भारतीय राजव्यवस्था
न्यायिक नियुक्तियों में देरी चिंता का विषय: सर्वोच्च न्यायालय
- 03 Oct 2023
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प्रिलिम्स के लिये:भारत का सर्वोच्च न्यायालय, कॉलेजियम प्रणाली, न्यायिक नियुक्तियाँ मेन्स के लिये:कॉलेजियम प्रणाली और इसकी आलोचना |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायपालिका में नई प्रतिभाओं की नियुक्तियों में हो रही देरी को लेकर चिंता जताई है। इसका प्रमुख कारण उच्च न्यायालयों में न्यायतंत्र का हिस्सा बनने के लिये चयनित उम्मीदवारों ने उच्च न्यायालय कॉलेजियम की सिफारिशों पर कार्रवाई करने में सरकार द्वारा किये जा रहे विलंब के परिणामस्वरूप अपने आवेदन वापस ले लिये हैं।
- भारत के महान्यायवादी को 9 अक्टूबर, 2023 तक लंबित न्यायिक नियुक्तियों और स्थानांतरणों पर अपडेट प्रदान करने का निर्देश दिया गया था।
न्यायिक नियुक्तियों में देरी को लेकर सर्वोच्च न्यायालय की चिंताएँ:
- नियुक्ति में विलंबता तथा प्रतिभाओं को अवसर प्रदान करने में चूक:
- सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के पास 10 महीने से अधिक समय से लंबित 70 उच्च न्यायालय कॉलेजियम सिफारिशों के बैकलॉग को लेकर चिंता जताई है।
- सिफारिशों को संसाधित करने में इतनी देरी के कारण न्यायपालिका के भीतर प्रतिभाओं की कमी हो गई है, क्योंकि संभावित उम्मीदवार सरकारी निष्क्रियता के कारण अपनी उम्मीदवारी वापस ले रहे हैं।
- विधि के क्षेत्र में प्रतिभाशाली कई लोग इन विलंबों के कारण उत्पन्न अनिश्चितता के कारण भी अपने आवेदन वापस ले रहे हैं।
- नामों का विवादास्पद पृथक्करण:
- कॉलेजियम-अनुशंसित सूचियों से नामों को अलग करने की सरकार की कार्य-प्रणाली गंभीर चिंता का विषय है।
- कॉलेजियम द्वारा स्पष्ट मनाही के बावजूद सरकार ने नामों को अलग करना जारी रखा, जिससे कॉलेजियम के निर्देशों का विरोध हुआ।
- इस विवादास्पद कार्य-प्रणाली के परिणामस्वरूप उम्मीदवारों को अपनी उम्मीदवारी वापस लेनी पड़ी है।
- नियुक्तियों और रिक्त पदों का बैकलॉग:
- उच्च न्यायालय कॉलेजियम की सिफारिशों के व्यापक बैकलॉग ने देश भर में कई न्यायिक पदों को रिक्त छोड़ दिया है।
- प्रक्रिया ज्ञापन कॉलेजियम द्वारा दोहराए गए नामों की शीघ्र नियुक्ति का आदेश देता है, लेकिन इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है, जिससे और विलंब हो रहा है।
- विशिष्ट लंबित मामले:
- मणिपुर उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति लंबित है, जिससे अनिश्चितता बनी हुई है।
- इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित 26 तबादलों पर सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
भारत में न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ:
- भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI):
- भारत के राष्ट्रपति CJI और अन्य SC न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं।
- जहाँ तक CJI का सवाल है, निवर्तमान CJI अपने उत्तराधिकारी की सिफारिश करते हैं।
- वर्ष 1970 के दशक के अधिक्रमण विवाद के बाद से यह सख्ती से वरिष्ठता के आधार पर किया गया है।
- भारत के राष्ट्रपति CJI और अन्य SC न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश:
- SC के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा CJI और सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के ऐसे अन्य न्यायाधीशों से परामर्श के बाद की जाती है, जिन्हें वह आवश्यक समझते हैं।
- CJI और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों का एक पैनल, जिसे कॉलेजियम के नाम से जाना जाता है, राष्ट्रपति को SC जज के रूप में नियुक्त होने वाले उम्मीदवारों के नामों की सिफारिश करते हैं।
- SC के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा CJI और सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के ऐसे अन्य न्यायाधीशों से परामर्श के बाद की जाती है, जिन्हें वह आवश्यक समझते हैं।
- उच्च न्यायालयों (HC) के मुख्य न्यायाधीश और HC के न्यायाधीश:
- HC के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा CJI और संबंधित राज्य के राज्यपाल के परामर्श के बाद की जाती है।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सिफारिश CJI और दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों वाले कॉलेजियम द्वारा की जाती है। न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से भी परामर्श किया जाता है।
- उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को उच्च न्यायालय में नियुक्ति के लिये किसी नाम की सिफारिश करने से पहले अपने दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों से परामर्श करना भी आवश्यक है।
आगे की राह
- सरकार को नियुक्तियों के बैकलॉग को खत्म करने और रिक्त न्यायिक पदों को तुरंत भरने के लिये लंबित उच्च न्यायालय कॉलेजियम सिफारिशों के प्रसंस्करण में तेज़ी लानी चाहिये।
- सरकार को कॉलेजियम की सिफारिशों से नामों को अलग करने की प्रथा बंद करनी चाहिये और न्यायाधीशों की नियुक्ति में कॉलेजियम के निर्देशों का पालन करना चाहिये।
- न्यायिक नियुक्तियों और तबादलों की प्रगति पर नज़र रखने एवं रिपोर्ट करने हेतु एक पारदर्शी प्रणाली स्थापित करना। अनुचित विलंब या गैर-अनुपालन के लिये ज़िम्मेदार व्यक्तियों को दोषी ठहराना।
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