अंतर्राष्ट्रीय संबंध
लॉजिस्टिक कौशल तथा गैर-सरकारी आयाम
- 16 Apr 2018
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चर्चा में क्यों?
विश्व बैंक के पास एक लॉजिस्टिक प्रदर्शन सूचकांक (Logistics performance index-LPI) है। लॉजिस्टिक का तात्पर्य अलग-अलग लोगों के लिये अलग-अलग वस्तुओं से है।
- विश्व बैंक लाजिस्टिक्स कार्य निष्पादन सूचकांक की छह उप-सूचियों में नीति नियमन और आपूर्ति श्रृंखला निष्पादन परिणामों का अध्ययन करता है और सभी सूचियों में कार्य निष्पादन के आधार पर देशों का रैंक निर्धारित करता है।
- यह सर्वेक्षण ज़मीनी स्तर पर आपरेटरों की फीडबैक के आधार पर किया जाता है, क्योंकि यही लोग लाजिस्टिक कार्य निष्पादन के पहलुओं का उत्कृष्ट मूल्यांकन कर सकते हैं।
LPI का निर्धारण
- LPI निम्नलिखित छः प्रमुख बिन्दुओं के प्रदर्शन पर आधारित है-
♦ सीमा पर चालान प्रक्रिया (जैसे सीमा शुल्क) की योग्यता।
♦ व्यापार और परिवहन से संबंधित बुनियादी ढाँचे (बन्दरगाह, रेलवे, सड़कें, सूचना प्रौद्योगिकी) की गुणवत्ता।
♦ प्रतिस्पर्द्धात्मक मूल्य वाली नौवहन की व्यवस्था में आसानी।
♦ लॉजिस्टिक सेवाओं की प्रचुरता तथा गुणवत्ता।
♦ भेजे गए माल की खोज और पता लगाने की योग्यता।
♦ नौवहन के गंतव्य स्थान पर पहुँचने की समय रेखा।
- इन 6 बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि हमेशा क्रॉस-कंट्री में आने वाले खतरों की प्रश्नावली के लिये व्यक्तिपरक प्रतिक्रियाएँ की जानी चाहिये। समय के साथ क्रॉस-कंट्री के तुलनात्मक दृष्टिकोण के बजाय एक विशिष्ट देश के सुधार (या गिरावट) को मापने का महत्त्व अधिक है।
- साथ ही, उन सूचना श्रेणियों पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जो दूसरे देशों से संबंधित होने के साथ ही उनके प्रदर्शन पर निर्भर हैं।
- वे कारक जो श्रेणी का निर्धारण करते हैं, अधिक सारगर्भित हैं। कुल मिलाकर अक्सर, ऐसा लगता है कि LPI पूरी तरह से एक सरकार के समान कार्य कर रहा है।
- विश्व बैंक की विस्तृत LPI रिपोर्ट विशिष्ट प्रश्नों वाली एक प्रश्नावली भी उपलब्ध कराती है। यदि हम बंदरगाह शुल्क, हवाई अड्डे के प्रभार, सड़क परिवहन दरों, भंडारण या ट्रांस-लोडिंग सेवा शुल्क, एजेंट की फीस, सड़क परिवहन सेवा प्रदाताओं की गुणवत्ता और वितरण ऑपरेटरों की गुणवत्ता, सीमा शुल्क, दलालों, व्यापार एवं परिवहन से संबंधित संघों, मालवाहक या नौभार प्रेषक की गुणवत्ता, निजी लॉजिस्टिक (logistic) सेवाओं की गुणवत्ता जैसी वस्तुओं पर विचार करें तो पाएंगे कि इनमें से कई G2B (सरकार-से-व्यापार) नहीं बल्कि B2B (व्यापार-से-व्यापार) हैं और सरकार के नियंत्रण तथा नियमन दोनों में अल्प संशोधन योग्य हैं।
आयात एवं निर्यात के संबंध में
- जैसा कि हम जानते हैं कि अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा अब भी अनौपचारिक और असंगठित है। ऐसे में आयात से संबंधित एक प्रश्न पर विचार कीजिये, क्या सीमा शुल्क को आयातित नौवहन के पूर्व आगमन की प्रक्रिया को अनुमति देनी चाहिये?
- निश्चित ही उक्त प्रश्न का उत्तर इस बात पर निर्भर करता है कि वहाँ की स्थितियाँ कैसी हैं? ऐतिहासिक कारणों से निर्यात और आयात दोनों क्षेत्रों (अधिमान्य लाइसेंसिंग और प्रशुल्क) के संबंध में प्रोत्साहन को निर्यात और आयात के भौतिक क़ानूनों से जोड़ा जाता था। इसलिये एक देश के रूप में, हमारे पास बहुत से निर्यातक और आयातक थे। यह उत्तरजीविता का प्रश्न नहीं है क्योंकि अब उत्तरजीविता भौतिक रूप से केवल निर्यात और आयात पर निर्भर नहीं है।
- इसी प्रकार निर्यात के एक प्रश्न पर विचार कीजिये। एक पूर्ण भार की बजाय एक भरे हुए पात्र (container) को भेजने में शामिल लागत और समय कितना होगा? इसका आयाम भी उसी के समान होगा।
- निर्यात के लिये एक नौवहन को विक्रेता की फैक्ट्री के उत्पादन केंद्र से लेकर दूसरे देश में खरीदार के गोदाम तक जाना पड़ता है। यह बंदरगाह से स्थानांतरित होता है लेकिन इसे आंतरिक क्षेत्रों को भी पार करना पड़ता है।
- यही कारण है कि लॉजिस्टिक का मतलब केवल सीमा पर व्यापार से नहीं है। विशेष रूप से भारत जैसे बड़े और विषम देश के लिये जहाँ राज्यों के बीच भिन्नता है, विश्व बैंक का LPI इसे अपूर्ण रूप से ग्रहण कर पाता है।
लॉजिस्टिक सूची (Logistic Index)
- कुछ दिन पहले भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने एक घोषणा की थी कि भारत सरकार राज्यों के लिये मानदंड और रैंक स्थापित करने के लिये एक लॉजिस्टिक सूची तैयार करने की योजना बना रही है। स्पष्ट रूप से यह एक महत्त्वपूर्ण अनुपूरक होगा।
- यदि और अधिक स्पष्ट रूप में बात करें तो क्या आप जानते हैं कि भारत ने 2016 में कैसा प्रदर्शन किया था? आपको बता दें कि भारत का कुल स्कोर 3.42 है (अधिकतम अंक 5 है, और जितना अधिक अंक, उतना बेहतर), इसे 160 देशों में 35वाँ स्थान दिया गया, 2014 में वह 65वें स्थान पर था।
- एक मापक के रूप में, LPI 2007 के बाद से कार्य कर रहा है। 2014 और 2016 के बीच सुधारों में तेज़ी आई है चाहे वह समग्र रूप से हो या छह प्रमुख बिन्दुओं के अंतर्गत।
क्या ऐसे सुधार जारी रहेंगे?
- ऐसा हो सकता है क्योंकि न सिर्फ मल्टी-मॉडल ट्रांसपोर्ट पहल (लॉजिस्टिक में, न कि सिर्फ व्यापार में) की वज़ह से, बल्कि जुलाई 2010 से वाणिज्य विभाग में लॉजिस्टिक्स विभाग के लिये भी लॉजिस्टिक (logistic) का पक्ष काफी महत्वपूर्ण हो गया है।
- निर्यात-आयात प्रक्रियाएँ भी निर्यात प्रोत्साहनों और प्रतिकारी शुल्क जो कि घरेलू अप्रत्यक्ष करों से जुड़े हैं, के कारण जटिल हो गए हैं। यदि घरेलू अप्रत्यक्ष कर पारदर्शी हो जाते हैं, तो इन अनुपालन लागतों में भी गिरावट आती है।
- कहीं-ना-कहीं इस स्तर के नीचे बुनियादी सीमा शुल्क भी सहज हो जाएगा। कम-से-कम G2B या G2C (सरकार से नागरिक) भूमिका पर, सुधार की सिफारिशें और निर्देश स्पष्ट हैं।
- कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट की दर को उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है। भले ही कलकत्ता डॉक लेबर बोर्ड (CDLB) का समूह काम नहीं कर रहा है, और लोडिंग-अनलोडिंग का अन्य अन्य श्रमिकों द्वारा किया जाता है, फिर भी CDLB को शुल्क का भुगतान करना होगा। कई बंदरगाहों की विशेषता ट्रक के संचालन में एकाधिकार या उत्पादन संघ (cartels) होती है। G2B से अलग, प्रवेश और निकास दोनों के लिये एक स्थिति है।