धर्म के नाम पर मादा जननांग विघटन अभ्यास एक अपराध: सर्वोच्च न्यायालय | 10 Jul 2018
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में प्रचलित मादा जननांग विघटन(Genital Mutilation)के अभ्यास पर सवाल उठाते हुए कहा है कि यह अभ्यास एक लड़की की शारीरिक "अखंडता"(“Integrity”)का उल्लंघन करता है।
प्रमुख बिंदु
- मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ (जस्टिस ए.एम.खानविलकर और डी.वाई.चंद्रचूड सहित), ने इस संबंध में निर्देश जारी किये हैं।
- पीठ ने कहा है कि धर्म के नाम पर कोई भी समुदाय किसी महिला की संपूर्णता और शारीरिक गोपनीयता का उल्लंघन नहीं कर सकता है।
- उल्लेखनीय है कि अटॉर्नी जनरल के.के.वेणुगोपाल ने पीठ के समक्ष इस अभ्यास के खिलाफ निर्देश जारी करने का आग्रह किया था।
- उन्होंने पीठ को यह बताया था कि संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया और लगभग 27 अफ्रीकी देशों ने भी इस प्रकार के अभ्यास पर प्रतिबंध लगा दिया है।
- इसके साथ ही उन्होंने पीठ से इस तरह के किसी भी अभ्यास के लिये सात साल का कारावास अथवा कठोर दंड की सिफारिश भी की थी।
- इसके बाद मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने बच्चों पर किये गए इस तरह के किसी भी अभ्यास को यौन अपराध अधिनियम के तहत एक अपराध की संज्ञा दी।
बोहरा समुदाय की याचिका
- हालाँकि,अदालत ने धार्मिक स्वतंत्रता के संबंध में दायर दाऊदी बोहरा महिला संघ के एक याचिका को सुनने के बाद ही यह टिप्पणी की है।
- अदालत के समक्ष इस संघ का पक्ष वरिष्ठ वकील ए.एम.सिंघवी ने रखा और कहा कि, ”दाऊदी बोहरा समुदाय में प्रचलित खफज़/मादा खतना, मादा जननांग का विघटन नहीं है।“
- यह उनके धर्म का एक अनिवार्य हिस्सा है और संविधान में निहित धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी अधिकारों के तहत इसे संरक्षण भी प्राप्त है।
धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी संवैधानिक अधिकार
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