रागी का जीनोम अनुक्रमण | 08 Jul 2017
संदर्भ
रागी अफ्रीका और एशिया के सूखे क्षेत्रों में उगाया जाने वाला फसल है। यह एक वर्ष में पककर तैयार हो जाता है। यह मूल रूप से इथियोपिया के उच्च इलाकों का पौधा है एवं इसे भारत में चार हज़ार साल पहले लाया गया था। ऊँचे इलाकों में अनुकूलित होने में यह काफी समर्थ है। हिमालय में यह 2300 मीटर की ऊँचाई तक उगाया जाता है।
प्रमुख बिंदु
- रागी की जीनोम अनुक्रमण, बेहतर किस्मों को विकसित करने में मदद कर सकता है।
- कर्नाटक के कृषि वैज्ञानिकों ने रागी के आनुवंशिक कोड का अनुक्रम किया है, जो इसे सूखा प्रतिरोधी और पोषण में समृद्ध बनाने वाले सटीक ब्लॉकों पर प्रकाश डालता है।
- यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रिकल्चरल साइंसेज- बेंगलुरु (यूएएस-बी) के वैज्ञानिकों ने इस पौधे की क्रमिकता हासिल की है।
- चार साल तक चले इस परियोजना से प्राप्त आनुवंशिक जानकारी रागी पर आगे शोध में सहायता करेगी।
- रागी परियोजना पर एक आठ सदस्यीय टीम द्वारा कार्य किया गया था और इसकी रिपोर्ट बीएमसी जीनोमिक्स में 15 जून को प्रकाशित हुई थी।
क्या है रागी
- रागी सूखी भूमि पर खेती करने वाले किसानों की मुख्य फसल है। इसमें भारी मात्रा में पोषक तत्त्व पाये जाते हैं।
- रागी में ग्लाइसेमिक इंडेक्स की कमी पाई जाती है, जिसके कारण यह अब केवल निर्धनों का मुख्य अन्न नहीं रहा, बल्कि समृद्ध लोग भी इसका उपयोग करते हैं। इसे मधुमेह रोगियों द्वारा पसंद किया जाता है।
- यह वैश्विक बाज़रा खेती का 12% क्षेत्र धारण करता है। कर्नाटक रागी के उत्पादन में अग्रणी राज्य है। राजस्थान के बाद कर्नाटक के पास दूसरा सबसे बड़ा सूखा-प्रवण क्षेत्र है।
- एक बार पक कर तैयार हो जाने पर इसका भण्डारण बेहद सुरक्षित होता है। इस पर किसी प्रकार के कीट या फफूंद हमला नहीं करते। इस गुण के कारण निर्धन किसानों हेतु यह एक अच्छा विकल्प माना जाता है।
- भारत में कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में रागी का सबसे अधिक उपभोग होता है।
- वियतनाम में इसे बच्चे के जन्म के समय महिलओं को दवा के रूप में दिया जाता है। इससे मदिरा भी बनती है।
जीनोम अनुक्रम
- किसी जीनोम में डीएनए न्यूक्लियोटाइड किस क्रम में अनुक्रमित रहता है, जीनोम अनुक्रम में इसी की पहचान की जाती है।
चावल और गेहूं को लाभ
- रागी में पाए जाने वाले सूखा-सहनशील जीनों के हस्तांतरण से चावल और गेहूं की सूखा सहिष्णुता वाली प्रजातियाँ तैयार की जा सकती हैं।
- इस खोज से सूखे भूमि पर कृषि कार्य करने वाले किसानों को मदद मिलेगी तथा गैर-ट्रांसजेनिक प्रक्रिया से जुड़े अनुसंधान के माध्यम से उपभोक्ताओं को एक पोषक-तत्त्व से समृद्ध भोजन मिलेगा।