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सड़क दुर्घटना के स्व-नियोजित और वेतनभोगी पीड़ितों का मुद्दा

  • 01 Nov 2017
  • 5 min read

संदर्भ

हाल ही में पाँच न्यायाधीशों की एक संवैधानिक पीठ ने उन परिवारों को राहत देने की घोषणा की है, जिन्हें बीमा कंपनियों द्वारा बीमा राशि केवल इसलिये दी जा रही थी, क्योंकि सड़क हादसे में हुई मौत के समय उनके प्रियजन या तो स्व-नियोजित(self-employed) थे अथवा वेतनभोगी (salaried)।

प्रमुख बिंदु

  • दरअसल, अब तक उदारीकरण से पूर्व लागू किये गए मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौतों के लिये बीमा का दावा इस आधार पर किया जाता था कि स्व-नियोजित व्यक्तियों और वेतनभोगियों के पास भविष्य के लिये कोई पूंजी नहीं बची है और यदि वे जीवित रहते हैं तो कई वर्षों बाद भी उनके वेतन में मुश्किल से ही कोई सुधार होगा।
  • परन्तु अब न्यायालय इस संबंध में मौत के समय पीड़ित की वास्तविक आय को संज्ञान में लेगा। यद्यपि कुछ विशेष परिस्थितियों युक्त दुर्लभ और अपवाद स्वरूप मामलों को इस दायरे से पृथक रखा जाएगा।

क्या कहा न्यायालय ने?

  • दो दशक पूर्व की इस दीर्घकालीन धारणा में परिवर्तन करते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में गठित एक संवैधानिक ने भूमंडलीकरण के इस दौर में निजी व्यवसायियों के जीवन की कठिन परिस्थितियों, निजी क्षेत्र में उच्च वेतन, जीवनयापन की लागत में वृद्धि और यहाँ तक कि मुद्रास्फीति को भी संज्ञान में लिया है।
  • सर्वसम्मति से लिये गए एक निर्णय में इस संवैधानिक पीठ का यह कहना था कि कानून को मान्यता मिलनी चाहिये और आधुनिक भारतीयों के प्रतिस्पर्धात्मक रवैये, उनकी अपने संसाधनों को संरक्षित रखने, समय के साथ आगे बढ़ने और बदलने की क्षमता का भी सम्मान होना चाहिये।
  • स्थायी रोज़गार में संलग्न एक वेतनभोगी व्यक्ति के वेतन में हुई वृद्धि, भुगतान की समीक्षा तथा सेवा शर्तों में अन्य बदलावों के कारण उनकी खरीद क्षमता में वृद्धि होती है। दरअसल, निजी क्षेत्र में कर्मचारियों से गुणवत्तापूर्ण कार्य लेने के लिये उनके वेतन में वृद्धि की जाती है अतः निजी क्षेत्र में सदैव ही प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण बना रहता है।
  • इसी प्रकार वह व्यक्ति जो कि स्व-नियोजित (self-employed) है, उसे उसके संसाधनों का विस्तार और अपने शुल्कों में वृद्धि करनी होगी, ताकि वह समान सुविधाओं के साथ भविष्य में भी कुशलतापूर्वक अपना जीवनयापन कर सके। यह अवधारणा कि व्यक्ति स्थिर ही बना रहेगा और उसके वेतन में भी बढ़ोतरी नहीं होगी, मानवीय दृष्टिकोण (human attitude) की मूल संकल्पना के विपरीत है।   

स्व-नियोजित और वेतनभोगी कर्मचारियों के दावों की गणना करने के लिये सुनिश्चित किये गए दिशा-निर्देश—

  • यदि मौत के समय सड़क दुर्घटना में पीड़ित व्यक्ति का रोज़गार स्थायी था और वह 40 वर्ष की आयु से कम था, तो उसकी वास्तविक आय (Actual salary) के 50% भाग को भविष्य की दृष्टि से संरक्षित किया जाएगा। यदि पीड़ित की आयु 40 से 50 वर्ष के बीच हो तो उसके वेतन के 30% हिस्से को भविष्य के लिये संरक्षित किया जाएगा, परन्तु यदि व्यक्ति की आयु 50 से 60 वर्ष के बीच हो तो उसकी वास्तविक आय के 10% भाग को ही भविष्य की दृष्टि से संरक्षित किया जाएगा। यहाँ वास्तविक आय का तात्पर्य उस आय से है जिसमें किसी भी प्रकार के कर को शामिल नहीं किया जाता है।
  • इसी प्रकार, यदि मौत के समय पीड़ित ‘स्व-नियोजित’ था अथवा उसका वेतन निश्चित था और वह 40 वर्ष से कम था, तो उसकी निश्चित आय (established income) में उसकी आय की 40% राशि जोड़ दी जाएगी। परन्तु यदि पीड़ित व्यक्ति की उम्र 40-50 वर्ष के बीच है तो उसकी निश्चित आय में 25% राशि जोड़ी जाएगी और 50-60 वर्ष के बीच का होने पर केवल 10% भाग को ही उसकी आय में जोड़ा जाएगा।
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