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बदले जाएंगे प्रत्येक 3-4 साल में नए नोटों के सुरक्षा फीचर

  • 03 Apr 2017
  • 6 min read

समाचारों में क्यों ?

विदित हो कि नकली नोटों की समस्या पर लगाम लगाने के लिये सरकार 500 और 2000 रुपये के बैंक नोटों के सुरक्षा फीचर में प्रत्येक 3-4 साल में बदलाव करने पर विचार कर रही है। दरअसल, नोटबंदी का उद्देश्य काले धन पर अंकुश लगाना ही नहीं बल्कि नकली नोट छापने वालों पर नकेल कसना भी था। लेकिन नए नोटों के बाज़ार में आते ही जाली नोटों ने भी अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी। पिछले चार महीनों में जगह-जगह पड़े छापों में बड़े पैमाने पर पाँच सौ और दो हजार रुपए के नकली नोट पकड़े गए। इससे स्वभाविक ही सरकार की चिंता बढ़ी है। गृह और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने उच्चस्तरीय बैठक कर इस समस्या से पार पाने के उपायों पर विचार किया है। अब सरकार विकसित देशों की तरह अपने यहाँ भी प्रत्येक तीन-चार साल में नोटों की डिज़ाइन और सुरक्षा फीचर में बदलाव करने पर विचार कर रही है।

नोटों के सुरक्षा फीचर में बदलाव आवश्यक क्यों ?

विभिन्न रिपोर्टों के हवाले से यह कहा जाता रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में किसी भी समय 400 करोड़ रुपये के जाली नोट मौज़ूद रहते हैं। वहीं प्रत्येक वर्ष 70 करोड़ रुपये के नकली नोट भारत की अर्थव्यवस्था  में चलन में आ जाते हैं। उल्लेखनीय है कि हमारी सुरक्षा एजेंसियाँ नकली नोटों के इस कारोबार के एक छोटे से हिस्से पर ही अपना नियंत्रण स्थापित कर पाती हैं, यानी हमारी अर्थव्यवस्था के समानांतर एक नकली नोटों की अर्थव्यवस्था भी चलती रहती है।

विमुद्रीकरण के पश्चात सरकार ने नए नोट जारी तो कर दिये लेकिन नए नोटों और पुराने नोटों के सुरक्षा फीचर में कुछ खास बदलाव नहीं किये गए। विदित हो कि हाल ही में पकड़े गए नकली नोटों में पाया गया है कि नोटों के 17 सुरक्षा फीचर में से कम से कम 11 की हूबहू नकल कर ली गई है। इसकी वज़ह यही बताई जा रही है कि लंबे समय से नोटों के डिज़ाइन और सुरक्षा फीचर में बदलाव नहीं किया गया। आज से 17 साल पहले यानी वर्ष 2000 में एक हजार रुपए का नोट चलन में आया था, तबसे लेकर आखिर तक उसकी डिज़ाइन में कोई बदलाव नहीं किया गया। पाँच सौ रुपए के नोट के मामले में भी यही स्थिति थी और अब नए नोटों में भी सुरक्षा फीचर पुराने तरीके से तैयार किये गए हैं।

सही रास्ता क्या है ?

बाज़ार में नकली नोटों का प्रवाह बढ़ने से सरकार को राजस्व घाटा उठाने के साथ-साथ महंगाई आदि को रोकने में भी मुश्किल आती है। इससे आतंकवादी, नक्सली और दूसरे संगठित अपराध करने वालों के आर्थिक स्रोतों पर अंकुश लगाना कठिन हो जाता है। इसलिये विकसित देशों में एक निश्चित समय-अंतराल पर नोटों की डिज़ाइन और सुरक्षा फीचर को बदल दिया जाता है। मगर नोटों की छपाई खासा खर्चीला और तकनीकी रूप से पेचीदा काम है, इसलिये हमारे यहाँ सरकारें ऐसा करने से बचती रही हैं। फिर बार-बार नोटों को बदलने से भारत जैसे विशाल आबादी और मुख्य रूप से नगदी पर निर्भर रहने वाले देश में पुराने नोटों की अदला-बदली को लेकर अफरा-तफरी का माहौल बनने और बैंकों पर काम का बोझ बढ़ने की संभावना रहती है। ऐसे में जब सरकार नकली नोटों पर नकेल कसने के लिये थोड़े-थोड़े अंतराल पर नोटों का स्वरूप बदलने पर विचार कर रही है, तो उसे इन समस्याओं से पार पाने के व्यावहारिक उपाय भी सोचने होंगे।

निष्कर्ष

हमारे देश में जाली नोटों का कारोबार इसलिये भी आसानी से पाँव पसार लेता है क्योंकि सामान्य और कम पढ़े-लिखे लोगों, साधारण दुकानदारों आदि के लिये नोटों में इस्तेमाल सभी सुरक्षा फीचर की पहचान करना संभव नहीं होता। बैंकों में पहुँचने के बाद ही खास मशीन से उनके असली या नकली होने की मुकम्मल जाँच हो पाती है। ऐसे में कुछ ऐसे तरीके इस्तेमाल करने होंगे, जिससे सामान्य लोग भी नकली नोटों की पहचान कर सकें। हालाँकि नए नोटों के आने के कुछ ही दिनों बाद बाज़ार में बड़े पैमाने पर नकली नोट का भी आ जाना इस बात का परिचायक है कि यह संगठित रूप से चलाई जाने वाली गतिविधि है, जिस पर नज़र रखने के लिये सख्त कदम उठाए जाने चाहियें।

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