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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

एस.सी.ओ. में भारत की पूर्ण सदस्यता : एक बड़ी कूटनीतिक सफलता

  • 03 Jun 2017
  • 6 min read

संदर्भ
लगभग डेढ़ दशक के प्रयास के बाद रूस एवं चीन दोनों देशों ने भारत को एस.सी.ओ. (SCO) की पूर्ण सदस्यता प्रदान करने की बात कही है। साथ ही, यह भी कहा है कि अगले हफ्ते 8 एवं  9 जून को अस्ताना, कज़ाकिस्तान में होने वाले एस.सी.ओ. के शिखर सम्मलेन, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी हिस्सा लेंगे, वहीं भारत को इस संगठन के पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि यह फैसला जहाँ भारत की कूटनीतिक जीत को दर्शाता है, वहीं इससे भारत को विभिन्न भू-राजनीतिक लाभ भी मिलने की संभावना है। 

मुख्य बिंदु

  • गौरतलब है कि जहाँ रूस ने भारत के नाम की घोषणा की है वहीं चीन ने भारत के साथ पाकिस्तान के नाम को भी प्रस्तावित किया है। इसे में अगर कोई अन्य गतिरोध उत्पन्न नहीं होता है तो भारत और पाकिस्तान दोनों को ही एस.सी.ओ. की पूर्ण सदस्यता प्राप्त हो जाएगी। 
  • भारत को यह सदस्यता अगले हफ्ते अस्ताना, कज़ाकिस्तान में एस.सी.ओ. के राजनीतिक और सुरक्षा  सम्मलेन  में दी जाएगी।  
  • ज्ञातव्य है कि रूस की तरफ से भारत को पूर्ण सदस्यता देने की प्रक्रिया  2015 की उफा, रूस बैठक से ही प्रारंभ की जा चुकी थी। वैसे भी, रूस हमेशा से भारत को इस संगठन की पूर्ण सदस्यता देने के पक्ष में रहा है, वहीं पाकिस्तान का प्रस्ताव चीन द्वारा प्रेरित था।  

शंघाई  सहयोग संगठन  (SCO) 

  • शंघाई सहयोग संगठन एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसका गठन 2001 में शंघाई में किया गया था।  
  • वास्तव में इसकी स्थापना 1996 में गठित शंघाई पाँच (Sanghai five) संगठन से हुई, जिसके सदस्य  देश  चीन, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान थे।   
  • वर्ष 2001 में उज़्बेकिस्तान को भी इसमें शामिल किया गया और संगठन का नाम बदलकर शंघाई सहयोग संगठन रखा दिया गया। 
  • वर्तमान में रूस, कज़ाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान एवं चीन इस संगठन के पूर्ण सदस्य हैं। 
  • इनके अलावा, पर्यवेक्षक के रूप में भारत, पाकिस्तान, ईरान और मंगोलिया भी इसमें शामिल किया गया है।  ये सभी देश जुलाई 2005 में कज़ाकिस्तान के अस्ताना में आयोजित इसकी पाँचवी बैठक में पहली बार शामिल हुए।  
  • इस संगठन की आधिकारिक भाषा चीनी और रूसी है और इसका मुख्यालय बीजिंग में है। 
  • एस.सी.ओ. एक राजनीतिक, आर्थिक एवं सैन्य संगठन है जिसका मुख्य कार्य मध्य एशिया में स्थिरता को मज़बूत बनाना है, लेकिन यह आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को मज़बूत करने की दिशा में भी कार्य करता है। आपदा की स्थिति में सदस्य देशों में सूचनाओं का आदान-प्रदान करना, एक दूसरे को विशेष उपकरण उपलब्ध करना, नागरिक सुविधाओं में एक-दूसरे की मदद करना, वित्तीय-आर्थिक-रणनीतिक और मानव सहायता देना इसके महत्त्वपूर्ण कार्यों में शामिल हैं। 

पूर्ण सदस्यता से भारत को कौन- कौन से लाभ हो सकतें हैं?

  • सीमा विवाद का हल- चीन एवं पाकिस्तान दोनों के साथ भारत का सीमा विवाद है तथा दोनों के साथ बातचीत के लिये एस.सी.ओ. एक उपयुक्त मंच हो सकता है। 
  • कुछ रुकी हुई परियोजनाओं को प्रारंभ करने के लिये उपयुक्त वातावरण निर्मित हो सकता है, जैसे ईरान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइपलाइन तथा ‘तापी’ (TAPI)- तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइपलाइन को प्रारंभ करने के लिये बातचीत का अवसर प्राप्त हो सकता है। 
  • एस.सी.ओ. की सदस्यता भारत के लिये ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी लाभकारी हो सकती है, क्योंकि संगठन के सभी सदस्य राष्ट्र ऊर्जा संशाधनों से संपन्न हैं। 
  • इसके अतिरिक्त, यह संगठन भारत और पाकिस्तान को भी बातचीत के लिये एक मंच प्रदान कर सकता है। इससे दोनों देशों के मध्य शांति प्रक्रिया की पहल के लिये एक और अवसर प्राप्त हो सकता है। 

निष्कर्ष 
भारत के साथ पाकिस्तान को भी एस.सी.ओ. की पूर्ण सदस्यता की पेशकश इस क्षेत्र की भू-राजनीतिक स्थिरता के दृष्टिकोण से अति महत्त्वपूर्ण है। साथ ही, एस.सी.ओ. की सदस्यता दोनों देशों के लिये एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक, रणनीतिक व भू-राजनीतिक अवसर के रूप में भी होगी। हालाँकि, कौन इस अवसर का कितना दोहन कर पाता है वो उसकी कूटनीतिक क्षमता पर निर्भर करेगा। इसलिये भारत को एस.सी.ओ. को सर्वाधिक प्राथमिकता देते हुए रूस एवं चीन के साथ मिलकर इस सदस्यता का पूर्ण लाभ उठाना होगा।

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