अनावश्यक पीआईएल के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का कठोर संदेश | 02 May 2017
समाचारों में क्यों
- अब जनहित के नाम पर अनावश्यक याचिकाएँ दाखिल करने पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त कदम उठाए हैं।
- अनावश्यक याचिकाएँ दायर करने और कोर्ट का बहुमूल्य समय खराब करने के एवज में राजस्थान के एक ट्रस्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।
- साथ ही सुप्रीम कोर्ट में ट्रस्ट पर आजीवन जनहित याचिका दाखिल करने पर रोक लगा दी है।
- विदित हो कि इस ट्रस्ट ने पिछले 10 साल में जनहित के नाम पर देश की अलग-अलग अदालतों में 64 याचिकाएँ दायर कर रखी हैं।
क्यों न्यायालय ने दिया यह निर्णय?
- विदित हो कि पीआईएल, जनहित के मुद्दे उठाने एक महत्त्वपूर्ण साधन है लेकिन देश में एक ऐसा तबका है जो पीआईएल का दुरुपयोग कर इसके मकसद को नाकाम कर रहा है।
- कभी-कभी तो किसी सरकारी अथवा गैर-सरकारी योजना के बनने के साथ ही पीआईएल के संगठित गिरोह इनमें अड़ंगा डालने के लिये सक्रिय हो जाते हैं।
- पीआईएल का फैसला आने तक वह योजना लंबित रहती है। इससे उसकी कीमत अथवा लागत बढ़ जाती है और सरकारी खजाने को अनावश्यक नुकसान होता है।
- इतना ही नहीं सरकार में शामिल कई राजनेता भी इन गिरोहों के पोषक होते हैं और परियोजनाओं की लागत बढ़वाने के लिये भी पीआईएल को हथियार की तरह इस्तेमाल करवाते हैं।
- अब हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इस तरह की दुष्प्रवृत्ति से वाकिफ हो चुके हैं और न्यायालय पीआईएल को पूरी तरह से जाँचने परखने के बाद ही सुनवाई के लिये स्वीकार करते हैं।
- हालाँकि इस संबंध में कुछ एक समुचित उपाय खोजने होंगे जिससे पीआईएल जैसे पवित्र साधन का दुरुपयोग रोका जा सके।
जनहित याचिकाएँ (पीआईएल) क्या हैं?
- देश के प्रत्येक नागरिक को संविधान की ओर से कुछ मूल अधिकार दिये गए हैं। यदि किसी नागरिक के किसी भी मूल अधिकार का हनन हो रहा है, तो वह हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मूल अधिकार की रक्षा के लिये गुहार लगा सकता है।
- वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद-226 के तहत हाई कोर्ट का और अनुच्छेद-32 के तहत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है।
- यदि यह मामला निजी न होकर व्यापक जनहित से जुड़ा है तो याचिका को जनहित याचिका के तौर पर देखा जाता है।
- पीआईएल डालने वाले शख्स को अदालत को यह बताना होगा कि कैसे उस मामले में आम लोगों का हित प्रभावित हो रहा है।
- दायर की गई याचिका जनहित में है या नहीं, इसका फैसला न्यायालय ही करता है।