भारतीय राजनीति
दिल्ली विधानसभा की ‘शांति एवं सद्भाव समिति’ की न्यायसंगतता
- 13 Jul 2021
- 8 min read
प्रीलिम्स के लियेसंविधान की 7वीं अनुसूची मेन्स के लियेकेंद्र-राज्य के बीच शक्ति विभाजन संबंधी प्रावधान और इससे उत्पन्न मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने अपने निर्णय में फरवरी 2020 की सांप्रदायिक हिंसा के सिलसिले में फेसबुक इंडिया के वरिष्ठ अधिकारी को तलब करने के दिल्ली विधानसभा की ‘शांति एवं सद्भाव समिति’ के अधिकार को बरकरार रखा है।
प्रमुख बिंदु
केंद्र सरकार और फेसबुक का दावा:
- केंद्र सरकार और फेसबुक के मुताबिक, चूँकि कानून-व्यवस्था तथा दिल्ली पुलिस केंद्रीय विषय हैं, ऐसे में ‘शांति एवं सद्भाव समिति’ का गठन दिल्ली विधानसभा के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।
दिल्ली सरकार का पक्ष
- दिल्ली विधानसभा ने राज्य सूची और समवर्ती सूची में शामिल विभिन्न प्रविष्टियों का उपयोग किया था, जिनके तहत दिल्ली विधानसभा को इस मुद्दे पर चर्चा करने तथा बहस करने की शक्ति प्राप्त हुई है।
- दिल्ली विधानसभा ने राज्य सूची में प्रविष्टि-1 का हवाला दिया, जो कि ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ से संबंधित है और कानून-व्यवस्था से अलग है, साथ ही इस मामले में समवर्ती सूची की प्रविष्टि-1 को भी आधार बनाया गया है, जो राज्य विधानसभाओं को 'आपराधिक कानून' विषय पर कानून बनाने की व्यापक शक्ति देती है।
- इसके अलावा दिल्ली विधानसभा ने राज्य सूची की प्रविष्टि-39 का भी उपयोग किया है, जो कि विधानसभाओं को बयान दर्ज करने के उद्देश्य से गवाहों की उपस्थिति को अनिवार्य बनाने की शक्ति प्रदान करती है।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- फेसबुक के तर्क को अस्वीकृति:
- न्यायालय ने फेसबुक द्वारा अपनाए गए इस दृष्टिकोण को पूर्णतः खारिज कर दिया कि वह केवल तीसरे पक्ष की जानकारी पोस्ट करने वाला एक मंच है और उस जानकारी को उत्पन्न करने, नियंत्रित करने या संशोधित करने में इसकी कोई भूमिका नहीं है।
- न्यायालय के अनुसार, फेसबुक दिल्ली विधानसभा द्वारा गठित ‘शांति एवं सद्भाव समिति’ के समक्ष उपस्थित होने से बचने के लिये किसी भी ‘असाधारण विशेषाधिकार’ का दावा नहीं कर सकता है।
- समिति की शक्तियाँ:
- अपने निर्वाचन क्षेत्र में ऑनलाइन सामूहिक घृणा और हिंसा से निपटने के सर्वोत्तम उपायों पर विधानसभा के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा की गई ‘सुविज्ञ मंत्रणा’ (Informed Deliberation) काफी हद तक समिति की कार्यनिर्वाह क्षमता के अनुरूप थी।
- हालाँकि समिति के समक्ष उपस्थित होने वाले फेसबुक प्रतिनिधियों को कानून-व्यवस्था और पुलिस के विषय में सीधे समिति के किसी भी प्रश्न का उत्तर देने की आवश्यकता नहीं है, ये ऐसे विषय हैं जिन पर दिल्ली विधानसभा कानून नहीं बना सकती है।
- अपने निर्वाचन क्षेत्र में ऑनलाइन सामूहिक घृणा और हिंसा से निपटने के सर्वोत्तम उपायों पर विधानसभा के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा की गई ‘सुविज्ञ मंत्रणा’ (Informed Deliberation) काफी हद तक समिति की कार्यनिर्वाह क्षमता के अनुरूप थी।
- विधानसभा की शक्ति:
- न्यायालय ने फेसबुक के इस तर्क को खारिज कर दिया कि विधानसभा को दंगों की परिस्थितियों की जाँच करने के बजाय स्वयं को कानून बनाने तक सीमित रखना चाहिये।
- विधानसभा न केवल कानून बनाने का कार्य करती है बल्कि शासन के कई अन्य पहलू भी हैं जो विधानसभा और समिति के आवश्यक कार्यों का हिस्सा बन सकते हैं।
- विधायी विशेषाधिकार अपने विधायी कार्यों के प्रभावी निर्वहन के लिये विधायिका से संबंधित अधिकार हैं।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 105 और अनुच्छेद 194 क्रमशः संसद सदस्यों (सांसदों) और राज्य विधानसभाओं की शक्तियों, विशेषाधिकारों तथा उन्मुक्तियों को निर्धारित करते हैं।
- शांति और सद्भाव की अवधारणा कानून-व्यवस्था तथा पुलिस की तुलना में अधिक व्यापक है।
- दोहरा शासन:
- केंद्र और दिल्ली सरकार को राजधानी क्षेत्र में शासन के मुद्दों पर मिलकर काम करना चाहिये तथा अपने स्तर पर परिपक्वता दिखाने की ज़रूरत है।
- सोशल मीडिया कंपनी (फेसबुक) ने "दृष्टिकोण के विचलन" और केंद्र तथा राज्य सरकार दोनों की "दिल्ली में शासन के मुद्दों पर नज़र रखने" की अक्षमता का लाभ उठाने की मांग की।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि दिल्ली के दोहरे प्रशासन, जिसमें केंद्र सरकार को कई प्रमुख क्षेत्रों में विशेषाधिकार प्राप्त है, ने केंद्र और राज्य दोनों में सत्ता में विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं के साथ कई वर्षों तक अच्छा काम किया है।
- केंद्र और दिल्ली सरकार को राजधानी क्षेत्र में शासन के मुद्दों पर मिलकर काम करना चाहिये तथा अपने स्तर पर परिपक्वता दिखाने की ज़रूरत है।
विधायी शक्तियों में अंतर करने के लिये सूचियाँ:
- तीन ऐसी सूचियाँ हैं जो विधायी शक्तियों के वितरण का प्रावधान करती हैं (संविधान की 7वीं अनुसूची के तहत):
- संघ सूची (सूची I)- इसमें 98 विषय (मूल रूप से 97) शामिल हैं और इसमें वे विषय शामिल होते हैं जो राष्ट्रीय महत्त्व के हैं तथा जिनके लिये पूरे देश में समान कानून है।
- इन मामलों के संबंध में केवल केंद्रीय संसद ही कानून बना सकती है, उदाहरण के लिये- रक्षा, विदेश मामले, बैंकिंग, मुद्रा, संघ कर आदि।
- राज्य सूची (सूची II)- इसमें 59 विषय (मूल रूप से 66) हैं और इसमें स्थानीय या राज्य हित के विषय शामिल हैं।
- ये विषय राज्य विधानमंडलों की विधायी क्षमता के अंतर्गत आते हैं। जैसे- लोक व्यवस्था, पुलिस, स्वास्थ्य, कृषि और वन आदि।
- समवर्ती सूची (सूची-III)- इसमें 52 (मूल रूप से 47) विषय हैं जिनके संबंध में केंद्रीय संसद और राज्य विधानमंडल दोनों के पास कानून बनाने की शक्ति है। समवर्ती सूची का उद्देश्य अत्यधिक कठोरता से बचने के लिये विषयों को केंद्र एवं राज्य दोनों को एक उपकरण के रूप में प्रदान करना था।
- यह एक 'ट्विलाइट ज़ोन' है, क्योंकि महत्त्वपूर्ण मामलों के लिये राज्य पहल नहीं कर सकते हैं, जबकि संसद ऐसा कर सकती है।
- संघ सूची (सूची I)- इसमें 98 विषय (मूल रूप से 97) शामिल हैं और इसमें वे विषय शामिल होते हैं जो राष्ट्रीय महत्त्व के हैं तथा जिनके लिये पूरे देश में समान कानून है।
आगे की राह:
- सोशल मीडिया पर किसी भी विषय के संबंध में गलत सूचनाओं का सीधा प्रभाव उस विशाल क्षेत्र पर पड़ता है जो अंततः राज्यों के शासन को प्रभावित करता है।
- जैसा कि न्यायालय ने पाया शांति और सद्भाव समिति अभी भी केंद्र के अधिकारों पर अतिक्रमण किये बिना फेसबुक अधिकारी को बुला सकती है, यह अब अन्य राज्यों के लिये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की जाँच के द्वार खोलती है।