उत्तर प्रदेश में 'प्राचीन नदी' की खुदाई | 01 Oct 2019
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने प्रयागराज (इलाहाबाद) में एक पुरानी, सूख चुकी नदी की खुदाई शुरू की है। सूख चुकी यह नदी गंगा और यमुना नदियों को जोड़ती थी।
- सूख चुकी यह नदी लगभग 4 किमी चौड़ी, 45 किमी लंबी है और इसमें मिट्टी के नीचे दबी 15- मीटर मोटी परत शामिल है।
- केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के तहत आने वाले निकाय नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (NMCG) के अधिकारियों के अनुसार, इस नदी को संभावित भूजल पुनर्भरण स्रोत के रूप में विकसित करना है।
- इस नदी का भूभौतिकीय सर्वेक्षण कार्य राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (National Geophysical Research Institute- NGRI) और केंद्रीय भू-जल बोर्ड (Central Groundwater Board) के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किया गया था।
केंद्रीय भू-जल बोर्ड (Central Groundwater Board)
मंत्रालय: जल शक्ति मंत्रालय
अधिदेश:
- भारत के भूजल संसाधनों के आर्थिक एवं पारिस्थितिकी कुशलता विकसित करना।
- साम्यता के सिद्धांतों के आधार पर वैज्ञानिक और सतत विकास प्रबंधन।
- भूजल संसाधनों के प्रबंधन हेतु अन्वेषण, आकलन, संरक्षण, संवर्धन, प्रदूषण से सुरक्षा तथा वितरण सहित प्रौद्योगिकी का विकास एवं प्रचार-पसार करना।
- राष्ट्रीय नीतियों की मॉनीटरिंग एवं कार्यान्वयन करना।
भविष्यि दृष्टि: देश के भूजल संसाधनों का स्थायी विकास और प्रबंधन।
स्थापना: वर्ष 1970 में कृषि मंत्रालय के तहत समन्वेषी नलकूप संगठन को पुन:नामित कर केंद्रीय भूमि जल बोर्ड की स्थापना की गई थी। वर्ष 1972 के दौरान इसका समामेलन भूविज्ञान सर्वेक्षण के भूजल विभाग के साथ कर दिया गया था। वर्तमान में यह जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत है।
मुख्यालय: फरीदाबाद (हरियाणा)
राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान
(National Geophysical Research Institute- NGRI)
- राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) की एक संघटक अनुसंधान प्रयोगशाला है।
- इसकी स्थापना पृथ्वी तंत्र की अत्यधिक जटिल संरचना एवं प्रक्रियाओं के बहुविषयी क्षेत्रों और उसके व्यापक रूप से आपस में जुड़े उपतंत्रों में अनुसंधान करने के उद्देश्य से वर्ष 1961 में की गई थी।
- अनुसंधान गतिविधियाँ मुख्य रूप से तीन विषयों भूगतिकी, भूकंप जोखिम और प्राकृतिक संसाधन के अंतर्गत होती हैं।
- NGRI उन प्राथमिक भू-संसाधनों की पहचान करने के लिये तकनीकों के कार्यान्वयन को समाविष्ट करता है, जो मानवीय सभ्यता के स्तम्भ हैं और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों एवं खनिजों के साथ-साथ भूजल, हाइड्रोकार्बन जैसे आर्थिक वृद्धि के स्रोत हैं।