आर्कटिक विज्ञान समझौता | 08 Nov 2017

चर्चा में क्यों?

शोधकर्त्ताओं के अनुसार, आर्कटिक में अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सहयोग (International scientific collaboration) अमेरिका और रूस सहित बहुत से देशों (उन सभी देशों साहित जोकि भू-राजनीतिक संघर्ष की समस्या का सामना कर रहे है) के समान हितों को संरेखित करने में मददगार साबित हो सकता है। 

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि इसी वर्ष अमेरिका एवं रूस सहित आठ आर्कटिक देशों के विदेश मंत्रियों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय आर्कटिक वैज्ञानिक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे। इस समझौते का उद्देश्य क्षेत्र विशेष में जलवायु परिवर्तन से संबंधित पक्षों के विषय में अध्ययन करना तथा इस संबंध में विज्ञानिक सहयोग प्रदान करना है।
  • ध्यातव्य है कि इस समझौते को आर्कटिक विज्ञान समझौते (Arctic Science Agreement) के रूप में भी जाना जाता है। 
  • यह समझौता इस बात के जोखिम को कम करता है कि अल्पावधि घरेलू नीति में बदलाव किये जाने से आर्कटिक क्षेत्र वाले देशों के संबंधों पर भी असर पड़ेगा। 
  • इसके अतिरिक्त यह समझौता पहले के दुर्गम डेटा का विस्तार और प्रसार करने के लिये देशों में अनुसंधान प्लेटफार्मों की स्थिरता को भी बढ़ावा प्रदान करता है। 
  • इतना ही नहीं यह इस क्षेत्र में समुद्री, स्थलीय, वायुमंडलीय और मानव-केंद्रित परिवर्तनों की व्याख्या करने तथा अध्ययन एवं शोध के लिये निरंतर आवश्यक डेटा भी उपलब्ध कराएगा।
  • असल में, आर्कटिक विज्ञान समझौता इस क्षेत्र के सभी देशों की क्षमता को बढ़ावा देने पर भी बल देता है ताकि ऐसे डेटा को सबूतों और विकल्पों के साथ एकीकृत किया जा सके, जो आर्कटिक स्थिरता के बारे में फैसला करने में योगदान करते हैं।
  • स्पष्ट रूप से इस संबंध में वैश्विक परिदृश्य में वर्तमान और भावी पीढ़ियों से जुड़े मुद्दों, प्रभावों और संसाधनों को संबोधित किये जाने की ज़रुरत है, ताकि आने वाली पीढीयों को एक सुरक्षित भविष्य दिया जा सके।

निष्कर्ष

आर्कटिक विज्ञान समझौते के संबंध में शोधकर्त्ताओं द्वारा अंतर्राष्ट्रीय आर्कटिक सहयोग (international Arctic collaboration – IAC) के इतिहास की जाँच की गई। ध्यताव्य है कि आई.ए.सी. की शुरुआत 1950 के दशक में की गई थी। तब से लेकर अभी तक यह निरंतर आगे बढ़ता जा रहा है। इस सहयोग समझौते के संबंध में शोधकर्त्ताओं द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि यदि सही रूप में प्रयोग किया जाए तो विज्ञान भी कूटनीति के निर्धारण में अहम् भूमिका का निर्वाह कर सकता है। इतना ही नहीं बल्कि यह देशों के मध्य विद्यमान आपसी संघर्ष को कम करते हुए सहयोग को भी बढ़ावा प्रदान करता है तथा आर्कटिक क्षेत्र में संघर्ष को भी रोकता है, जैसा कि अमेरिका और रूस के मामले में देखा गया।