भारतीय विरासत और संस्कृति
शिवकुमार स्वामीगलु
- 03 Apr 2021
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चर्चा में क्यों?
1 अप्रैल, 2021 को शिवकुमार स्वामीगलु (स्वामी जी) की जयंती मनाई गई।
- शिवकुमार स्वामी जी प्रसिद्ध लिंगायत विद्वान, शिक्षक और आध्यात्मिक गुरु थे।
प्रमुख बिंदु:
जन्म:
- उनका जन्म 1 अप्रैल, 1907 को कर्नाटक के रामनगर ज़िले में स्थित वीरापुरा ग्राम में हुआ था।
प्रारंभिक जीवन:
- वह अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे और जन्म के समय उनका नाम शिवन्ना रखा गया था।
- धर्म में उनकी रुचि की शुरुआत बचपन में माता-पिता के साथ धार्मिक केंद्रों में जाने के कारण हुई।
- गाँव से प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद वे माध्यमिक शिक्षा के लिये नागवल्ली चले गए।
- इसके साथ ही वह कुछ समय के लिये सिद्धगंगा मठ में एक निवासी छात्र के रूप में रहे।
- श्री सिद्धगंगा मठ एक प्राचीन आश्रम है जो ‘शिव योगी सिद्ध पुरुषों’ की प्रसिद्धि के लिये जाना जाता है। 15वीं शताब्दी ईस्वी में श्री गोशाला सिद्धेश्वरा स्वामी जी ने इस मठ की स्थापना की थी।
- यह मठ बंगलूरू (कर्नाटक) से 63 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
- वर्ष 1930 में उन्होंने बंगलूरू के सेंट्रल कॉलेज से कला में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वह अंग्रेज़ी, कन्नड़ और संस्कृत भाषा के ज्ञानी थे।
- 1965 में उन्हें कर्नाटक विश्वविद्यालय द्वारा साहित्य की उपाधि से सम्मानित किया गया।
शिवकुमार स्वामीगलु का परिचय:
- वे कर्नाटक में स्थित सिद्धगंगा मठ के प्रमुख तथा लिंगायत समुदाय के व्यक्ति थे। उन्हें लिंगायतवाद के सबसे सम्मानित अनुयायी के रूप में जाना जाता है।
- 3 मार्च,1930 को उन्होंने संत या विरक्त आश्रम के रुप में सिद्धगंगा मठ में प्रवेश किया।
- वे अपने अनुयायियों के बीच ‘नादेदुदेव देवरु'’ अथवा ‘भगवान’ के रूप में जाने जाते थे।
- उन्हें 12वीं शताब्दी के समाज सुधारक, बसवेश्वरा के अवतार के रूप में भी माना जाता था, क्योंकि उन्होंने सभी धर्म या जाति के लोगों को स्वीकार किया।
सामाजिक कार्य
- उन्होंने शिक्षा और प्रशिक्षण के लिये 132 संस्थानों की स्थापना की थी।
- यहाँ बच्चों को मुफ्त आश्रय, भोजन और शिक्षा प्रदान की जाती है।
- मठ में आने वाले श्रद्धालुओं और तीर्थयात्रियों को भी मुफ्त भोजन मिलता है।
- उन्होंने श्री सिद्धगंगा एजुकेशन सोसायटी की स्थापना की।
- स्वामी जी के मार्गदर्शन में स्थानीय लोगों की सहायता के लिये प्रतिवर्ष एक कृषि मेला भी आयोजित किया जाता था।
पुरस्कार
- वर्ष 2007 में उन्हें कर्नाटक रत्न (कर्नाटक में सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार) से सम्मानित किया गया था।
- वर्ष 2015 में पद्म भूषण (भारत में तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार) से सम्मानित किया गया था।
मृत्यु
- उनका निधन 21 जनवरी, 2019 को लगभग 112 वर्ष की आयु में हुआ था।
लिंगायत
- बारहवीं सदी में कर्नाटक में ‘बासवन्ना’ के नेतृत्व में एक धार्मिक आंदोलन चला जिसमें बासवन्ना के अनुयायी ‘लिंगायत’ कहलाए।
- बसवेश्वरा पूर्णतः जाति व्यवस्था और वैदिक अनुष्ठानों के विरुद्ध थे।
- लिंगायत पूर्णतः एकेश्वरवादी होते हैं। वे केवल एक ही ईश्वर ‘लिंग’ (शिव) की पूजा करते हैं।
- ‘लिंग’ शब्द का अर्थ मंदिरों में स्थापित लिंग से नहीं है, बल्कि सार्वभौमिक ऊर्जा (शक्ति) द्वारा प्राप्त सार्वभौमिक चेतना से है।
- वीरशैव तथा लिंगायत को एक ही माना जाता है किंतु लिंगायतों का तर्क है कि वीरशैव का अस्तित्व लिंगायतों से पहले का है तथा वीरशैव मूर्तिपूजक हैं।
- कर्नाटक में लगभग 18 प्रतिशत आबादी लिंगायतों की है। ये लंबे समय से हिंदू धर्म से पृथक् धर्म का दर्जा चाहते हैं।