साइड पोकेटिंग | 24 Jun 2019
संदर्भ :
साधारण शब्दों में साइड पोकेटिंग का अर्थ उस तंत्र से है जो म्यूचुअल फंड्स को अपनी- अपनी ऋण योजनाओं (Debt Schemes) के अंतर्गत ख़राब परिसंपत्तियों को अलग निवेश सूची में रखने की अनुमति देता है।
- व्यापक तौर पर इस तंत्र की शुरुआत भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (The Securities and Exchange Board of India - SEBI) द्वारा दिसंबर 2018 में की गई थी। ख़राब परिसम्पतियों से संबंधित यह तंत्र मुख्यतः SEBI द्वारा IL&FS की नाकामयाबी के बाद प्रस्तुत किया गया था।
यह कैसे काम करता है?
- पूंजी बाजार नियामकों ने यह निर्धारित किया है कि निवेशकों की यह अलग सूची केवल तभी बनाई जा सकती है जब अपने आरंभिक चरण में ऋण या मुद्रा बाज़ार प्रपत्र (money market instrument) निर्धारित ‘निवेश श्रेणी (Investment Grade)’ से नीचे होता है।
निवेशकों को लाभ :
- साइड पोकेटिंग ख़राब परिसंपत्तियों को अलग सूची में विभाजित कर देता है। जिसके बाद योजना से जुड़े हुए सभी निवेशकों को मुख्य सूची की तरह इस सूची से भी एक समान मात्रा में इकाइयाँ आवंटित कर दी जाती हैं, इस प्रकार कुल पोर्टफोलियो में ख़राब संपत्तियों का असर नहीं पड़ता और पोर्टफोलियो का निवल परिसंपत्ति मूल्य (net asset value) भी बरकरार रहता है।
- इसके अतिरिक्त यदि कभी ख़राब संपत्तियों से मूल्य प्राप्त होता है तो निवेशकों को अपना वो पैसा भी मिल जाता है।
क्या साइड पोकेटिंग का दुरुपयोग संभव है?
- जब साइड पोकेटिंग अस्तित्व में आया था तो विशेषज्ञों का मानना था कि फंड हाउस (Fund Houses) इसका प्रयोग अपने गलत निवेश निर्णयों को छुपाने के लिये कर सकते हैं।
- लेकिन इस संदर्भ में SEBI ने जाँच और संतुलन तंत्र का निर्माण किया है जो समय-समय पर इसके दुरुपयोग की जाँच करता है।
- इसके अतिरिक्त नियामकों मानना है कि सभी फंड हाउस के संरक्षकों को एक ऐसा ढाँचा बनाना होगा जो उन सभी लोगों की आय व प्रोत्साहन राशि को नकारात्मक रूप से प्रभावित करे जो उस निवेश योजना के निर्णय से संबंधित हैं।
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड
- यह एक बाज़ार नियामक तथा भारत में प्रतिभूति और वित्त का नियामक बोर्ड है।
- इसकी स्थापना 1992 के अधिनियम के तहत 12 अप्रैल, 1992 में की गई थी।
- इसका मुख्यालय मुंबई में है तथा नई दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और अहमदाबाद में इसके क्षेत्रीय कार्यालय हैं।
इसके प्रमुख कार्य –
- प्रतिभूति बाज़ार का नियमन करना तथा उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का प्रावधान करना।
- प्रतिभूतियों में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण करना।
- प्रतिभूति बाज़ार के विकास का उन्नयन करना।