शेल गैस की खोज तथा जल की समस्या | 19 Aug 2019
चर्चा में क्यों?
मई 2019 में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने पश्चिम बंगाल में शेल गैस (Shale Gas) भंडार की खोज के लिये एक निजी संस्था को पहली पर्यावरण मंज़ूरी प्रदान की। यह वर्ष 2018 में गुजरात और आंध्र प्रदेश को दी गई मंज़ूरी के अतिरिक्त है।
प्रमुख बिंदु
- इन परियोजनाओं में शामिल 36 कुओं (पश्चिम बंगाल में 20, गुजरात में 11 और आंध्र प्रदेश में 5) में से प्रत्येक कुएँ से शेल गैस प्राप्त करने के लिये लगभग 3.5-6 मिलियन लीटर ताज़े पानी की आवश्यकता है।
- पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment- EIA) की रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि यह पर्यावरण मंज़ूरी केवल शेल गैस भंडार की प्रारंभिक खोज के लिये मांगी गई है। बहरहाल, इस संदर्भ में यह अनुमान व्यक्त किया जा रहा है कि शेल गैस के व्यावसायिक उत्पादन के लिये प्रत्येक कुएँ में फ्रैकिंग (fracking) गतिविधि हेतु 9 मिलियन लीटर तक पानी की आवश्यकता होगी।
- अभी तक छह राज्यों से 56 स्थलों की पहचान फ्रैकिंग के लिये की गई है। विश्व संसाधन संस्थान (World Resource Institution) के अनुसार ये सभी शेल गैस के कुएँ जल तनाव क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं, जिनमें ताज़े पानी की सीमित आपूर्ति होती है।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बात करें तो हम पाएंगे की शेल गैस का उत्पादन करने वाले कई देश फ्रैकिंग से संबंधित गतिविधियों के संदर्भ में जल संकट का सामना कर रहे हैं। बुल्गारिया, फ्राँस, जर्मनी, आयरलैंड और नीदरलैंड्स जैसे देशों ने फ्रैकिंग पर प्रतिबंध लगा दिया है। ऐसे देश (अमेरिका, अर्जेंटीना, ब्रिटेन और चीन) जो शेल गैस निष्कर्षण का अनुसरण कर रहे हैं, उन्होंने विशिष्ट जल विनियमों को लागू कर दिया है।
- EIA रिपोर्ट काफी हद तक अपर्याप्त लगती है, क्योंकि यह स्पष्ट रूप से फ्रैकिंग से संबंधित पानी के मुद्दों को संबोधित नहीं करती हैं। इसके अतिरिक्त इस संदर्भ में MoEFCC द्वारा भी एक विशिष्ट EIA मैनुअल प्रस्तुत करना अभी बाकी है।
शेल गैस क्या है?
- शेल गैस एक प्रकार की प्राकृतिक गैस है जो शेल में उपलब्ध जैविक तत्त्वों से उत्पादित होती है।
- शेल गैस को उत्पादित करने के लिये कृत्रिम उत्प्रेरण (Atrificial Stimulation) जैसे‘हाइड्रॉलिक फ्रैक्चारिंग’ (Hydraulic Fracturing) की आवश्यकता होती है।
शेल गैस के निष्कर्षण की विधि और चुनौती
- शेल गैस निकालने के लिये शेल चट्टानों तक क्षैतिज खनन (Horizontal Drilling) द्वारा पहुँचा जाता है अथवाहाइड्रोलिक विघटन (Hydraulic fracturing) से उनको तोड़ा जाता है क्योंकि कुछ शेल चट्टानों (Shale Rocks) में छेद कम होते हैं और उनमें डाले गए द्रव सरलता से बाहर नहीं आ पाते।
- अतः ऐसी स्थिति में उनके भण्डार (Reservoir) कुएँ जैसे न होकर चारों ओर फैले हुए होते हैं। इन चट्टानों से गैस निकालने के लिये क्षैतिज खनन (Horizontal Drilling) का सहारा लिया जाता है।
- हाइड्रोलिक विघटन के लिये संबंधित चट्टानों के भीतर छेद करके लाखों टन पानी, चट्टानों के छोटे-छोटे टुकड़े (Proppant) और रसायन (Chemical Additives) डाला जाता है।
- उल्लेखनीय है कि हाल के वर्षों में क्षैतिज ड्रिलिंग (Horizontal Drilling) और हाइड्रॉलिक फ्रैक्चारिंग की तकनीकों ने शेल गैस के बड़े भंडारों तक पहुँच को संभव बनाया है।
- हालाँकि, इस चुनौती को स्वीकार करते हुए हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (DGH) ने शेल गैस निष्कर्षण के दौरान पर्यावरण प्रबंधन पर दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
- इसमें कहा गया है कि फ्रैक्चर तरल पदार्थ की कुल मात्रा परंपरागत हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग के 5 से 10 गुना है और फ्रैक्चरिंग गतिविधियों में पानी के स्रोतों को कम करने और फ्लोबैक पानी के निपटारे के कारण प्रदूषण का कारण बन सकता है।
- हालाँकि, पर्यावरण आकलन प्रभाव की प्रक्रिया परंपरागत और गैर-परंपरागत हाइड्रोकार्बन के बीच अंतर नहीं करती है और DGH इस मुद्दे को स्वीकार करता है कि इस क्षेत्र में पारंपरिक एवं अपरंपरागत गैस अन्वेषण के बीच EIA की प्रक्रिया में कोई अंतर नहीं आया है।
आगे की राह
प्राकृतिक-गैस आधारित अर्थव्यवस्था बनने की खोज में सरकार ने शेल गैस के अन्वेषण और उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न नीतियाँ लागू की हैं। हालाँकि फ्रैकिंग को दी गई पर्यावरणीय मंज़ूरी शेल गैस परियोजना से संबंधित है, लेकिन इसे EIA रिपोर्ट तैयार करने हेतु एक प्रतिमान नहीं बनाना चाहिये। इसके इतर इसके विषय में अंतर्राष्ट्रीय अनुभव और विशिष्ट जल प्रबंधन मुद्दों के आधार पर जोखिम और लाभ का एक अनुमानित मूल्यांकन किया जाना चाहिये।