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जैव विविधता और पर्यावरण

सेप्टिक टैंकों के मानदंड पूरे होंगे

  • 20 Mar 2019
  • 5 min read

संदर्भ

केंद्रीय पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के अनुसार, सेप्टिक टैंक और एकल गड्ढा (single pits) सुरक्षित स्वच्छता प्रौद्योगिकियाँ हैं जो सतत् विकास लक्ष्यों द्वारा निर्धारित मानकों को पूरा करती हैं।

सर्वेक्षण का परिणाम

  • राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण (NARSS) 2018-19 के आँकड़ों के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया है कि केवल 26% ग्रामीण जुड़वाँ-लीच गड्ढों (tween-leach pits) और ग्रामीण शौचालयों का उपयोग करते हैं। ग्रामीण शौचालयों के अवशेष (जो दो अंतर्संबंधित गड्ढों का उपयोग नहीं करते हैं) एक नई भयावह स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं।
  • ट्विन पिट का उपयोग न करना स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये हानिकारक हो सकता है और नई पीढ़ी को मैनुअल स्कैवेंजिंग की ओर धकेल सकता है।
  • सेप्टिक टैंक सबसे लोकप्रिय विकल्प हैं जिसमें 28% शौचालय एक सेप्टिक टैंक से जुड़े होते हैं जो सोख गड्ढे (soak pit) के साथ होते हैं तथा 6% टैंक बिना सोख गड्ढे के होते हैं।

केंद्रीय मंत्रालय की प्रतिक्रिया

  • मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि सेप्टिक टैंक और एकल गड्ढे सुरक्षित स्वच्छता प्रौद्योगिकियाँ हैं जो सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) द्वारा निर्धारित मानकों को पूरा करती हैं।
  • ट्विन-लीच पिट शौचालय सबसे किफायती और सुरक्षित स्वच्छता प्रौद्योगिकियों में से एक हैं और इसे व्यापक रूप से अपनाया गया है।
  • मंत्रालय ने स्वीकार किया कि देश के सामाजिक स्वरूप तथा जातिगत पूर्वाग्रहों को देखते हुए इस तरह के टैंकों को खाली करने और साफ करने के लिये मैनपावर एक बड़ी चुनौती है।
  • मंत्रालय इस तरह की समस्या के तकनीकी और उद्यमशील समाधान तैयार करने पर काम कर रहा है।

राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण (NARSS) 2018-19

  • यह सर्वेक्षण विश्व बैंक सहायता परियोजना के तहत एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के लिये किया गया था।
  • ट्विन-पिट और सिंगल-पिट सिस्टम ट्विन पिट फ्लश वॉटर सील टॉयलेट यानी दो गड्ढों और पानी उड़ेलकर मल निस्तारण वाली जल अवरोध प्रणाली पर आधारित शौचालय होता है।
  • इन्हें दो गड्ढों वाला इसलिये कहा जाता है क्योंकि इनमें जलमल को इकट्ठा करने के लिये दो गड्ढों की व्यवस्था की जाती है।
  • इन दो गड्ढों को बारी-बारी से इस्तेमाल किया जाता है। दोनों गड्ढों को एक ओर जंक्शन चैंबर से जोड़ा जाता है।
  • गड्ढे की दीवारों में हनीकॉम्ब यानी मधुमक्खी के छत्ते के आकार में ईंटों से चिनाई की जाती है। गड्ढे के तले पर पलस्तर नहीं किया जाता और तला मिट्टी का बना होता है।
  • शौचालय का इस्तेमाल करने वालों की संख्या को ध्यान में रखते हुए गड्ढे का आकार घटता-बढ़ता है। हर गड्ढे की क्षमता आमतौर पर तीन साल रखी जाती है।
  • करीब तीन साल में जब पहला गड्ढा भर जाता है तो जंक्शन चैंबर से उसे बंद कर दिया जाता है और दूसरे गड्ढे को चालू कर दिया जाता है।
  • मानव मल का जलीय अंश हनीकॉम्ब ढाँचे से होकर ज़मीन में अवशोषित कर लिया जाता है। दो साल तक बंद रहने के बाद पहले गड्ढे में जमा पदार्थ पूरी तरह सड़कर ठोस, गंधहीन और बीमारी फैलाने वाले जीवाणुओं से मुक्त खाद में परिवर्तित हो जाता है।
  • इसे खोदकर बाहर निकाल लिया जाता है और कृषि तथा बागवानी में इसका उपयोग किया जाता है।
  • जब दूसरा गड्ढा भी भर जाता है तो उसे भी जंक्शन चैंबर से बंद कर दिया जाता है और पहले गड्ढे को चालू कर दिया जाता है। इस तरह दोनों गड्ढों का बारी-बारी से उपयोग किया जाता है।

स्रोत : द हिंदू

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