अंतर्राष्ट्रीय संबंध
रोहिंग्याओं को वापस भेजने का मामला अब सुप्रीम कोर्ट में
- 02 Sep 2017
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चर्चा में क्यों?
रोहिंग्या मुसलमानों को वापस म्यांमार भेजने के केंद्र सरकार के हालिया कदम का विरोध करते हुए दो रोहिंग्याओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। गौरतलब है कि हाल ही में केंद्र सरकार ने 40 हज़ार से अधिक रोहिंग्याओं को वापस भेजने का प्रस्ताव किया था। न्यायालय अब इस मामले में सुनवाई करेगा। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी इस संबंध में नोटिस जारी कर सरकार से जवाब माँगा है।
मानव जीवन के रक्षा का सवाल
- याचिकर्त्ताओं ने अपने दलील में कहा है कि सरकार का उन्हें वापस भेजने का फैसला संविधान के मूल्यों के खिलाफ है। चाहे कोई भारत का नागरिक हो या न हो, भारत का संविधान प्रत्येक इंसान को जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार देता है और रोहिंग्याओं को यदि इस समय म्यांमार भेजा जाता है तो वहाँ सेना द्वारा इन्हें मार दिया जाएगा।
- याचिका में कहा गया है कि उन्हें वापस भेजने का प्रस्ताव भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार), अनुच्छेद 21 (जीने और व्यक्तिगत आज़ादी का अधिकार) और अनुच्छेद 51(सी) के प्रावधानों का उल्लंघन करता है। अनुच्छेद 51(सी) में अंतर्राष्ट्रीय कानून एवं संधियों के दायित्वों के अनुपालन का जिक्र किया गया है।
रोहिंग्या शरणार्थी समस्या की पृष्ठभूमि
- दरअसल म्यांमार सरकार ने 1982 में राष्ट्रीयता कानून बनाया था, जिसमें रोहिंग्या मुसलमानों का नागरिक दर्ज़ा खत्म कर दिया गया था। जिसके बाद से ही म्यांमार सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को देश छोड़ने के लिये मज़बूर करती आ रही है।
- हालाँकि इस पूरे विवाद की जड़ करीब 100 साल पुरानी है, लेकिन 2012 में म्यांमार के रखाइन राज्य में हुए सांप्रदायिक दंगों ने इसमें हवा देने का काम किया।
- उत्तरी रखाइन में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्ध धर्म के लोगों के बीच हुए इस दंगे में 50 से ज़्यादा मुस्लिम और करीब 30 बौद्ध लोग मारे गए थे। इसी क्रम में कई रोहिंग्या मुसलमानों ने भारत में शरण ली थी।
हालिया घटनाक्रम
- केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हाल ही में कहा था कि “गैरकानूनी तौर पर रह रहे 40 हज़ार रोहिंग्या देश से बाहर निकाले जाएंगे, क्योंकि देश के अलग-अलग जगहों पर रह रहे रोहिंग्या अब समस्या बनते जा रहे हैं।
- यूएनएचसीआर के मुताबिक भारत में 14,000 से अधिक रोहिंग्या रह रहे हैं। हालाँकि जो दूसरी सूचनाएँ गृह मंत्रालय के पास मौजूद हैं, उनके मुताबिक लगभग 40 हज़ार रोहिंग्या अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं।
- दरअसल, अवैध विदेशी नागरिकों का पता लगाना और उन्हें वापस भेज देना एक निरंतर प्रक्रिया है और गृह मंत्रालय ‘विदेशी अधिनियम, 1946’ की धारा 3(2) के तहत अवैध विदेशी नागरिकों को वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू कर रहा है।
आगे की राह
- म्यांमार के रखाइन प्रांत में रहने वाला रोहिंग्या समुदाय दुनिया के सबसे ज़्यादा सताए हुए समुदायों में से एक है। भारत में दस्तावेज़ों के अभाव में इनके बच्चों को स्कूलों में दाखिला नहीं मिलता है। साथ ही, न तो इन्हें पीने का साफ पानी मयस्सर है, न ही कोई इनकी सफाई का ध्यान रखता है।
- भारत ने 1951 के ‘यूनाइटेड नेशंस रिफ्यूजी कन्वेंशन’ और 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। दरअसल, इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने वाले देश की यह कानूनी बाध्यता हो जाती है कि वह शरणार्थियों की मदद करेगा। इसी की वज़ह से वर्तमान में भारत के पास कोई राष्ट्रीय शरणार्थी नीति नहीं है। लिहाज़ा शरणार्थियों की वैधानिक स्थिति बहुत अनिश्चित है, जो अंतर्राष्ट्रीय मानकों के विरुद्ध है।
- फिर भी एक लोकतांत्रिक राष्ट्र होने के नाते भारत का यह दायित्व बनता है कि वह संकटग्रस्त लोगों के लिये अपने दरवाज़े खुले रखे।
- जिस शरणार्थी को शरण देने की अनुमति दे दी गई है, उसे बाकायदा वैधानिक दस्तावेज़ मुहैया कराए जाएँ, ताकि वह सामान्य ढंग से जीवन-यापन कर सके।
- साथ ही शरणार्थियों को शिक्षा, रोज़गार और आवास चुनने का हक भी दिया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
- हालाँकि, देशहित सर्वोपरि होता है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता। शरणार्थियों के कारण संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, कानून व्यवस्था के लिये चुनौती उत्पन्न होती है।
- समस्या यह है कि भारत में कोई शरणार्थी नीति नहीं है और इसके अभाव में न तो ये पंजीकृत हो पाते हैं और न ही इनका कोई स्थायी पता होता है। ऐसे में यदि कोई शरणार्थी अपराध करने के बाद भाग जाए तो उसको कानून की गिरफ्त में लेना मुश्किल हो जाता है।
- अतः शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेजने से ज़्यादा उचित एक पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था का निर्माण करना है, ताकि शरणार्थियों का प्रबंधन ठीक से हो सके।