धारा 144 के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का आदेश | 11 Jan 2020
प्रीलिम्स के लिये:धारा 144 मेन्स के लिये:धारा 144 को लागू करने के संबंध में विभिन्न तथ्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि धारा 144 का प्रयोग सकारात्मक अभिव्यक्तियों को प्रतिबंधित करने के लिये नहीं किया जा सकता है।
मुख्य बिंदु:
- सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, आपराधिक प्रक्रिया संहिता (The Code Of Criminal Procedure- Cr.PC) की धारा 144 के तहत जारी प्रतिबंध के आदेशों का प्रयोग लोकतंत्र में सकारात्मक अभिव्यक्तियों, सलाह और शिकायतों को दबाने के उपकरण के रूप में नहीं किया जा सकता है।
क्या था मुद्दा?
- सर्वोच्च न्यायालय में कुछ याचिकाकर्त्ताओं द्वारा इस संदर्भ में याचिका दाखिल की गई थी कि पुलिस अभी भी जम्मू-कश्मीर में लोगों की आवाजाही पर रोक लगा रही है।
- जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 का निरसन, देश में एक संवेदनशील मुद्दा था जिसका देश के कुछ हिस्सों विशेषकर जम्मू-कश्मीर में काफी विरोध भी हुआ था। विदित है कि जम्मू-कश्मीर में भी सुरक्षा की दृष्टि से अफवाहों और हिंसक घटनाओं को रोकने के लिये सरकार ने धारा 144 लागू की थी।
क्या है सर्वोच्च न्यायालय का आदेश?
- अगर सरकार को लगता है कि कानून और व्यवस्था के लिये खतरा उत्पन्न हो सकता है तो उसे नियत प्रक्रिया का पालन करना चाहिये तथा नागरिकों के अधिकारों को ध्यान में रखकर केवल उचित और आवश्यकता-आधारित प्रतिबंधात्मक आदेश पारित करने चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में धारा-144 के तहत जारी किये गए आदेशों से यह सिद्ध नहीं होता है कि ये आदेश कानून-व्यवस्था के लिये खतरे की स्थिति में या जीवन और संपत्ति के नुकसान को रोकने के लिये लगाए गए थे।
- सरकार ने यह तर्क दिया कि ये प्रतिबंध राज्य में काफी समय से प्रभावी सीमा पार आतंकवाद, घुसपैठ और अन्य सुरक्षा मुद्दों के कारण लगाए गए थे।
- इस शक्ति का उपयोग केवल सार्वजनिक आकस्मिक मुद्दों या सार्वजनिक सुरक्षा के हित में ही किया जाना चाहिये।
- मजिस्ट्रेट किसी भी क्षेत्र में भौगोलिक तथ्यों तथा उद्देश्यों का आकलन किये बिना प्रतिबंध नहीं लगा सकता है।
- इन प्रतिबंधों को कभी भी लंबी अवधि के लिये लागू नहीं किया जाना चाहिये।
- धारा 144 को सामान्य रूप से जनता के खिलाफ या विशिष्ट समूहों या व्यक्तियों के खिलाफ लागू किये जाने के प्रश्न के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने मधुलिमये (Madhu Limaye) केस का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर व्यक्तियों की संख्या इतनी अधिक है कि उनमें भेद नहीं किया जा सकता तो एक सामान्य आदेश पारित किया जा सकता है।
मधुलिमये (Madhu Limaye) बनाम सब-डिवीज़नल मजिस्ट्रेट मामला:
- वर्ष 1970 में मधुलिमये (Madhu Limaye) बनाम सब-डिवीज़नल मजिस्ट्रेट मामले में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एम. हिदायतुल्ला की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की पीठ ने धारा 144 की संवैधानिकता को बरकरार रखा।
- मजिस्ट्रेट की शक्ति प्रशासन द्वारा प्राप्त आम शक्ति नहीं है बल्कि यह न्यायिक तरीके से उपयोग की जाने वाली शक्ति है जिसकी न्यायिक जाँच भी की जा सकती है।
- न्यायालय ने कानून की संवैधानिकता को बरकरार रखते हुए कहा कि धारा 144 के अंतर्गत लगे प्रतिबंधों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों के अंतर्गत आता है।