देश के सत्रह राज्यों में लिंगानुपात के हालात चिंताजनक | 19 Feb 2018
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नीति आयोग द्वारा देश में लिंगानुपात की स्थिति (जन्म के समय लिंगानुपात के संदर्भ में आँकड़ाबद्ध जानकारी प्रस्तुत की है। इस जानकारी के अनुसार, देश के 21 बड़े राज्यों में से 17 राज्यों में जन्म के समय लिंगानुपात में गिरावट दर्ज की गई है। आयोग के अनुसार, देश में सबसे अधिक चिंताजनक स्थिति गुजरात की है।
प्रमुख बिंदु
- गुजरात में लिंगानुपात की दर में 53 अंकों की गिरावट दर्ज की गई है। इसके बाद क्रमश: हरियाणा (35 अंकों), राजस्थान (32 अंकों), उत्तराखंड (27 अंकों), महाराष्ट्र (18 अंकों), हिमाचल प्रदेश (14 अंकों), छत्तीसगढ़ (12 अंकों) तथा कर्नाटक (अंकों) का स्थान आता है।
- ‘हेल्दी स्टेटस् एंड प्रोग्रेसिव इंडिया’ नामक इस रिपोर्ट में नीति आयोग द्वारा भ्रूण परीक्षण कराने तथा इसके पश्चात् गर्भपात कराए जाने वाले मामलों के संदर्भ में आवश्यक कार्यवाही किये जाने पर विशेष बल दिया है।
- रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात में लिंगानुपात की दर प्रति एक हज़ार लड़कों पर 854 लडकियाँ हो गई है जबकि पहले यह दर एक हज़ार लड़कों पर 907 लड़कियाँ थी। इसके अंतर्गत वर्ष 2012-14 से 2013-15 के मध्य 53 अंकों की गिरावट दर्ज की गई है।
- रिपोर्ट के अनुसार, बहुत से सरकारी प्रयासों के बावजूद हरियाणा राज्य में जन्म के समय लिंगानुपात में गिरावट का क्रम अभी भी जारी है।
- इसके अतिरिक्त उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश में हालत और भी चिंताजनक है। उत्तराखंड में 27 अंकों एवं हिमाचल प्रदेश में 14 अंकों की गिरावट दर्ज की गई है।
कुछ राज्यों की स्थिति में सुधार भी हुआ है।
- रिपोर्ट के अनुसार, कुछ देशों में जन्म के समय लिंगानुपात में सुधार की स्थिति देखी गई है। पंजाब में 19 अंकों की वृद्धि दर्ज की गई है।
- इसी प्रकार उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य में भी जन्म के समय लिंगानुपात की स्थिति में क्रमश : 10 अंकों एवं 9 अंकों का सुधार देखा गया है।
लिंगानुपात क्या है?
- लिंगानुपात या लिंग का अनुपात किसी क्षेत्र विशेष में पुरुष एवं महिला की संख्या के अनुपात को कहा जाता है।
- प्राय: किसी भौगोलिक क्षेत्र में प्रति एक हज़ार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या को इसका मानक माना जाता है।
- जन्म के समय लिंगानुपात (एसआरबी) एक महत्त्वपूर्ण सूचकांक है। इससे यह जानकारी प्राप्त होती है कि कन्या भ्रूण हत्या यानी लिंग चयन संबंधी गर्भपात कराने के मामलों में कितनी गिरावट आई है।
नीति आयोग
- भारत के प्रधानमंत्री—अध्यक्ष।
- उपाध्यक्षः प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त
- पूर्णकालिक सदस्य
- अंशकालिक सदस्यः अग्रणी विश्वविद्यालय शोध संस्थानों और संबंधित संस्थानों से अधिकतम दो पदेन सदस्य, ये अंशकालिक सदस्य क्रम के आधार पर होंगे।
- पदेन सदस्यः केंद्रीय मंत्रिपरिषद से अधिकतम चार सदस्य प्रधानमंत्री द्वारा नामित होंगे।
- मुख्य कार्यकारी अधिकारी: भारत सरकार के सचिव स्तर के अधिकारी को निश्चित कार्यकाल के लिये प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
- गवर्निंग काउंसिल में राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्रशासित प्रदेशों के उपराज्यपाल शामिल होंगे।
- विशिष्ट मुद्दों और ऐसे आकस्मिक मामले को देखने के लिये क्षेत्रीय परिषद गठित की जाएंगी, जिनका संबंध एक से अधिक राज्य या क्षेत्र से हो। ये परिषदें विशिष्ट कार्यकाल के लिये बनाई जाएंगी। भारत के प्रधानमंत्री के निर्देश पर क्षेत्रीय परिषदों की बैठक होगी और इनमें संबंधित क्षेत्र के राज्यों के मुख्यमंत्री और केन्द्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल शामिल होंगे (इनकी अध्यक्षता नीति आयोग के उपाध्यक्ष करेंगे)।संबंधित कार्य क्षेत्र की जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ और कार्यरत लोग, विशेष आमंत्रित के रूप में प्रधानमंत्री द्वारा नामित किये जाएंगे।
कार्य
- सहकारी संघवाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता, नागरिकों की भागीदारी को बढ़ावा देने, अवसरों तक समतावादी पहुँच, प्रतिभागी एवं अनुकूलनीय शासन और विकसित हो रही प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रयोग के ज़रिये नीति आयोग शासन प्रक्रिया को महत्त्वपूर्ण दिशा-निर्देश और कार्यनीतिक योगदान देगा।
- सहकारी संघवाद, अवसरों के प्रति समतावादी एवं समावेशी पहुँच, प्रौद्योगिकी का समुचित उपयोग एवं सहभागी शासन पर आधारित आर्थिक विकास पर ज़ोर देते हुए महत्त्वपूर्ण दिशा-निर्देश एवं सरकार तथा शासन प्रक्रिया को कार्यनीतिक योगदान प्रदान करेगा।
- केंद्र से राज्यों की तरफ चलने वाले एकपक्षीय नीतिगत क्रम को एक महत्त्वपूर्ण विकासवादी परिवर्तन के रूप में राज्यों की वास्तविक और सतत् भागीदारी से बदल दिया जाएगा।
- त्वरित गति से कार्य करने के लिये सरकार को रणनीतिक नीति दृष्टिकोण उपलब्ध कराने के साथ-साथ प्रासंगिक विषयों से निपटने के लिये इस संस्थान के पास आवश्यक संसाधनों, ज्ञान, कौशल और क्षमता का निर्माण।
- विश्व के सकारात्मक प्रभावों को अपनाते हुए संस्थान को इस नीति का पालन करना होगा कि भारत के परिप्रेक्ष्य में एक ही मॉडल प्रत्यारोपित नहीं किया जा सकता है।
- विकास के लिये अपनी नीति स्वयं निर्धारित करनी होगी।
- देश में और देश के लिये क्या हितकारी है, संस्थान को इस पर ध्यान केंद्रित करना होगा जो विकास के लिये भारतीय दृष्टिकोण पर आधारित होगा।