अंतर्राष्ट्रीय संबंध
‘ब्लू व्हेल गेम’ पर विशेषज्ञों के एक पैनल का गठन
- 14 Oct 2017
- 7 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से आभासी साहसी खेलों जैसे ‘ब्लू व्हेल चैलेंज’ (Blue Whale Challenge) को ब्लॉक करने के लिये विशेषज्ञों के एक पैनल का गठन करने को कहा है। विदित हो इस गेम के कारण अनेक बच्चे आत्महत्याएँ कर चुके हैं।
प्रमुख बिंदु
- न्यायालय ने साइबर जगत में जीवन के लिये खतरा बने कुछ खेलों जैसे- चोकिंग गेम (Choking game), साल्ट एंड आइस चैलेंज (Salt and Ice Challenge), फायर चैलेंज (Fire Challenge), कटिंग चैलेंज (Cutting Challenge), आईबॉल चैलेंज (Eyeball challenge) और ह्यूमन इम्ब्रॉइडरी गेम (Human Embroidery game) से बच्चों को सुरक्षित करने के लिये दायर की गई एक याचिका के संदर्भ में सरकार से राय प्रस्तुत करने को कहा है।
- फायरवाल (firewall) एक ऐसी व्यवस्था है जिसके द्वारा इनकमिंग और आउटगोइंग सिंग्नलों को नियंत्रित करके अनाधिकृत अथवा निजी नेटवर्क के मध्यम से इन खेलों तक पहुँच बनाने पर रोक लगाई जा सकती है।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में गठित एक पीठ ने सरकार को इन फायरवाल के लिये विशेषज्ञ समिति का गठन करने का निर्देश दिया है, ताकि इन खेलों के खतरनाक मंसूबों को नाकाम किया जा सके। ध्यातव्य है कि इस संबंध में सरकार को अपनी राय 27 अक्टूबर तक न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करनी है।
- इस पीठ में जस्टिस ए.एम. खानविलकर और डी.वाई.चंद्रचूड़ मौजूद थे। पीठ ने राज्यों के उच्च न्यायालयों को भी इस प्रकार की याचिकाओं को संज्ञान में लेने का आदेश दिया है।
- यह याचिका कार्यकर्त्ता और अधिवक्ता स्नेहा कालिता द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने मध्यवर्तियों (जैसे- मुख्यतः नेटवर्क सर्विस प्रोवाइडर्स, इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स , वेब होस्टिंग सर्विस प्रोवाइडर्स और साइबर कैफे ) को इसका निरीक्षण करने और कंप्यूटर के सभी उपयोगकर्त्ताओं को ऐसे किसी भी के आभासी खेल को अपलोड अथवा न खेलने देने का आदेश देने को कहा है। ये खेल खतरनाक होते हैं तथा जीवन के लिये खतरा बन सकते हैं। इसके अतिरिक्त ये बच्चों में नैतिकता के स्तर को भी प्रभावित करते हैं।
- इस याचिका में महिला और बाल विकास मंत्रालय के लिये भी एक दिशा-निर्देश जारी करने को कहा गया था कि वे बच्चों को इस प्रकार के खेलों के जाल में पड़ने से पहले ही सावधानी बरतें।
- ध्यातव्य है कि सर्वोच्च न्यायालय पहले ही तमिलनाडु के एक 73 वर्षीय वृद्ध पुरुष की याचिका पर सुनवाई कर चुका है, जिसमें ब्लू व्हेल चैलेंज पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया गया था। विदित हो कि इसके कारण विश्व स्तर पर अनेक बच्चों की मौत हो चुकी है।
ब्लू व्हेल चैलेंज से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य
- इस खेल का जन्म रूस में हुआ और वहाँ से यह ब्राज़ील, चीन, इटली, अर्जेंटीना, स्पेन, वेनेजुएला, जॉर्जिया आदि यूरोपीय देशों से होता हुआ अंततः भारत पहुँचा।
- माना जाता है कि वर्चुअल दुनिया में पिछले चार वर्षों से यह गेम खेला जा रहा है, लेकिन यह हाल-फिलहाल में ही चर्चा में आया है।
- रूस में इस गेम को बनाने वाला (Curator) मनोविज्ञान का छात्र 22 वर्षीय युवक फिलिप बुदेकिन को तीन वर्ष के लिये कारावास की सज़ा हुई है। हालाँकि, इसके पीछे फिलिप बुदेकिन का तर्क यह था कि उसका मकसद समाज को साफ-सुथरा बनाना है और जो लोग इसे खेल रहे हैं, वे समाज में फैला हुआ ‘कचरा’ हैं।
- माना जाता है कि इस गेम की वज़ह से रूस में 130, चीन, अमेरिका तथा अन्य देशों में 100 से अधिक बच्चों ने आत्महत्याएँ की हैं।
- हालाँकि वर्तमान में यह स्पष्ट नहीं है कि इस गेम का क्यूरेटर कौन है और ऐसे कितने लोग हैं जो इस घातक खेल का संचालन कर रहे हैं।
- किशोरों और युवाओं तक #Blue Whale Challenge सोशल मीडिया के फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर, यू-ट्यूब, टंबलर और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्मों के माध्यम से पहुँचा है।
- 12 से 18 साल के किशोर #Curator Find Me के रास्ते इस खेल में प्रवेश करते हैं और कई किशोरों को ‘#चलो आजमाते हैं’ ने अपने जाल में फँसाया है।
- इस गेम का कोई डाउनलोड उपलब्ध नहीं है और न ही इसे ऑनलाइन खेला जा सकता है। इस गेम में एंट्री केवल आमंत्रण (Invitation) से ही मिलती है।
हालिया समय के सर्वाधिक विस्मयकारी वर्चुअल गेम ‘ब्लू व्हेल चैलेंज’ को खेलने वालों को इसके प्रत्येक चरण के बाद किसी अनजान क्यूरेटर से निर्देश मिलते हैं, जिसका अंतिम टास्क उनको ‘आत्महत्या’ के लिये प्रेरित करने का होता है।
खेलने वाले को टास्क देते समय क्यूरेटर का चेहरा ढका होता है, ऐसे में इंटरनेट के ज़रिये उसकी पहचान करना संभव नहीं है।
निष्कर्ष
- किशोरों में हिंसक, आक्रामक वीडियो गेम खेलने का रुझान कोई नई बात नहीं है, लेकिन ‘ब्लू व्हेल चैलेंज’ ने उनकी वर्चुअल दुनिया में एक आक्रांता (Intruder) की तरह प्रवेश किया है। लेकिन यह कहना गलत होगा कि इसके लिये केवल बच्चे या क्यूरेटर ही ज़िम्मेदार हैं। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन ने दो वर्ष पहले एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जो हिंसक/हॉरर वीडियो देखने वाले बच्चों पर आधारित थी। उस रिपोर्ट का निष्कर्ष यह था कि इसके लिये परिवार और समाज दोनों ज़िम्मेदार हैं।