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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संकेतक

  • 03 Oct 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये 

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संकेतक, विश्व बौद्धिक संपदा संगठन

मेन्स के लिये:

भारत में गुणवत्तापूर्ण नवाचारों की कमी 

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) ने अगस्त, 2020 में वर्ष 2019-20 के लिये नवीनतम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संकेतक (Science & Technology Indicators- STI) जारी किये थे।

प्रमुख बिंदु:

  • नवीनतम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संकेतकों के अनुसार, भारत नवाचार के संदर्भ में अभी भी उत्कृष्ट स्तर तक नहीं पहुँचा है।   
    • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कुशल होने के बावजूद देश में विलक्षण रूप से अच्छे विचारों की कमी दिखाई देती है इसीलिये किसी भी भारतीय उत्पाद या व्यावसायिक मॉडल ने वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान नहीं बनाई है।

STI रिपोर्ट:

  • STI रिपोर्ट से पता चला कि वर्ष 2005-06 और वर्ष 2017-18 के बीच देश में कुल 510000 पेटेंट आवेदन दाखिल किये गए थे किंतु इनमें से तीन-चौथाई से अधिक विदेशी संस्थाओं या व्यक्तियों द्वारा दाखिल किये गए थे। अर्थात् इन 13 वर्षों में भारतीयों की ओर से केवल 24% पेटेंट आवेदन दाखिल किये गए।
  • विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organisation- WIPO) के अनुसार, दाखिल किये गए पेटेंट आवेदनों की संख्या के आधार पर भारत 7वें स्थान पर है।

आईबीएम इंस्टीट्यूट फॉर बिज़नेस वैल्यू की रिपोर्ट:

  • आईबीएम इंस्टीट्यूट फॉर बिज़नेस वैल्यू (IBM Institute for Business Value) की एक रिपोर्ट में कहा गया कि यद्यपि भारत एक विशाल बाज़ार एवं मज़बूत जनसांख्यिकी वाला देश है किंतु यहाँ अधिकांश स्टार्ट-अप विफल हो गए हैं क्योंकि उनके पास नई प्रौद्योगिकियों के आधार पर अग्रणी विचारों की कमी है और अद्वितीय व्यावसायिक मॉडल भी नहीं हैं।
    • आईबीएम ने पाया कि भारतीय स्टार्ट-अप्स सफल विचारों को कहीं और से कॉपी करना पसंद करते हैं और स्थानीय बाज़ारों में इन सफल कॉन्सेप्ट्स को लघु स्तर पर लागू करके कीमत सृजन पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
    • भारतीय सफल विचारों को कहीं और से कॉपी करने में या अपने जुगाड़ को बढ़ावा देने में बहुत गर्व करते हैं।

जुगाड़ आधारित नवाचार: 

  • इसे कुछ विश्लेषकों द्वारा किफायती नवाचार (Frugal Innovation) भी कहा गया है। जबकि कुछ लोगों का मानना है कि यह हमारी रचनात्मकता को दर्शाता है किंतु क्या हमने कोई भी ऐसा स्टार्ट-अप बनाया है जिसका मूल्य $ 1 बिलियन से अधिक हो।
  • वहीं भारत सरकार द्वारा 100 से अधिक चीनी एप पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद इस तरफ किसी का ध्यान ही नहीं गया कि प्रतिबंधित एप्स का कोई भी भारतीय विकल्प क्यों नहीं मौजूद है।
  • गौरतलब है कि चीन लंबे समय तक संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान से अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट आवेदन दाखिल करने के मामले में शीर्ष स्थान पर रहा है जिसके कारण कई चीनी उत्पादों को वैश्विक स्तर पर पहचान मिली है। जैसे- हुआवेई। 

भारतीयों द्वारा पेटेंट आवेदन में कमी के कारण: भारतीयों द्वारा पेटेंट आवेदनों में कमी के लिये विश्लेषकों द्वारा निम्नलिखित कारण बताए गए हैं:  

  • निजी क्षेत्र और भारत सरकार द्वारा अनुसंधान एवं विकास में कम निवेश
  • उच्च शिक्षा की दयनीय स्थिति
  • विभिन्न क्षेत्रों में कुशल कर्मियों की कमी एवं अयोग्यता

समाधान:

  • प्रमुख संस्थानों विशेष रूप से विश्वविद्यालयों में शोध सामग्री को अपग्रेड किया जाना चाहिये।
  • R & D में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • शुद्ध अनुसंधान (Pure Research) को अनुप्रयुक्त अनुसंधान (Applied Research) का हिस्सा बनाया जाना चाहिये जिससे इसे विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट किया जा सकता है और नवाचार को बढ़ावा दिया जा सकता है।
    • उद्योगों ने आमतौर पर शिकायत की है कि वे फंड की कमी और स्टार्ट-अप के लिये अनुकूल माहौल से प्रभावित हैं। 

आगे की राह:

  • जुगाड़ जैसे नवाचार अल्पकालिक समाधान प्रदान करते हैं किंतु नवाचार को आगे बढ़ाने के लिये शुद्ध शोध की आवश्यकता होती है, जो तब संभव है जब भारतीय नए एवं मूल विचारों के साथ आएंगे। 
  • विकासशील देशों के अनुभव से पता चलता है कि जो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नवाचार नीतियाँ राष्ट्रीय विकास रणनीतियों में अच्छी तरह से एकीकृत हैं वे संस्थागत एवं संगठनात्मक परिवर्तनों के साथ मिलकर उत्पादकता बढ़ाने, फर्म प्रतिस्पर्द्धा में सुधार करने, तेज़ी से विकास का समर्थन करने और नौकरियाँ उत्पन्न करने में मदद कर सकती हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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