीएस-3 स्तर के वाहनों का प्रयोग हो रहा है।

क्या हैं बीएस नॉर्म्स ?

बीएस का मतलब है ‘भारत स्टेज’ (Bharat stage), इससे वाहनों से होने वाले प्रदूषण का पता चलता है। वायु प्रदूषण फैलाने वाली मोटर गाड़ियों के साथ-साथ इंजन द्वारा संचालित होने वाले सभी उपकरणों के लिये केंद्र सरकार ने वर्ष 2000 में ‘बीएस उत्सर्जन मानकों' (Bharat stage emission standards) की शुरुआत की थी। इसके विभिन्न मानदंडों को समय और मानकों के अनुसार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन) की ओर से लाया जाता है। बीएस नॉर्म्स यूरोपीय नियमों पर आधारित हैं। यद्यपि अलग-अलग देशों में ये मानक अलग-अलग भी हो सकते हैं, जैसे अमेरिका में ये टीयर-1, टीयर-2 के रूप में होते हैं, वहीं यूरोप में इन्हें यूरो मानक के रूप में प्रयोग किया जाता है। 

वस्तुतः बीएस के साथ जो संख्या संलग्न होती है उससे यह पता चलता है कि इंजन कितना प्रदूषण फैलाता है। यानी संख्या जितनी ज़्यादा अधिक उतना कम प्रदूषण। उदाहरण के लिये, बीएस-2 स्तर के वाहन बीएस-3 स्तर के वाहनों से ज़्यादा प्रदूषण फैलाते हैं। गौरतलब है कि अभी तक देश में बीएस-3 इंजन वाले वाहनों को इज़ाज़त थी लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद अब उन पर रोक लगा दी गई है। अब बीएस-4 या उससे अधिक मानक वाले वाहन ही प्रयोग किये जा सकते हैं।

बीएस नॉर्म्स के साथ भारत का प्रयास 

विदित हो कि भारत में पहली बार इमिशन नॉर्म्स का आरम्भ वर्ष 1991 में हुआ था, लेकिन इस प्रकार के नियम केवल पेट्रोल इंजन से चलने वाले वाहनों पर लागू होते थे, लेकिन इन नॉर्म्स के लागू होने के अगले ही वर्ष से डीज़ल इंजन वाले वाहनों को भी इस दायरे में शामिल कर लिया गया। इसके बाद 2005 और 2006 के आसपास, वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिये बीएस-3 मानकों को एनसीआर के साथ-साथ कई अन्य शहरों में शुरू किया गया था। यह कमोबेश यूरोपीय मानकों ‘यूरो-3’ के समान ही था, जिन्हें वर्ष 2000 और 2005 के बीच पश्चिमी देशों में लागू कर दिया गया था।

उल्लेखनीय है कि सम्पूर्ण भारत में बीएस-3 मानकों का अनुपालन वर्ष 2010 में शुरू किया जा सका, वहीं अन्य विकसित देश यूरो-4 (जनवरी 2005), यूरो-5 (सितम्बर 2009) और यूरो-6 (सितंबर 2014) के स्तर तक पहुँच गए हैं।

निष्कर्ष

देश में तेज़ी से बढ़़ रहा प्रदूषण स्तर गंभीर चिंता का विषय है, यह बात गौर करने लायक है कि दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित देशों की सूची में भारत का नाम शामिल है और इस प्रदूषण का एक मुख्य कारण भारत में बड़ी संख्या में वाहनों का होना है। वस्तुतः समय की मांग भी यही है कि वैश्विक स्तर पर प्रदूषण के स्तर को हर संभव तरीके से कम किया जाए। ध्यातव्य है कि भारत ने 1 अप्रैल, 2020 से बीएस-6 नॉर्म्स के अनुपालन की योजना बनाई है, जहाँ इस बात का ज़िक्र किया गया है कि भारत बीएस-5 को नज़र-अंदाज करते हुए, बीएस-4 से सीधे बीएस-6 नॉर्म्स का अनुपालन करेगा। इन सभी बातों को मद्देनज़र रखते हुए बीएस-3 इंजन वाले वाहनों की बिक्री पर लगाया गया यह प्रतिबंध एक स्वागतयोग्य कदम है।

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