सीबकथॉर्न प्लांटेशन | 16 Mar 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य के ठंडे रेगिस्तानी इलाकों में सीबकथॉर्न (Seabuckthorn) के पौधों को लगाने का फैसला किया है।

प्रमुख बिंदु:

सीबकथॉर्न  प्लांटेशन के बारे में:

Seabuckthorn

  • यह एक झाड़ी (Shrub) होती है जो नारंगी-पीले रंग की खाने योग्य बेरों का उत्पादन करती है।
  • भारत में यह पौधा हिमालय क्षेत्र में ट्री लाइन से ऊपर पाया जाता है। आमतौर पर लद्दाख के सूखे क्षेत्रों और स्पीति के ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्रों में।
  • हिमाचल प्रदेश में इसे स्थानीय रूप से छरमा (Chharma) कहा जाता है जो लाहौल और स्पीति तथा  किन्नौर के कुछ हिस्सों में उगता है।
  • हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में एक बड़ा हिस्सा इससे आच्छादित है
  • सीबकथॉर्न प्लांटेशन (Seabuckthorn Plantation) के कई पारिस्थितिक, औषधीय और आर्थिक लाभ हैं।

पारिस्थितिक लाभ: 

  • सीबकथॉर्न का पौधा मिट्टी को बाँधे रखने में मदद करता है जो मिट्टी के क्षरण को रोकता है, नदियों में गाद की जांँच करता है और पुष्प जैव विविधता (Biodiversity) के संरक्षण में मदद करता है।
  • लाहौल घाटी में जहांँ बड़ी संख्या में विलो वृक्ष (Willow Trees) कीटों के हमले के कारण नष्ट हो रहे हैं, यह कठोर झाड़ी स्थानीय पारिस्थितिकी की रक्षा हेतु एक अच्छा विकल्प है।
  • यह झाड़ी शुष्क क्षेत्रों में अच्छी तरह से बढ़ती है, विशेष रूप से हिमालय के ग्लेशियरों में जहांँ पानी का प्रवाह कम तथा प्रकाश की अधिक मात्रा पहुंँचती है,  ऐसे में इसका महत्त्व और अधिकबढ़ जाता है।

औषधीय लाभ: 

  • स्थानीय चिकित्सा के रूप में सीबकथॉर्न का उपयोग व्यापक रूप से पेट, हृदय और त्वचा रोगों के इलाज में किया जाता है 
  • इसके फल और पत्तियांँ विटामिन, कैरोटीनोइड (Carotenoids ) तथा ओमेगा फैटी एसिड (Omega Fatty Acids) से भरपूर होती हैं यह उच्च ऊंँचाई तक पहुंँचने में सैनिकों की मदद कर सकती है
  • पिछले कुछ दशकों में वैश्विक वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा इसके कई पारंपरिक उपयोगों का समर्थन किया गया है

आर्थिक लाभ: 

  • सीबकथॉर्न का वाणिज्यिक महत्त्व भी है, क्योंकि इसका उपयोग रस, जेम, पोषण कैप्सूल आदि बनाने में किया जाता है।
  • यह ईंधन और चारे का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
  • हालांँकि उद्योगों को कच्चे माल के रूप में जंगली सीबकथॉर्न की लगातार आपूर्ति  करना संभव नहीं है, अत:  इसकी लगातार आपूर्ति को बनाए रखने के उद्देश्य से बड़े पैमाने पर इसकी खेती की जानी चाहिये, जैसा चीन में किया जाता है।

भारत में शीत मरुस्थल: 

  • भारत का शीत मरुस्थल हिमालय में स्थित है जो उत्तर में लद्दाख से लेकर दक्षिण में किन्नौर (हिमाचल प्रदेश राज्य) तक फैला है।
  • इस क्षेत्र में वर्षा बहुत कम होती है और बहुत अधिक ऊँचाई (समुद्र तल से 3000-5000 मीटर अधिक) जैसी कठोर जलवायु स्थितियाँ विद्यमान हैं, जो इसके वातावरण में ठंड बढ़ाती है।
  • इस क्षेत्र में बर्फीले तूफान, हिमपात और हिमस्खलन की घटनाएँ आम हैं।
  • यहाँ की मिट्टी बहुत उपजाऊ नहीं है और जलवायु की स्थिति बहुत कम मौसमों में भू- परिदृश्यों का निर्माण करती है।
  • इस क्षेत्र में जल संसाधन न्यूनतम हैं ।

ट्री लाइन: 

  • ट्री लाइन निवास की वह सीमा है जिस पर पेड़ वृद्धि करने में सक्षम होते हैं। यह उच्च ऊंँचाई और उच्च अक्षांश पर पाई जाती है। 
  • ट्री लाइन से आगे पेड़ पर्यावरणीय परिस्थितियों (आमतौर पर ठंडे तापमान, अत्यधिक स्नोपैक, या नमी की कमी) को सहन नहीं कर सकते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस