राज्यपाल को प्राप्त उन्मुक्ति एवं सर्वोच्च न्यायालय | 22 Jul 2024
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 361, राज्यपाल, अनुच्छेद 153, न्यायिक समीक्षा, राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय, मेन्स के लिये :राज्यपाल से संबंधित संवैधानिक प्रावधान, सिविल और आपराधिक कार्यवाही के खिलाफ राज्यपाल की प्रतिरक्षा। |
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपालों को किसी भी तरह के आपराधिक मुकदमे से दी जाने वाली उन्मुक्ति की जाँच करने पर सहमति व्यक्त की है।
- ऐसा भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा राजभवन की एक महिला कर्मचारी की याचिका पर सुनवाई के बाद किया गया, जिसने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज़ कराई थी।
अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल को क्या-क्या उन्मुक्तियाँ प्रदान की जाती हैं?
- राज्यपाल की उन्मुक्ति की उत्पत्ति:
- यह लैटिन कहावत "रेक्स नॉन पोटेस्ट पेकेरे" या "राजा कोई अनुचित कार्य नहीं कर सकता" से संबंधित है।
- अनुच्छेद 361 पर संविधान सभा की चर्चा के दौरान, सदस्य एच.वी. कामथ ने राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिये आपराधिक उन्मुक्ति की सीमा पर सवाल उठाया (विशेष रूप से आपराधिक कृत्यों के लिये उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू करने के संबंध में)।
- इन चिंताओं के बावजूद, अनुच्छेद को बिना किसी और चर्चा के अपना लिया गया।
- अनुच्छेद 361 के तहत छूट:
- न्यायालय के प्रति गैर-उत्तरदायी: अनुच्छेद 361(1) के अनुसार राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल अपनी शक्तियों और कर्त्तव्यों के प्रयोग के लिये या उन शक्तियों एवं कर्त्तव्यों के प्रयोग में किये गए किसी भी कार्य के लिये किसी भी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं।
- अनुच्छेद 361 अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का अपवाद है।
- आपराधिक कार्यवाही से सुरक्षा: अनुच्छेद 361(2) के तहत, राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी न्यायालय में कोई भी आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी या जारी नहीं रखी जाएगी।
- कोई गिरफ्तारी नहीं: अनुच्छेद 361(3) के तहत, राष्ट्रपति या राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान कोई गिरफ्तारी या कारावास की प्रक्रिया जारी नहीं की जा सकती है।
- सिविल कार्यवाही से सुरक्षा: अनुच्छेद 361(4) के तहत, लिखित नोटिस देने के दो महीने बाद तक राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी व्यक्तिगत कृत्य के लिये कोई सिविल मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता है।
- नोटिस में कार्यवाही की प्रकृति, कार्रवाई का कारण, मुकदमा दायर करने वाला पक्ष तथा मांगी जा रही राहत का विवरण शामिल होना चाहिये।
- न्यायालय के प्रति गैर-उत्तरदायी: अनुच्छेद 361(1) के अनुसार राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल अपनी शक्तियों और कर्त्तव्यों के प्रयोग के लिये या उन शक्तियों एवं कर्त्तव्यों के प्रयोग में किये गए किसी भी कार्य के लिये किसी भी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं।
न्यायालयों ने अनुच्छेद 361 की व्याख्या किस प्रकार की है?
- डॉ. एस.सी. बारत एवं अन्य बनाम हरि विनायक पाटस्कर मामला, 1961: इसमें राज्यपाल के आधिकारिक और व्यक्तिगत आचरण के बीच अंतर किया गया था। जबकि आधिकारिक कार्यों के लिये पूर्ण उन्मुक्ति प्रदान की जाती है, राज्यपाल के कार्यों के लिये 2 महीने की पूर्व सूचना के साथ सिविल कार्यवाही शुरू की जा सकती है।
- रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ मामला, 2006: सर्वोच्च न्यायालय ने संवैधानिक कार्यों के लिये अनुच्छेद 361(1) के तहत राज्यपाल की "पूर्ण उन्मुक्ति" को स्वीकार किया, लेकिन दुर्भावनापूर्ण कार्यों के लिये न्यायिक जाँच की अनुमति दी।
- इस मामले ने स्थापित किया कि आधिकारिक कार्यों को संरक्षित किया जाता है, लेकिन जवाबदेही के लिये तंत्र मौजूद हैं।
- मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, 2015: व्यापम घोटाला मामले में न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि राज्यपाल राम नरेश यादव को पद पर रहते हुए दुर्भावनापूर्ण प्रचार से अनुच्छेद 361(2) के तहत “पूर्ण संरक्षण” प्राप्त है।
- अनुचित कानूनी उत्पीड़न को रोकने तथा पद की अखंडता को बनाए रखने के लिये उनका नाम जाँच से हटा दिया गया।
- उत्तर प्रदेश राज्य बनाम कल्याण सिंह मामला, 2017: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल कल्याण सिंह पद पर रहते हुए अनुच्छेद 361 के तहत उन्मुक्ति के हकदार थे। बाबरी मस्जिद विध्वंस से संबंधित मामलों के आलोक में राज्यपाल के कर्त्तव्यों और गरिमा की रक्षा पर प्रकाश डाला गया।
- तेलंगाना उच्च न्यायालय का निर्णय (2024): इसमें उच्च न्यायालय ने कहा कि “संविधान में कोई स्पष्ट या अंतर्निहित प्रतिबंध नहीं है जो राज्यपाल द्वारा की गई कार्रवाई के संबंध में न्यायिक समीक्षा की शक्ति को निरसित/अपवर्जित करता हो”।
- इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 361 के तहत उन्मुक्ति व्यक्तिगत है और यह न्यायिक समीक्षा को निरसित/अपवर्जित नहीं करती है।
नोट:
- हाल ही में अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को अन्य पूर्व राष्ट्रपतियों की तरह आधिकारिक क्षमता में की गई कार्रवाइयों के लिये आपराधिक अभियोजन से "पूर्ण प्रतिरक्षा" प्रदान की गई है, लेकिन यह प्रतिरक्षा अनौपचारिक या व्यक्तिगत कार्यों तक विस्तारित नहीं होती है।
राज्यपाल के पद से संबंधित सिफारिशें क्या हैं?
- सरकारिया आयोग (1988):
- राज्यपाल को सार्वजनिक जीवन के किसी क्षेत्र में प्रतिष्ठित व्यक्ति होना चाहिये और उस राज्य से संबंधित नहीं होना चाहिये जहाँ वह नियुक्त किया गया है।
- दुर्लभ एवं बाध्यकारी परिस्थितियों को छोड़कर राज्यपाल को उसका कार्यकाल पूरा होने से पहले नहीं हटाया जाना चाहिये।
- राज्यपाल को केंद्र और राज्य के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करना चाहिये न कि केंद्र के एजेंट के रूप में।
- राज्यपाल को अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग संयमित एवं विवेकपूर्ण तरीके से करना चाहिये और उनका उपयोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमज़ोर करने के लिये नहीं करना चाहिये।
- वेंकटचलैया आयोग (2002):
- राज्यपालों की नियुक्ति एक समिति द्वारा की जानी चाहिये जिसमें प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री शामिल हों।
- राज्यपाल को पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने देना चाहिये, जब तक कि सिद्ध दुर्व्यवहार या अक्षमता के आधार पर वह स्वयं त्यागपत्र न दे दे या उन्हें राष्ट्रपति द्वारा हटा नहीं दिया जाए।
- केंद्र सरकार को राज्यपाल को हटाने की किसी भी कार्रवाई से पहले संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री से सलाह लेनी चाहिये।
- राज्यपाल को राज्य के दैनिक प्रशासन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये।
- उसे राज्य सरकार के मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक के रूप में कार्य करना चाहिये तथा अपनी विवेकाधीन शक्तियों का संयमपूर्वक उपयोग करना चाहिये।
- पुंछी आयोग (2010):
- इस आयोग ने संविधान से "राष्ट्रपति की इच्छापर्यंत" वाक्यांश को हटाने की सिफारिश की, जो यह सुझाव देता है कि राज्यपाल को केंद्र सरकार की इच्छा पर हटाया जा सकता है।
- इसमें प्रस्ताव दिया गया कि राज्यपाल को केवल राज्य विधानमंडल के प्रस्ताव द्वारा ही हटाया जाना चाहिये, जिससे राज्यों के लिये अधिक स्थिरता और स्वायत्तता सुनिश्चित हो सके।
राज्यपाल से संबंधित संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?
- अनुच्छेद 153: प्रत्येक राज्य हेतु एक राज्यपाल होगा। एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों (सरकारिया आयोग द्वारा अनुशंसित) का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है।
- राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा वह केंद्र सरकार का मनोनीत सदस्य होता है।
- दोहरी भूमिका: यह राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में कार्य करता है, मंत्रिपरिषद (CoM) की सलाह से संबंधित होता है और केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करता है।
- अनुच्छेद 157 और 158: राज्यपाल के पद के लिये पात्रता आवश्यकताओं को निर्दिष्ट करते हैं।
- अनुच्छेद 161: राज्यपाल को क्षमादान, दण्ड विराम आदि देने की शक्ति प्राप्त है।
- अनुच्छेद 163: राज्यपाल को उनके कार्यों के निष्पादन में सहायता और सलाह मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद द्वारा दी जाती है, सिवाय कुछ स्थितियों में जहाँ विवेकाधिकार की अनुमति होती है।
- अनुच्छेद 164: राज्यपाल, मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
- अनुच्छेद 200: राज्यपाल, विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिये अनुमति देता है, अनुमति वापस लेता है या आरक्षित करता है।
- अनुच्छेद 213: राज्यपाल कुछ परिस्थितियों में अध्यादेश जारी कर सकता है।
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दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल से संबंधित उन्मुक्ति प्रावधानों के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. क्या उच्चतम न्यायालय का निर्णय (जुलाई 2018) दिल्ली के उप-राज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच राजनैतिक कशमकश को निपटा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018) प्रश्न. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तों का विवेचन कीजिये। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुनः प्रख्यापन की वैधता की विवेचना कीजिये। (2022) |