सर्वोच्च न्यायालय ने किया अपनी असाधारण शक्तियों का उपयोग | 31 Jul 2017

संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय ने लोखंडवाला कटारिया कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड और निसस फाइनेंस एवं इनवेस्टमेंट मैनेजर एलएलपी के बीच वित्तीय विवाद को शांत करने के लिये संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत "पूर्ण न्याय" करने की अपनी असाधारण संवैधानिक शक्तियों का उपयोग किया।

प्रमुख बिंदु 

  • दिवाला और दिवालियापन संहिता 2016 (Insolvency and Bankruptcy Code 2016) के तहत, यदि राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय अधिकरण यदि किसी कॉर्पोरेट दिवालियापन प्रस्ताव की प्रक्रिया शुरू करती है, तो उस मामले को वापस नहीं लिया जा सकता है, भले ही दोनों पक्षों ने मामले को वापस लेने का फैसला कर लिया हो। परंतु,  संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय ऐसे विवादों को सुलझाने के लिये इज़ाज़त दे सकता है।

 

क्या कहता है अनुच्छेद 142 ?

  • उच्चतम न्यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकेगा या ऐसा आदेश कर सकेगा, जो उसके समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिये आवश्यक हो और इस प्रकार पारित डिक्री या किया गया आदेश भारत के राज्य क्षेत्र में सर्वत्र ऐसी रीति से, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाए और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है, तब तक, ऐसी रीति से जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विहित करे, प्रवर्तनीय होगा। 

राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय अधिकरण ( NCLAT ) क्या है ?

  • राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय अधिकरण  (NCLAT) का गठन कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 410 के तहत राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण  (NCLT) के आदेश के खिलाफ 1 जून, 2016 से प्रभावी होने के मामले में अपील की सुनवाई के लिये किया गया था।
  • एनसीएलएटी, 1 दिसंबर, 2016 से प्रभावी, दिवाला और दिवालियेपन संहिता, 2016 (आईबीसी) की धारा 61 के तहत एनसीएलटी (एस) द्वारा पारित आदेश के खिलाफ अपील की सुनवाई के लिये एक अपीलीय अधिकरण भी है।