यातना विरुद्ध कानूनों को व्यापक बनाये जाने की आवश्यकता | 26 Apr 2017

संदर्भ
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने यह वक्तव्य दिया है कि भारत में प्रत्यर्पण को सुरक्षित करना कठिन लग रहा है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के भीतर यह डर व्याप्त है कि भारत में आरोपी व्यक्तियों को यातनाएँ दी जाती हैं|

प्रमुख बिंदु

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश जे.एस.खेहर और न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ की खंडपीठ के अनुसार, यह संविधान के अनुच्छेद 21(जीवन और गरिमा का मौलिक अधिकार) और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति दोनों से संबंधित मामला है| अतः सरकार को इस पर अपना पक्ष रखना चाहिये तथा यातना को मानव के पतन का एक साधन मानकर राज्य प्राधिकरणों को इसे परिभाषित करने के लिये व्यापक कानून बनाना चाहिये था|
  • न्यायाधीश चंद्रचूर्ण के शंब्दों में इस प्रकार के कानून राष्ट्रीय हित में बनाए गए हैं|  प्रत्यर्पण के मामलों में भारत को समस्याओं का सामना इसलिए करना पड़ता है क्योंकि भारत में अत्याचार होते हैं| 
  • न्यायालय ने सीबीआई द्वारा किम डेवी को लाने के लिये किये गए प्रयासों का उल्लेख किया| किम डेवी एक डेनिश नागरिक थी और वह 1995 के पुरुलिया हथियार ड्रॉप मामले की एक मुख्य आरोपी थी| इनका डेनमार्क से प्रत्यर्पण किया गया था| एक डेनिश न्यायालय ने इस आधार पर याचिका को ख़ारिज कर दिया था कि भारत में उन्हें यातना अथवा अन्य अमानवीय व्यवहारों का सामना करना पड़ सकता है|
  • न्यायालय पूर्व विधि मंत्री अश्विनी कुमार के वक्तव्यों से सहमत था| अश्विनी कुमार ने एक जनहित याचिका दायर की थी जिसमे उल्लेख किया गया था कि भारत ने वर्ष 1997 में अत्याचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में हस्ताक्षर किये थे परन्तु इसने अभी तक इसकी पुष्टि नहीं की है| इस सम्मलेन में कैदियों को दी जाने वाली यातनाओं को एक दंडनीय अपराध माना गया था|
  • कुमार के अनुसार, 6 मई 2010 को लोकसभा द्वारा पारित किये जाने और राज्य सभा की प्रवर समिति(जिसके वे अध्यक्ष थे) की अनुसंशाओं के 6 वर्ष पश्चात भी यातना विधेयक 2010 की रोकथाम के कार्यान्वयन से संबंधित कोई भी कदम नहीं उठाये गए हैं| उन्होंने यह सूचित किया था कि केंद्र सरकार यातना पर बनने वाले स्वतंत्र विधान को नजरंदाज कर रही है|

निष्कर्ष
भारत में एक जहाँ इस प्रकार के प्रावधानों का अभाव है वहीं भारतीय दंड संहिता(Indian Penal Code) व दंड प्रक्रिया संहिता(Criminal Procedure Code) भी पर्याप्त रूप से कारागार यातना के सभी पहलुओं पर प्रकाश नहीं डालती है|
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग कारागार यातना की घटनाओं का संज्ञान तभी लेता जब अमानवीय रूप से किये गए कृत्यों से किसी व्यक्ति के मृत्यु हो जाए| अतः इस संबंध में समुचित प्रावधान अवश्य बनाए जाने चाहियें|