लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भ्रूण - जीन एडिटिंग का पहला सफल प्रयास

  • 03 Aug 2017
  • 5 min read

संदर्भ
गौरतलब है कि संयुक्त राज्य अमेरिका के वैज्ञानिकों द्वारा मानव भ्रूण में जीन एडिटिंग (gene editing) का सफल प्रयोग किया गया| इस प्रयोग की सफलता के परिणामस्वरूप अब विज्ञान के समक्ष तकरीबन 10 हज़ार आनुवंशिक गड़बड़ियों का इलाज़ करने संबंधी रास्ते खुलने की उम्मीद दिखी है| वस्तुतः जीन एडिटिंग का प्रभाव न केवल वर्तमान पीढ़ी के जीवन को सरल बनाएगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की बहुत सी जेनेटिक कमियों का भी निवारण कर देगा| इस प्रयोग के कारण जहाँ नई दवाओं के निर्माण एवं परिवर्तनों को लेकर उम्मीद जगी है, वहीं दूसरी ओर इसने नैतिकता के पक्ष को लेकर भी चिंता जगाई है| 

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि पिछले कुछ समय से वैज्ञानिकों की एक टीम के द्वारा इस संबंध में गहन अध्ययन एवं प्रयास किये जा रहे थे| डी.एन.ए. में काट - छांट की तकनीक के क्षेत्र में वर्ष 2015 में आई एक नई तकनीक क्रिस्पर (Crispr) का बहुत बड़ा योगदान रहा है| 
  • दवाओं के निर्माण में भी इस तकनीक का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जा रहा है| इसके ज़रिये ऐसी आनुवंशिक गड़बड़ियों, जिनसे सिस्टिक फाइब्रोसिस से लेकर स्तन कैंसर जैसे रोग होने का खतरा रहता है, को शरीर से पूरी तरह से बाहर किया जा सकता है|
  • गौरतलब है कि हाल ही में नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, पिछले कुछ समय से अमेरिकी वैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा मानव भ्रूण में आनुवंशिक सुधार करने संबंधी प्रक्रिया को गर्भाधान के समय प्रारंभ किया गया|
  • इसके लिये हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी से पीड़ित एक शख्स के स्पर्म को किसी महिला द्वारा दान किये गए स्वस्थ अंडों में इंजेक्शन के जरिये प्रवेश कराया गया | तत्पश्चात् भ्रूण में विकसित हुई खराबियों को ठीक करने के लिये क्रिस्पर तकनीक का इस्तेमाल किया गया|
  • हालाँकि, ऐसा नहीं है कि इस तकनीक के इस्तेमाल द्वारा सभी भ्रूणों में उपस्थित खराबियों का शत-प्रतिशत इलाज़ संभव हो पाता है| तथापि, इससे 72 फीसदी भ्रूणों को ठीक करने में अवश्य कामयाबी हासिल हुई है|
  • ध्यातव्य है कि इसके पहले वर्ष 2015 में चीन में क्रिस्पर तकनीक के इस्तेमाल की कोशिश की गई थी, लेकिन चीनी वैज्ञानिक पूरी तरह से कोशिकाओं को ठीक करने में कामयाब नहीं हो पाए, परिणामस्वरूप भ्रूण में बीमार कोशिकाएँ भी रह गई| 
  • हालाँकि इस प्रक्रिया के सुरक्षा संबंधी पक्षों के संदर्भ में अभी तक वैज्ञानिकों द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है| इस विषय में अभी अध्ययन कार्य किया जा रहा है| अत: अभी यह कहना कठिन होगा कि यह इस तकनीक का इस्तेमाल आम ज़िंदगी में अब शुरू किया जाएगा|

डिज़ाइन बच्चे की अवधारणा 

  • इस संबंध में एक और बात के विषय में गौर करने की आवश्यकता है वह यह कि इस तकनीक के इस्तेमाल से बच्चे को आनुवंशिक बीमारियों से तो बचाया जा सकता है, लेकिन इससे डिज़ाइन बच्चे पैदा होने की संभावनाओं के विषय में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है| 
  • वस्तुतः इसकी सबसे बड़ी समस्या इसका नैतिक पक्ष है| विशेषज्ञों के अनुसार, मानव डी.एन.ए. में बदलाव करके हम आनुवंशिक बीमारियों को अगली पीढ़ी में प्रसार को तो रोक सकते हैं, परंतु डिज़ाइन बच्चे की अवधारणा के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान कैसे करेंगे|
  • हर कोई अपनी पसंद के अनुरूप बच्चे को डिज़ाइन करने की इच्छा प्रकट करेगा, जो कि जन्म के संबंध में प्रकृति के नियमों की अवहेलना करने के समान होगा| अत: इस संबंध में गंभीरता से विचार किया जाना चाहिये, साथ ही इस तकनीक के गलत तरीके से इस्तेमाल को रोकने के लिये कुछ दिशा-निर्देश भी जारी किये जाने चाहिये|
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2