जैव विविधता और पर्यावरण
ऊपरी और गहन पारिस्थितिकीवाद
- 13 May 2022
- 11 min read
चर्चा में क्यों?
जैसा कि भारत लगातार गर्मी की लहरों (लू) से जूझ रहा है, ऐसे में पर्यावरण दर्शन के दो पहलुओं (ऊपरीऔर गहन पारिस्थितिकीवाद) जो प्रकृति और मनुष्य के बीच संबंधों को पुनः स्थापित करते हैं, पर विचार करना प्रासंगिक हो जाता है।
प्रमुख बिंदु
पारिस्थितिकी:
- पारिस्थितिकी (Ecology) मानव सहित जीवित जीवों और उनके भौतिक वातावरण के बीच संबंधों का अध्ययन है।
- यह पौधों, जंतुओं और उनके आसपास के वातावरण के बीच महत्त्वपूर्ण संबंधों को समझने का प्रयास करता है।
- यह पारिस्थितिक तंत्र के लाभों के बारे में भी जानकारी प्रदान करता है तथा पृथ्वी के संसाधनों का उपयोग किस प्रकार किया जाए जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिये एक स्वस्थ्य पर्यावरण निर्मित हो सके, इस बारे में जानकारी प्रदान करता है।
ऊपरी और गहन पारिस्थितिकीवाद:
- पृष्ठभूमि:
- ऊपरी और गहन पारिस्थितिकीवाद की अवधारणाएँ 1970 के दशक में उभरीं, जब नॉर्वेजियन दार्शनिक अर्ने नेस (Arne Næss) ने पर्यावरणीय क्षरण को संबोधित करने हेतु अपने परिवेश के लोकप्रिय प्रदूषण और संरक्षण आंदोलनों से परे देखने की मांग की।
- पारिस्थितिक चिंताओं से संबंधित अपने अध्ययन में अर्ने नेस प्रकृति में व्यक्ति की भूमिका के साथ संबंधों को व्यस्त है। उनका मानना है कि मानव-केंद्रितता बढ़ने के कारण मनुष्यों ने प्रकृति से खुद को अलग कर लिया है, अर्ने नेस प्रकृति और खुद को प्रतिस्पर्द्धी संस्थाओं के रूप में देख रहे हैं तथा एक मास्टर स्लेव डायनामिक (Master-Slave Dynamic) को स्थापित कर रहे हैं।
- अर्ने नेस द्वारा पर्यावरण संकट के केंद्र में मनुष्य को रखकर पारिस्थितिकीवाद की दो शैलियों के बीच के अंतर को रेखांकित किया गया है।
- ऊपरी पारिस्थितिकीवाद:
- ऊपरी पारिस्थितिकी (Shallow Ecology) दार्शनिक या राजनीतिक स्थिति को संदर्भित करती है कि पर्यावरण संरक्षण का केवल उस सीमा तक अभ्यास किया जाना चाहिये जो मानव हितों को पूरा करता है।
- यह आमूल-चूल परिवर्तन के बजाय प्रदूषण और संसाधनों की कमी के खिलाफ एक शक्तिशाली एवं व्यावहारिक युद्ध की तरह है।
- इस दर्शन के प्रतिपादक हमारी वर्तमान जीवन शैली को जारी रखने में विश्वास करते हैं, लेकिन पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करने के उद्देश्य से विशिष्ट बदलाव के साथ।
- इसे कमज़ोर पारिस्थितिकीवाद के रूप में भी जाना जाता है, इसमें ऐसे वाहनों का उपयोग शामिल हो सकता है जो कम प्रदूषण करते हैं या एयर कंडीशनर जो क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs) का उत्सर्जन नहीं करते हैं।
- पारिस्थितिकी की यह शाखा मुख्य रूप से विकसित देशों में रहने वालों की जीवनशैली को बनाए रखने का कार्य करती है।
- गहन पारिस्थितिकीवाद:
- गहन पारिस्थितिकीवाद के अनुसार, मनुष्य को प्रकृति के साथ अपने संबंधों को मौलिक रूप से परिवर्तित करना चाहिये।
- इसके समर्थकों ने जीवन के अन्य रूपों से ऊपर मनुष्यों को प्राथमिकता देने के लिये ऊपरी पारिस्थितिकीवाद को अस्वीकार कर दिया और बाद में आधुनिक समाजों में पर्यावरणीय रूप से विनाशकारी जीवनशैली का संरक्षण किया।
- यह मानता है कि ऐसी जीवनशैली की निरंतरता, ऊपरी पारिस्थितिकीवाद के देशों के बीच असमानताओं को और बढ़ाती है।
- उदाहरण के लिये दुनिया की आबादी का केवल 5% होने के बावजूद अमेरिका दुनिया की ऊर्जा खपत के 17% का अकेले उपभोग करता है,और चीन के बाद यह देश बिजली का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
- जबकि निम्न व मध्यम आय वाले देशों ने पिछली दो शताब्दियों में संचयी और प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन कम किया है, वहीं अमेरिका सबसे अमीर देश है ,जो अधिकांश कार्बन उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार है।
गहन पारिस्थितिकीवाद का उद्देश्य:
- यह हमारी जीवनशैली में बड़े पैमाने पर बदलाव करके प्रकृति को बनाए रखने की इच्छा व्यक्त करता है।
- इनमें वन क्षेत्रों को संरक्षित करने के लिये मांस के व्यावसायिक उत्पादन को सीमित करना और जानवरों में कृत्रिम तरीके से वसा को बढ़ाने की प्रक्रिया पर रोक लगाना भी शामिल है।
- परिवहन प्रणालियों को पुन: आकार देना जिसमें आंतरिक दहन इंजनों का उपयोग भी शामिल है।
- जीवनशैली में बदलाव करने के अलावा यह गहन पारिस्थितिकी प्रदूषण और संरक्षण कर मज़बूत नीति निर्माण एवं कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करती है।
- अर्ने नेस के अनुसार, नीति-निर्माण को तकनीकी कौशल और आविष्कारों के पुनर्विन्यास द्वारा नई दिशाओं में सहायता प्रदान की जानी चाहिये जो पारिस्थितिक रूप से ज़िम्मेदार हैं।
- नेस की अनुशंसा के अनुसार, पारिस्थितिकीविदों को सीमित पारिस्थितिक दृष्टिकोण वाले अधिकारियों द्वारा किये जाने वाले पर्यवेक्षण कार्य को अस्वीकार कर देना चाहिये और उन्हें ऐसी सत्ता के सामने नहीं झुकना चाहिये जो महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक प्राथमिकताओं को मान्यता नहीं देती है।
- इसके अतिरिक्त विभिन्न जीवन रूपों की जटिल समृद्धि को पहचानने के लिये गहन पारिस्थितिकीवाद 'योग्यतम की उत्तरजीविता' सिद्धांत के पुनर्मूल्यांकन की मांग करता है।
- इनका मानना है कि योग्यतम की उत्तरजीविता को प्रकृति के साथ सहयोग करने और सहअस्तित्व की मानवीय क्षमता के माध्यम से समझा जाना चाहिये, न कि शोषण करने या उस पर हावी होने के दृष्टिकोण से।
- इस प्रकार गहन पारिस्थितिकीवाद 'तुम या मैं' के दृष्टिकोण के बजाय 'जियो और जीने दो' के दृष्टिकोण को प्राथमिकता देता है।
गहन पारिस्थितिकीवाद का संवर्द्धन
- समाजवाद:
- गहन पारिस्थितिकीवाद विशेष रूप से समाजवाद से संबंधित है।
- गहन पारिस्थितिकी पर अपने लेखन में दार्शनिक नेस (Næss) का तर्क है कि प्रदूषण और संरक्षण आंदोलनों पर बहुत कम ध्यान दिये जाने के प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं। उनका मानना है कि जब परियोजनाओं को केवल प्रदूषण की समस्या का समाधान करने के लिये लागू किया जाता है, तो यह एक अलग तरह की बुराई को जन्म देती है।
- उदाहरण के लिये प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की स्थापना से जीवन यापन की लागत बढ़ सकती है, जिसके परिणामस्वरूप वर्ग आधारित अंतराल में वृद्धि हो सकती है।
- एक नैतिक रूप से ज़िम्मेदार पारिस्थितिकीवाद वह है जो सभी आर्थिक वर्गों के हित में कार्य करे।
- नीति निर्णयन का विकेंद्रीकरण:
- जब निर्णय स्थानीय हितों को ध्यान में रखने के बजाय बहुमत के शासन से अत्यधिक प्रभावित होते हैं, तो पर्यावरण भी अधिक संवेदनशील हो सकता है।
- नेस के अनुसार, निर्णयन की प्रक्रिया के विकेंद्रीकरण और स्थानीय स्वायत्तता को मजबूती प्रदान कर इसका समाधान किया जा सकता है।
- स्थानीय बोर्ड, नगरपालिका परिषद, राज्यव्यापी संस्था, राष्ट्रीय सरकारी संस्था, राष्ट्रों का गठबंधन और वैश्विक संस्था से मिलकर बनी शृंखला के स्थान पर एक छोटी शृंखला बनाई जा सकती है जिसमें एक स्थानीय बोर्ड, एक राष्ट्रव्यापी संस्था और एक वैश्विक संस्था शामिल हो।
- एक लंबी निर्णयन शृंखला का कोई लाभ नहीं है क्योंकि इसमें स्थानीय हितों की अनदेखी करने की संभावना होती है।
- क्षेत्रीय मतभेदों को स्वीकार करना:
- नेस मनुष्यों को पर्यावरण संकट के प्रति 'अस्पष्ट, वैश्विक' दृष्टिकोण अपनाने के प्रति सावधान करते हैं।
- संकट के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण वह है जो विकसित तथा अविकसित राष्ट्रों के बीच क्षेत्रीय मतभेदों एवं असमानताओं को स्वीकार करता है।
- नेस इस बात पर ज़ोर देते हैं कि आंदोलनों की राजनीतिक क्षमता को महसूस किया जाए, और सत्तासीन लोगों को इसके लिये जवाबदेह ठहराया जाए। जलवायु संकट को हल करने की ज़िम्मेदारी नीति निर्माताओं पर उतनी ही है जितनी कि वैज्ञानिकों और पारिस्थितिकीविदों पर।