शैलो वाटर माइनिंग | 16 Sep 2022

प्रिलिम्स के लिये:

डीप-सी माइनिंग, शैलो वाटर माइनिंग, मरीन इकोसिस्टम

मेंस के लिये:

शैलो वाटर माइनिंग और इसके निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शोधकर्त्ताओं के एक समूह ने सुझाव दिया है कि शैलो वाटर माइनिंग जैवविविधता संरक्षण और संधारणीयता लक्ष्यों के विपरीत है, क्योंकि यह गतिविधि गंभीर पर्यावरणीय जोखिम उत्पन्न करती है।

शैलो वाटर माइनिंग क्या है?

  • शैलो वाटर माइनिंग 200 मीटर से कम गहराई पर होटी है और इसे स्थलीय खनन की तुलना में कम विनाशकारी और डीप-वाटर इकोसिस्टम के खनन से कम जोखिमभरा बताया गया है।
  • धातुओं और खनिजों की मांग को पूरा करने के लिये इसे अपेक्षाकृत कम जोखिम वाला तथा कम लागत वाला विकल्प माना जाता है। इसके अलावा, शैलो वाटर माइनिंग के लिये तकनीक पहले से मौजूद है।
  • नामीबिया और इंडोनेशिया में उथले-जल खनन परियोजनाएँ पहले से ही चल रही हैं तथा मेक्सिको, न्यूज़ीलैंड एवं स्वीडन में ये परियोजनाएँ प्रस्तावित की गई हैं।

निष्कर्ष क्या हैं?

  • बारे में:
    • शैलो वाटर माइनिंग डीप-सी माइनिंग के लिये संधारणीय विकल्प नहीं है।
      • समुद्र का वह भाग जो 200 मीटर की गहराई से नीचे स्थित है, डीप-सी के रूप में परिभाषित किया गया है और इस क्षेत्र से खनिज निकालने की प्रक्रिया को डीप-सी माइनिंग के रूप में जाना जाता है।
    • शैलो वाटर के समुद्र तल से धातुओं की खनन प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में तलछट को हटाने की आवश्यकता होती है।
    • इन तलछटों जिसे जमा होने में हजारों साल लगते हैं, को हटाने का मतलब उन जीवों जिनका यहाँ निवास, को खतरे में डालना है।
  • प्रभाव:
    • चूँकि उथले-जल के पारिस्थितिक तंत्र पहले से ही प्रदूषण के कारण संवेदनशील हैं और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, यहाँ तक कि छोटे पैमाने पर खनन गतिविधियाँ भी समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को विशेष रूप से स्थानीय पैमाने पर प्रभावित कर सकती हैं।
    • खनिज खनन आवासों को परिवर्तित कर देता है और साथ ही स्थानीय जैवविविधता के नुकसान एवं प्रजातियों के समुदायों में परिवर्तन का कारण बनता है।
    • खनन के अप्रत्यक्ष प्रभाव जैसे कि समुद्री तल अवसाद का प्रसार और समुद्री तल से निकलने वाले हानिकारक पदार्थ समुद्री पर्यावरण की स्थिति को असंतुलित करने में योगदान करते हैं।
    • उथले-जल खनन के समग्र पर्यावरणीय प्रभाव उन परिचालनों के समान हैं जहाँ समुद्री तल की खुदाई की जाती है, जैसे ड्रेजिंग। इसका मतलब है कि पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित होने में दशकों लग सकते हैं।

सुझाव:

  • उथले-जल खनन गतिविधियों को "धातुओं की बढ़ती वैश्विक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये सिल्वर बुलेट" नहीं माना जाना चाहिये, जब तक कि पर्यावरणीय और सामाजिक आर्थिक प्रभावों की पूरी तरह से जाँच न हो जाए।
  • इस जानकारी के बिना कोई भी गहरे समुद्र में जैवविविधता, पारिस्थितिकी तंत्र और मानव कल्याण के लिये खनन गतिविधि के संभावित जोखिमों को नहीं समझ सकता है।
  • उथले समुद्री क्षेत्रों में खनन के लिये एहतियाती सिद्धांत लागू किया जाना चाहिये। उनका मानना है कि संचालन की अनुमति तब तक नहीं दी जानी चाहिये जब तक कि उसके जोखिम का पूरी तरह से आकलन नहीं हो जाता।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. वैश्विक महासागर आयोग अंतर्राष्ट्रीय जल में समुद्र तल की खोज और खनन के लिये लाइसेंस प्रदान करता है।
  2. भारत को अंतर्राष्ट्रीय जल में समुद्र तल खनिज अन्वेषण के लिये लाइसेंस प्राप्त हुआ है।
  3. 'दुर्लभ मृदा खनिज' अंतर्राष्ट्रीय समुद्र जल तल पर मौजूद हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • वैश्विक महासागर आयोग, वर्ष 2013 से 2016 के मध्य जागरूकता बढ़ाने समुद्र के क्षरण को दूर करने के लिये कार्रवाई को बढ़ावा देने एवं इसके पूर्ण रूप से स्वस्थ और उत्पादकता में मदद करने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय पहल थी।
  • इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) संयुक्त राष्ट्र का एक निकाय है, जो अंतर्राष्ट्रीय जल में महासागरों के समुद्री गैर-जीवित संसाधनों की खोज और दोहन को विनियमित करने के लिये स्थापित किया गया है। यह गहन समुद्री संसाधनों की खोज एवं दोहन पर विचार करता है, जो पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करता है तथा खनन गतिविधियों की निगरानी करता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • भारत, वर्ष 1987 में 'पायनियर इन्वेस्टर' का दर्जा प्राप्त करने वाला पहला देश था और नोड्यूल की खोज के लिये भारत को मध्य हिंद महासागर बेसिन (CIOB) में लगभग 5 लाख वर्ग किमी के क्षेत्र पर अनुमति प्रदान की गई थी। मध्य हिंद महासागर बेसिन में समुद्र तल से पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स की खोज करने के लिये भारत के विशेष अधिकारों को वर्ष 2017 में पाँच वर्षों के लिये बढ़ा दिया गया था। अत: कथन 2 सही है।
  • दुर्लभ मृदा खनिजों में अद्वितीय चुंबकीय, ल्यूमिनसेंट और विद्युत रासायनिक गुण होते हैं और इस प्रकार उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर एवं नेटवर्क, संचार, स्वास्थ्य देखभाल, राष्ट्रीय रक्षा आदि सहित कई आधुनिक तकनीकों में उपयोग किया जाता है। इन्हें 'दुर्लभ मृदा खनिज' कहा जाता है तथा पूर्व में तकनीकी रूप से आक्साइड रूपों में इसका निष्कर्षण एक कठिन कार्य था।
  • दुर्लभ मृदा खनिज अंतर्राष्ट्रीय जल में समुद्र तल पर मौजूद हैं। विभिन्न महासागरों के समुद्र तल में दुर्लभ-पृथ्वी खनिजों का दुनिया का सबसे बड़ा अप्रयुक्त संग्रह है। अत: कथन 3 सही है।

अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ