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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

निगरानी उपायों पर सेबी की बढती सख्ती

  • 05 Mar 2018
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा कंपनियों को ग्रेडेड सर्विलांस मीज़र्स (Graded Surveillance Measures-GSM) के तहत लाने संबंधी प्रक्रिया की समीक्षा की जा रही है। इस प्रक्रिया को पहले की अपेक्षा और अधिक पारदर्शी बनाने के लिये यह कार्य किया जा रहा है। ध्यातव्य है कि जीएसएम को गत वर्ष फरवरी में लागू किया गया था, इसके दायरे में 700 से भी अधिक कंपनियों को रखा गया है।

प्रमुख बिंदु

  • इसके संबंध में चिंता की बात यह है कि जीएसएम के दायरे में रखने के लिये कंपनियों के चयन का स्पष्ट मानदंड निर्धारित नहीं किया गया है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, इसके तहत केवल कमज़ोर आधार वाली कंपनियों के प्रति आक्रामक रुख अपनाया गया है, विशेषकर ऐसी कंपनियों के प्रति जो अक्सर धोखाधड़ी करने वालों के निशाने पर होती हैं।
  • उदाहरण के लिये, बंबई स्टॉक एक्सचेंज द्वारा जीएसएम के विभिन्न चरणों में इसके दायरे में करीब 400 कंपनियों को रखा है। इसमें से 132 कंपनियाँ ग्रेड 6 के तहत आती हैं जहाँ सबसे अधिक प्रतिबंध है। 
  • जैसा कि हम जानते हैं जीएसएम का उद्देश्य कमज़ोर फंडामेंटल्स अथवा कम बाज़ार पूंजीकरण वाली कंपनियों के शेयरों में असामान्य तेज़ी को नियंत्रित करना है।
  • जीएसएम के दायरे में आने वाली कंपनियों के संबंध में सबसे अहम बात यह है कि निवेशकों को उन मानदंडों के बारे में जानकारी ही नहीं होती है जिनके तहत कंपनियों को जीएसएम के दायरे में रखा जाता है।
  • आपको बता दें कि जीएसएम के ग्रेड 2 के तहत शेयरों की खरीद-फरोख्त हेतु खरीदार से एक अतिरिक्त निगरानी जमा (एएसडी) रकम वसूली जाती है जो खरीद मूल्य की 100 फीसदी होती है।
  • जैसे-जैसे बिकवाली कम होती जाती है, शेयर मूल्य में भी गिरावट आती जाती है जिससे निवेशकों के लिये इस चक्र से बाहर आना कठिन हो जाता है।

ग्रेडेड सर्विलांस मीज़र्स 
(Graded Surveillance Measures-GSM)

  • देश के प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज बंबई शेयर बाज़ार (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के शेयर मूल्यों में असामान्य तेज़ी पर नज़र रखने के लिये ग्रेडेड निगरानी प्रणाली को स्थापित किया गया है। यह नई व्यवस्था मौजूदा निगरानी संबंधी उपायों से काफी अलग है।
  • वस्तुतः इसकी शुरुआत के पीछे सेबी का उद्देश्य उन प्रतिभूतियों के व्यापार में कमी लाना है, जिनकी कीमतों में असामान्य दर से वृद्धि हो रही है और इनकी कीमतों  में हो रही यह वृद्धि कंपनी की वित्तीय अवस्था और मूल तत्त्वों के अनुरूप नहीं है।
  • ग्रेडेड सर्विलांस मीज़र्स (जीएसएम) के तहत चिन्हित प्रतिभूतियों के संदर्भ में बाज़ार के भागीदारों के लिये अतिरिक्त सतर्कता बरती जा रही है।
  • हाल में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब कुछ कंपनियों के शेयर मूल्यों में ज़ोरदार तेज़ी देखी गई, जबकि इसके पीछे कोई खास वज़ह नहीं रही।
  • इसके अंतर्गत सेबी संदेहास्पद अथवा मूल्य हेराफेरी या 'शेल कंपनियों’ के दायरे में आने वाली कंपनियों के शेयर अपने पास रख सकती है। 
  • यह आकलन स्टॉक बाज़ार में निवेश करने वाले निवेशकों के लिये लाभकारी सिद्ध होगा,  क्योंकि इससे उन्हें यह जानकारी प्राप्त हो सकेगी कि उन्हें सर्विलांस के तहत किन प्रतिभूतियों के साथ व्यापार करने में अतिरिक्त सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।

यह कैसे कार्य करता है?

  • इसके अंतर्गत यदि किसी फर्म की पहचान की जाती है, तो निगरानी कार्यों के साथ उस फर्म को छह चरणों से गुज़रना होता है।
  • इसके प्रथम चरण में इन प्रतिभूतियों को व्यापार-से-व्यापार अनुभाग (trade-to-trade segment) में रखा जाता है। इसका अर्थ यह है कि इसमें किसी भी प्रकार के सट्टा व्यापार की अनुमति नहीं दी जाती है।
  • साथ ही, इसमें शेयर का वितरण और कंसीडरेशन राशि (consideration amount) का भुगतान भी अनिवार्य हो जाता है।
  • दूसरे चरण में, व्यापार-से-व्यापार अनुभाग में प्रतिभूति के खरीदार को व्यापार मूल्य का 100% ‘अतिरिक्त निगरानी जमा’ (additional surveillance deposit) के रूप में रखना होता है। इस जमा राशि को लेन-देनों के माध्यम से पाँच महीने तक इसी प्रकार रखा जाता है तथा इसके बाद व्यवस्थित तरीके से खरीदार को लौटा दिया जाता है।
  • इसके तीसरे चरण में, एक सप्ताह में एक ही बार (जैसे सोमवार को) व्यापार की अनुमति दी जाती है। इसके अतिरिक्त, इसे खरीदार द्वारा ‘अतिरिक्त निगरानी जमा’ के रूप में रखी गई 100% धनराशि से अलग रखा जाता है।
  • इसके चौथे चरण में, एक सप्ताह में एक ही बार व्यापार करने की अनुमति दिये जाने के साथ-साथ ‘अतिरिक्त निगरानी जमा’ राशि व्यापार मूल्य का 200% हो जाती है।
  • इसके पाँचवें चरण में, 200% की अतिरिक्त जमा के साथ एक महीने में एक बार (माह के पहले सोमवार को) ही व्यापार की अनुमति दी जाती है।
  • इसके छठे और अंतिम चरण में, कंपनियों पर अधिकतम प्रतिबंध लगाए जाते हैं। इस चरण में एक माह में एक बार ही व्यापार की अनुमति के साथ-साथ कीमतों में वृद्धि संबंधी अनुमति भी दी जाती है। इसके अंतर्गत निगरानी जमा राशि भी 200% होती है।

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड
 Securities and Exchange Board of India

  • यह भारतीय प्रतिभूति बाज़ार की नियामक संस्था है, जिसकी स्थापना वर्ष 1988 में हुई थी।
  • सेबी अधिनियम, 1992 के माध्यम से 30 जनवरी, 1992 को सेबी को वैधानिक शक्तियाँ प्रदान की गईं।
  • सेबी अर्द्ध-विधायी, अर्द्ध-न्यायिक और अर्द्ध-कार्यकारी तीनों प्रकार के कार्य संपादित करता है।
  • इसका मुख्यालय मुंबई में है।  इसके अलावा नई दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और अहमदाबाद में इसके क्षेत्रीय कार्यालय हैं।
  • इसका प्रमुख कार्य प्रतिभूति बाज़ार का नियमन करना तथा स्टॉक निवेशकों के हितों की रक्षा करना है।
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