व्यापार प्राप्य बट्टाकरण/छूट प्रणाली (TReDS) | 26 Mar 2019
संदर्भ
व्यापार प्राप्य बट्टाकरण/छूट प्रणाली (Trade Receivable Discounting System-TReDS) MSME को कॉर्पोरेट से मिलने वाले प्राप्यों के भुगतान के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा शुरू की गई एक पहल है।
- इसका गठन RBI द्वारा भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम 2007 (Payment and Settlement Systems Act 2007) के तहत स्थापित नियामक ढाँचे के तहत किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- TReDS प्लेटफॉर्म का मुख्य उद्देश्य MSMEs की महत्त्वपूर्ण ज़रूरतों जैसे-तत्काल प्राप्यों का नकदीकरण और ऋण जोखिम को समाप्त करने वाले दोहरे मुद्दों का समाधान करना है।
- TReDS प्लेटफॉर्म, एक नीलामी तंत्र द्वारा सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों सहित बड़े कॉर्पोरेटों के समक्ष MSMEs के विक्रेताओं के बीजक/विनिमय बिलों के बट्टाकरण (Discounting) में सहायता प्रदान करता है। इससे प्रतिस्पर्द्धात्मक बाज़ार दरों पर व्यापार प्राप्यों की त्वरित वसूली सुनिश्चित होती है।
- TReDS भारत में विक्रेताओं के लिये फैक्टरिंग विदाउट रीकोर्स (Factoring Without Recourse) शुरू करने का एक प्रयास है, इससे MSMEs को प्राप्यों की त्वरित वसूली के साथ-साथ योग्य मूल्य का पता लगाने में सहायता होगी।
TReDS प्लेटफॉर्म में हिस्सा लेने हेतु पात्र निकाय :
- TReDS, MSMEs के बीजक/बिलों को अपलोड, स्वीकार, बट्टाकरण, व्यापार और निपटान करने हेतु विभिन्न प्रतिभागियों को एक जगह पर लाने हेतु एम मंच/प्लेटफॉर्मर प्रदान करता है।
* (MSMED अधिनियम, 2006 के अनुरूप पारिभाषित MSMEs आपूर्तिकर्त्ता)
TReDS संव्यवहार कौन शुरू कर सकता है:
- MSMEs विक्रेताओं के व्यापार प्राप्यों के वित्तपोषण के लिये विक्रेता और खरीदार दोनों TReDS लेन-देन शुरू कर सकते हैं।
- जब MSMEs विक्रेता बीजक (Invoice) अपलोड करता है और ब्याज़ लागत का वहन करता है, तो इसे ‘फैक्टरिंग’ कहा जाता है अर्थात् (एकल विक्रेता-एकाधिक खरीदार)। ‘रिवर्स फैक्टरिंग’ (एकल खरीदार-एकाधिक विक्रेता) के मामले में खरीदार द्वारा लेन-देन शुरू किया जाता है और ब्याज़ लागत को भी खरीदार द्वारा वहन किया जाता है।
TReDS के मुख्य लाभ
सभी सहभागियों के लिये
- स्वचालित पारदर्शी प्लेटफॉर्म
- पेपरलेस और परेशानीमुक्त
- लागत में कमी
विक्रेता को लाभ
- प्रतिस्पर्द्धी मूल्य की खोज
- विक्रेता पर किसी प्रकार के दायित्व का न होना (Without Recourse)।
- MSMEs को सबसे बेहतर बोली चुनने का अधिकार।
- भुगतान हेतु खरीदार के साथ किसी तरह की अनुवर्ती कार्रवाई नहीं की जाती।
- एकल वित्तपोषक पर निर्भर होने की आवश्यकता नहीं होती।
- उत्पादकता में वृद्धि और दक्षतापूर्ण चलनिधि प्रबंधन।
- वित्तपोषण के विकल्पों में वृद्धि।
ख़रीदारों को लाभ
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास, अधिनियम 2006 (MSMED अधिनियम, 2006) के प्रावधानों का अनुपालन।
- MSME, विक्रेताओं के साथ बेहतर शर्तों के लिये मोल-तोल कर सकते हैं।
- खरीदारों के लिये निविष्टि (इनपुट) की कम लागत।
- कम प्रशासनिक लागत।
- प्रतिस्पर्द्धात्मक मूल्य की खोज।
- कुशल नकदी प्रवाह प्रबंधन।
- यह सुनिश्चित करना कि उनके विक्रेताओं को नकदी/कार्यशील पूंजी की कमी नहीं है।