शासन व्यवस्था
एसडीजी शहरी सूचकांक: नीति आयोग
- 24 Nov 2021
- 6 min read
प्रिलिम्स के लिये:एसडीजी शहरी सूचकांक मेन्स के लिये:सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु भारत द्वारा किये गए प्रयास, भारत-जर्मन सहयोग |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत-जर्मन सहयोग के तहत नीति आयोग ने ‘सतत् विकास लक्ष्य (SDG) शहरी सूचकांक और डैशबोर्ड’ 2021-22 जारी किया।
- इससे पूर्व जून 2021 में ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (SDG) इंडिया इंडेक्स और डैशबोर्ड 2020-21’ का तीसरा संस्करण जारी किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- सूचकांक और डैशबोर्ड नीति आयोग और जर्मनी की ‘अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी’ (GIZ) तथा BMZ के बीच सहयोग का परिणाम है, जो भारत-जर्मन विकास सहयोग के तहत शहरों में एसडीजी स्थानीयकरण के क्रियान्वयन पर केंद्रित है।
- इसमें एसडीजी ढाँचे के 46 लक्ष्यों में 77 एसडीजी संकेतकों पर 56 शहरी क्षेत्रों को रैंक प्रदान करना है।
- यह एसडीजी स्थानीयकरण को और मज़बूत करेगा तथा शहर स्तर पर मज़बूत एसडीजी निगरानी सुनिश्चित करेगा।
- रैंकिंग स्केल:
- शहरी क्षेत्रों को 0-100 के पैमाने पर रैंक प्रदान किया गया है।
- 100 के स्कोर का अर्थ है कि शहरी क्षेत्र ने वर्ष 2030 के लिये निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त कर लिया है; 0 के स्कोर का अर्थ है कि यह शहरी क्षेत्रों में लक्ष्यों को प्राप्त करने से कफी दूर है।
- शहरी क्षेत्र के समग्र प्रदर्शन को मापने के लिये लक्ष्यवार स्कोर से समग्र शहरी क्षेत्र का स्कोर प्राप्त किया जाता है।
- शहरी क्षेत्रों को उनके समग्र स्कोर के आधार पर निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
- आकांक्षी: 0-49
- परफॉर्मर: 50-64
- फ्रंट-रनर: 65-99
- अचीवर: 100
- राज्यों का प्रदर्शन:
- शीर्ष प्रदर्शनकर्त्ता:
- शिमला, कोयंबटूर, चंडीगढ़, तिरुवनंतपुरम और कोच्चि।
- सबसे खराब प्रदर्शनकर्त्ता:
- धनबाद, मेरठ, ईटानगर, गुवाहाटी और पटना।
- शीर्ष प्रदर्शनकर्त्ता:
- सूचकांक का महत्त्व:
- शहर तीव्र गति से विकास का इंजन बन रहे हैं। ‘एसडीजी अर्बन इंडेक्स और डैशबोर्ड’ शहरों में एक मज़बूत एसडीजी निगरानी प्रणाली स्थापित करने हेतु महत्त्वपूर्ण है और यह भारत की एसडीजी स्थानीयकरण यात्रा में एक अनिवार्य भूमिका अदा करेगा।
- नीति आयोग का विचार है कि भारत में विकास के मार्ग को निर्धारित करने में शहरों और शहरी क्षेत्रों की बढ़ती प्रमुखता को देखते हुए यह परिवर्तनकारी बदलाव काफी आवश्यक है।
- यह शहरी स्थानीय निकाय (ULB) स्तर के डेटा, निगरानी और रिपोर्टिंग सिस्टम की शक्ति और अंतराल पर प्रकाश डालता है।
- शहर तीव्र गति से विकास का इंजन बन रहे हैं। ‘एसडीजी अर्बन इंडेक्स और डैशबोर्ड’ शहरों में एक मज़बूत एसडीजी निगरानी प्रणाली स्थापित करने हेतु महत्त्वपूर्ण है और यह भारत की एसडीजी स्थानीयकरण यात्रा में एक अनिवार्य भूमिका अदा करेगा।
भारत-जर्मन विकास सहयोग:
- पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2008 में भारत-जर्मन विकास सहयोग के 50 वर्ष पूरे हुए हैं। 1950 के दशक में शुरू हुआ भारत-जर्मन सहयोग इतनी तेज़ी से बढ़ा कि कुछ ही समय में भारत जर्मन विकास सहायता का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता बन गया।
- ओडिशा में ‘राउरकेला स्टील प्लांट’ का निर्माण 1960 के दशक की शुरुआत में इस गहन सहयोग का उदहारण था।
- बाद में दोनों देशों ने भारत के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में से एक मद्रास में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना की।
- 1990 के दशक में दोनों देशों ने गरीबी में कमी एवं सामाजिक बुनियादी ढाँचे के विकास के क्षेत्र में सहयोग किया।
- परिचय:
- भारत-जर्मन विकास सहयोग भारत-जर्मन रणनीतिक साझेदारी का एक मुख्य स्तंभ है।
- दोनों देश सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों (Millennium Development Goals- MDG) को प्राप्त करने के लिये समान रूप से प्रतिबद्ध हैं, इसके अलावा वे जलवायु और पर्यावरण के क्षेत्र में वैश्विक चुनौतियों से निपटना चाहते हैं।
- यह भारत और जर्मनी के बीच संबंधों के नीतिगत ढाँचे में बेहतर रूप से एकीकृत है।
- जर्मनी द्वारा भारत को वैश्विक विकास भागीदारों में से एक के रूप में देखा जाता है जिसकी वैश्विक विकास के मुद्दों को हल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- कार्यक्रम केंद्र:
- वर्तमान में भारत-जर्मन विकास सहयोग कार्यक्रम निम्नलिखित पारस्परिक रूप से सहमत प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर केंद्रित है:
- ऊर्जा
- प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन
- सतत् शहरी विकास
- वर्तमान में भारत-जर्मन विकास सहयोग कार्यक्रम निम्नलिखित पारस्परिक रूप से सहमत प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर केंद्रित है: