सेनकाकू द्वीप विवाद | 26 Feb 2021
चर्चा में क्यों?
अमेरिका द्वारा जापान के दावाकृत क्षेत्र में चीन की उपस्थिति की आलोचना किये जाने के बाद चीन ने अमेरिका-जापान की आपसी सुरक्षा संधि को शीत युद्ध का एक परिणाम बताया है।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि
- वर्ष 1960 में जापान और अमेरिका के बीच हुई पारस्परिक सहयोग एवं सुरक्षा संधि के तहत यह आश्वासन दिया गया है कि अमेरिका, जापानी बलों या क्षेत्र पर किसी बाहरी शक्ति द्वारा किये गए हमले की स्थिति में जापान की सहायता करेगा।
- हाल ही में अमेरिका ने जापान के दावाकृत क्षेत्र में चीन की उपस्थिति की आलोचना की थी, क्योंकि चीन के जहाज़ बार-बार सेनकाकू द्वीप के आसपास के जापानी क्षेत्रीय जल में अनधिकार प्रवेश कर रहे थे।
- चीन लंबे समय से अमेरिका पर ‘शीत युद्ध की मानसिकता’ बनाए रखने का आरोप लगाता रहा है, चीन का मानना है कि इसी मानसिकता के कारण अमेरिका, जापान को चीन के खिलाफ अपने गुट में शामिल करने की कोशिश करता है।
- सेनकाकू द्वीप विवाद:
- परिचय
- सेनकाकू द्वीप विवाद आठ निर्जन द्वीपों संबंधी एक क्षेत्रीय विवाद है, इस द्वीपसमूह को जापान में सेनकाकू द्वीपसमूह, चीन में दियाओयू द्वीपसमूह और हॉन्गकॉन्ग में तियायुतई द्वीपसमूह के नाम से जाना जाता है।
- जापान और चीन दोनों इन द्वीपों पर स्वामित्व का दावा करते हैं।
- अवस्थिति
- ये आठ निर्जन द्वीप पूर्वी चीन सागर में स्थित हैं। इनका कुल क्षेत्रफल लगभग 7 वर्ग किलोमीटर है और ये ताइवान के उत्तर-पूर्व में स्थित हैं।
- सामरिक महत्त्व
- ये द्वीप रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण शिपिंग लेनों के काफी करीब हैं, साथ ही मत्स्य पालन की दृष्टि से भी ये द्वीप काफी महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं, इसके अलावा एक अनुमान के मुताबिक, यहाँ तेल का काफी समृद्ध भंडार मौजूद है।
- जापान का दावा
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान ने सैन फ्रांसिस्को की वर्ष 1951 की संधि में ताइवान सहित कई क्षेत्रों और द्वीपों पर अपने दावों को त्याग दिया था।
- इस संधि के तहत नानसेई शोटो द्वीप, संयुक्त राज्य अमेरिका के अधीन आ गया और फिर वर्ष 1971 में यह जापान को वापस लौटा दिया गया।
- जापान का कहना है कि सेनकाकू द्वीप, नानसेई शोटो द्वीप का हिस्सा है और इसलिये इस पर जापान का स्वामित्व है।
- हाल ही में दक्षिण जापान की एक स्थानीय परिषद ने सेनकाकू द्वीपसमूह वाले क्षेत्र का नाम टोंकशीरो से टोंकशीरो सेनकाकू में बदलने से संबंधित एक प्रस्ताव को मंज़ूरी दी थी।
- इसके अलावा चीन ने सैन फ्रांसिस्को संधि पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी। चीन और ताइवान का दावा 1970 के दशक में तब आया जब क्षेत्र में तेल संसाधनों के भंडार की खोज की गई।
- चीन का दावा
- चीन का मत है कि यह द्वीप प्राचीन काल से उसके क्षेत्र का हिस्सा रहा है और इसे ताइवान प्रांत द्वारा प्रशासित किया जाता था।
- जब सैन फ्रांसिस्को की संधि में चीन को ताइवान वापस लौटा दिया गया था, तो इस द्वीप को भी वापस लौटा दिया जाना चाहिये।
- परिचय
स्रोत: द हिंदू