चिल्का झील में समुद्री घास | 19 Jan 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यह दावा किया गया है कि भारत में कुल समुद्री घासों का लगभग 20% हिस्सा चिल्का झील में है। गौरतलब है कि यह घास ऑक्सीजन उत्पन्न करने और कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
प्रमुख बिंदु
- चिल्का विकास प्राधिकरण, झील के प्रबंधन हेतु मुख्य निकाय के अनुसार, चिल्का झील की वार्षिक निगरानी के दौरान होलोड्यूल यूनिनर्विस (Holodule Uninervis), होलोड्यूल पिनिफ़ोलिया (Holodule Pinifolia), हेलोफिला ओवलिस (Halophila Ovalis), हेलोफिला ओवेटा (Halophila Ovata) और हेलोफिला बीकेरी (Halophila Beccarii) जैसी समुद्री प्रजातियाँ पाई गईं।
- पिछले वर्ष चिल्का झील के 135 वर्ग किमी. क्षेत्र की तुलना में इस वर्ष 152 वर्ग किमी. क्षेत्र में समुद्री घासें पाई गई हैं।
- दुनिया भर में कम होती समुद्री घासों के मुकाबले भारत में इसकी वृद्धि जलीय पारिस्थितिकी के संदर्भ में सकारात्मक संदेश प्रस्तुत करती है। समुद्री घासों में वृद्धि तभी होती है जब पानी साफ होता है।
- समुद्री घासों में यह वृद्धि समुद्री मछलियों की महत्त्वपूर्ण प्रजातियों को प्राकृतिक आवास प्रदान करेगी और परिणामस्वरूप मत्स्यिकी क्षेत्र को भी बढ़ावा मिलेगा।
समुद्री घास
- यह समुद्री नितल पर उगने वाले लवणीय पुष्पीय पादप होते हैं।
- विश्व भर में समुद्री घासों की लगभग 60 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- इन घासों की उत्पत्ति छिछले सागरों के प्रकाशित मंडल में होती है ताकि इन्हें पर्याप्त प्रकाश की प्राप्ति हो सके।
पर्यावरणीय महत्त्व
- समुद्री घासें, सागरीय जल में घुलित ऑक्सीजन का प्रमुख स्रोत होती हैं जो जलीय जीवन के लिये आवश्यक हैं।
- समुद्री घासें जल में घुलित कार्बन डाइऑक्साइड का प्रकाश संश्लेषण में प्रयोग कर, ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में सहायक है।
- समुद्री घासें जलीय जीवों को भोजन एवं आवास भी उपलब्ध कराती हैं।