हरदित सिंह मलिक | 09 Mar 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इंग्लैंड द्वारा 20वीं शताब्दी के शुरुआती दौर के सिख फाइटर पायलट “हरदित सिंह मलिक” (Hardit Singh Malik) की प्रतिमा/मूर्ति के डिज़ाइन को मंज़ूरी दी गई है, जिसे साउथेम्प्टन के बंदरगाह शहर (Port City of Southampton) में एक नए शहीद स्मारक में स्थापित किया जाएगा।
- इस शहीद स्मारक को विश्व युद्ध में लड़ने वाले सभी भारतीयों की याद में बनाया गया है।
- शहीद स्मारक को अंग्रेज़ी मूर्तिकार ल्यूक पेरी (Luke Perry) द्वारा बनाया जाएगा।
प्रमुख बिंदु:
हरदित सिंह मलिक के बारे में:
- जन्म:
- इनका जन्म 23 नवंबर, 1894 में अविभाजित भारत के रावलपिंडी के एक सिख परिवार में हुआ था।
- कॅरियर :
- हरदित सिंह मलिक पहली बार वर्ष 1908 में 14 वर्ष की उम्र में ब्रिटेन पहुंँचे जहाँ उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के बैलिओल कॉलेज में प्रवेश लिया।
- वे प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान रॉयल फ्लाइंग कॉर्प्स (Royal Flying Corps) के सदस्य बने।
- ये पहले भारतीय थे जो विशिष्ट हेलमेट के साथ पगड़ी वाले पायलट के रूप में जाने गए तथा "फ्लाइंग सिख" के रूप में प्रसिद्ध हुए।
- मलिक ने ससेक्स ( दक्षिणी इंग्लैंड का एक शहर) के लिये क्रिकेट भी खेला तथा भारतीय सिविल सेवा में एक लंबे और विशिष्ट कॅरियर के बाद फ्रांँस में भारतीय राजदूत के पद पर कार्य किया।
- मृत्यु:
- इनका निधन 31 अक्तूबर, 1985 को नई दिल्ली में हुआ।
प्रथम विश्व युद्ध में भारत का योगदान:
- प्रथम विश्व युद्ध:
- प्रथम विश्व युद्ध (WW I) जिसे महान युद्ध (Great War) के रूप में भी जाना जाता है, जुलाई 1914 से नवंबर 1918 तक चला।
- प्रथम विश्व युद्ध मित्र देशों और केंद्रीय शक्तियों के मध्य हुआ था।
- मित्र शक्ति देश: इनमें फ्रांँस, रूस और ब्रिटेन शामिल थे। अमेरिका भी वर्ष 1917 के बाद से मित्र राष्ट्रों की तरफ से लड़ाई में शामिल हो गया।
- केंद्रीय शक्ति देश: इनमें जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, ओटोमन साम्राज्य और बुल्गारिया शामिल थे।
- भारत ने युद्ध में ब्रिटेन का भरपूर सहयोग किया।
- भारत द्वारा ब्रिटेन को युद्ध में 100 मिलियन ब्रिटिश पाउंड की मदद इस उम्मीद से की गई कि बदले में भारतीयों को युद्ध समाप्ति के बाद स्वशासन प्राप्त होगा।
- ब्रिटिशों ने भारतीय पुरुषों और धन का उपयोग किया, साथ ही युद्ध में ब्रिटिश कराधान नीतियों द्वारा एकत्र भोजन, नकदी और गोला-बारूद की बड़ी मात्रा में आपूर्ति की गई।
- बदले में ब्रिटिशों द्वारा युद्ध समाप्ति के बाद भारतीयों को स्वशासन देने का वादा किया गया जो कि अंततः नहीं दिया गया था।
- सैनिक:
- मित्र देशों की तरफ से बड़ी संख्या में युद्ध में लड़ने के लिये स्वयंसेवकों को भेजा गया।
- लगभग 1.5 मिलियन मुस्लिम, सिख और हिंदू पुरुष पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु एवं बिहार से भारतीय अभियान बल में स्वेच्छा से शामिल हुए जो पूर्वी सीमा, मेसोपोटामिया, मिस्र और गैलीपोली में पश्चिमी मोर्चे पर लड़ने गए।
- इनमें से लगभग 50,000 स्वयंसेवक मारे गए, 65,000 घायल हुए तथा 10,000 के लापता होने की सूचना दी गई, जबकि भारतीय सेना की 98 नर्सों की मौत हो गई थी।
- अन्य आपूर्ति:
- देश द्वारा 1,70,000 जानवरों तथा ब्रिटिश सरकार को सैंडबैग (Sandbags) हेतु 3.7 मिलियन टन जूट की आपूर्ति की गई।
द्वितीय विश्व युद्ध में भारत का योगदान:
- द्वितीय विश्व युद्ध के बारे में:
- द्वितीय विश्व युद्ध वर्ष 1939-45 के बीच हुआ तथा इसका प्रभाव विश्व के हर हिस्से पर पड़ा।
- द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल देश:
- केंद्रीय शक्ति: इसमें जर्मनी, इटली और जापान शामिल थे।
- मित्र शक्ति देश: इसमें फ्रांँस, ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और कुछ हद तक चीन शामिल था।
- भारतीयों ने बड़ी संख्या में युद्ध में बलिदान दिया। भारतीयों से किया गया स्वतंत्रता का वादा भी पूरा नहीं किया गया इसलिये संबद्ध शक्तियों द्वारा भारत की काफी हद तक उउपेक्षा की गई थी।
- सैनिक:
- लगभग 2.5 मिलियन भारतीय सैनिकों ने द्वितीय विश्व युद्ध में हिस्सा लिया।
- 36,000 से अधिक भारतीय सैनिकों ने अपनी जान गंँवाई, 34,000 घायल हुए और 67,000 को युद्धबंदी बना लिया गया।
- उनके ज़ज्बे की पूर्वी और उत्तरी अफ्रीका, इटली, बर्मा तथा सिंगापुर, मलय प्रायद्वीप, गुआम व इंडो-चीन में दूर-दूर तक सराहना की गई।
- युद्ध में भारतीय वायु सेना के पायलटों की साहसिक भूमिका को दस्तावेज़ों में अच्छी तरह से प्रलेखित किया गया है।
- पूर्व में ब्रिटिश भारतीय सेना के हिस्से के रूप में भारतीय सैनिकों ने जापान के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अंततः दक्षिण-पूर्व एशिया जिसमें सिंगापुर, मलय प्रायद्वीप और बर्मा शामिल हैं पर विजय प्राप्त की।
- अन्य आपूर्ति:
- इस दौरान ब्रिटिश भूमि और अन्य देशों में सेवाएँ देने वालों में भारतीय डॉक्टर और नर्सें भी शामिल थीं।
- भारत द्वारा युद्ध में भाग लेने वाले सैनिकों और युद्ध में बंदी बनाए गए एशियाई कैदियों हेतु गर्म कपड़े और अन्य वस्तुओं के साथ 1.7 मिलियन से अधिक खाद्य पैकेटों की आपूर्ति की गई।