शासन व्यवस्था
शाही ईदगाह और कृष्ण जन्मभूमि मंदिर विवाद
- 30 Dec 2023
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प्रिलिम्स के लिये:शाही ईदगाह, कृष्ण जन्मभूमि मंदिर, केशव देव मंदिर, औरंगजेब, दाराशिकोह, बनारस के राजा, बाबरी मस्जिद फैसला मेन्स के लिये:पूजा स्थलों से संबंधित विवादों के निवारण में न्यायपालिका का महत्त्व। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में फैसला सुनाया कि मथुरा में तीन गुंबद वाली मस्जिद शाही ईदगाह के लिये एक सर्वेक्षण किया जाएगा।
- यह मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के निकट स्थित शाही ईदगाह मस्जिद का निरीक्षण करने के लिये एक आयोग की नियुक्ति की मांग कर रहा है।
क्या है विवादित भूमि का इतिहास?
- ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने वर्ष 1618 में उसी परिसर में एक मंदिर बनवाया था तथा मस्जिद का निर्माण वर्ष 1670 में औरंगजेब ने पहले के मंदिर के स्थान पर कराया था।
- माना जाता है कि मथुरा में कृष्ण जन्मस्थान मंदिर का निर्माण लगभग 2,000 वर्ष पूर्व, पहली शताब्दी ईस्वी में हुआ था।
- हिंदू प्रतिनिधियों द्वारा उस परिसर के पूर्ण स्वामित्व की मांग के कारण एक सर्वेक्षण का आदेश दिया गया है, जहाँ वर्ष 1670 में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर केशव देव मंदिर को नष्ट कर दिया गया था।
- यह मंदिर मूल रूप से वर्ष 1618 में जहाँगीर के शासनकाल के दौरान बनाया गया था और इसका संरक्षण औरंगजेब के भाई तथा प्रतिद्वंद्वी दाराशिकोह ने किया था।
- वर्ष 1815 में बनारस के राजा ने ईस्ट इंडिया कंपनी से 13.77 एकड़ भूमि खरीदी।
- तत्पश्चात् श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की गई।
- ट्रस्ट ने वर्ष 1951 में मंदिर पर अपना स्वामित्व हासिल कर लिया।
- 13.77 एकड़ भूमि इस शर्त के साथ ट्रस्ट के अधीन रखी गई थी कि इसे कभी बेचा अथवा गिरवी नहीं रखा जाएगा।
- वर्ष 1956 में मंदिर संबंधी मामलों के प्रबंधन के लिये श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ की स्थापना की गई।
- वर्ष 1968 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ तथा शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, जिसके तहत मंदिर प्राधिकरण ने समझौते के हिस्से के रूप में भूमि का एक हिस्सा ईदगाह को दिया।
- वर्तमान में चल रहे विवाद में मंदिर के याचिकाकर्त्ता शामिल हैं जो भूमि के संपूर्ण हिस्से पर कब्ज़ा चाहते हैं।
मुद्दे की वर्तमान स्थिति क्या है?
- सर्वेक्षण की मांग के लिये याचिका हिंदू देवता, श्री कृष्ण की ओर से सात लोगों द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने न्यायालय के समक्ष लंबित अपने मूल मुकदमे में दावा किया था कि मस्जिद का निर्माण वर्ष 1670 में मुगल सम्राट औरंगज़ेब के आदेश पर श्री कृष्ण के जन्मस्थान पर किया गया था।
- वर्ष 2019 में बाबरी मस्जिद निर्णय के बाद से श्री कृष्ण जन्मभूमि तथा शाही ईदगाह मस्जिद से संबंधित नौ मामले मथुरा न्यायालय में दायर किये गए हैं।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से संबंधित विभिन्न राहतों पर मथुरा न्यायालय के समक्ष लंबित सभी मुकदमों को अपने पास स्थानांतरित कर लिया।
- उच्च न्यायालय में उ.प्र. सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी ने दलील दी कि भगवान कृष्ण का जन्मस्थान मस्जिद के अधीन नहीं है।
- उन्होंने कहा कि वादी के दावे में सबूतों का अभाव है और यह अटकलों पर आधारित है।
- शाही ईदगाह मस्जिद की कमेटी ऑफ मैनेजमेंट ट्रस्ट ने जब उच्च न्यायालय से सर्वे पर रोक लगाने की मांग की तो न्यायालय ने कोई राहत नहीं दी।
उपासना स्थल अधिनियम, 1991 क्या है?
- परिचय:
- इसे धार्मिक उपासना स्थलों की स्थिति को स्थिर करने के लिये अधिनियमित किया गया था क्योंकि वे 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में थे और किसी भी उपासना स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाते हैं एवं उनके धार्मिक चरित्र के रखरखाव को सुनिश्चित करते हैं।
- अधिनियम के प्रमुख प्रावधान:
- धर्मांतरण पर रोक (धारा 3):
- यह किसी उपासना स्थल को, चाहे पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से, एक धार्मिक संप्रदाय से दूसरे में या एक ही संप्रदाय के भीतर परिवर्तित करने से रोकता है।
- धार्मिक चरित्र का रखरखाव {धारा 4(1)}:
- यह सुनिश्चित करता है कि उपासना स्थल की धार्मिक पहचान वही बनी रहे जो 15 अगस्त, 1947 को थी।
- ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के हालिया रुख से पता चलता है कि उपासना स्थल अधिनियम, 1991 “किसी भी उपासना स्थल के धार्मिक चरित्र” को स्पष्ट नहीं करता है और प्रत्येक मामले में इसे केवल मौखिक तथा लिखित दोनों साक्ष्यों के आधार पर परीक्षण के माध्यम से सुनिश्चित किया जा सकता है।
- लंबित मामलों का निवारण {धारा 4(2)}:
- घोषणा करती है कि 15 अगस्त, 1947 से पहले किसी पूजा स्थल को धार्मिक चरित्र में बदलने के संबंध में चल रही कोई भी कानूनी कार्यवाही समाप्त कर दी जाएगी और कोई नया मामला प्रारंभ नहीं किया जा सकता है।
- अधिनियम के अपवाद (धारा 5):
- यह अधिनियम प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों, पुरातात्विक स्थलों तथा प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल व अवशेष अधिनियम, 1958 के अंतर्गत आने वाले अवशेषों पर लागू नहीं होता है।
- इसमें वे मामले भी शामिल नहीं हैं जो पहले ही निपटाए जा चुके हैं या सुलझाए जा चुके हैं और ऐसे विवाद जिन्हें आपसी समझौते से सुलझाया गया है या अधिनियम लागू होने से पहले हुए रूपांतरण शामिल हैं।
- यह अधिनियम अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के नाम से जाने वाले विशिष्ट पूजा स्थल तक विस्तारित नहीं है, जिसमें इससे जुड़ी कोई कानूनी कार्यवाही भी शामिल है।
- दंड (धारा 6):
- अधिनियम का उल्लंघन करने पर अधिकतम तीन साल की कैद और ज़ुर्माने सहित दंड निर्दिष्ट करती है।
- धर्मांतरण पर रोक (धारा 3):