न्यायिक कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग | 28 Sep 2018
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिये संवैधानिक महत्त्व वाले मामलों में की जाने वाली न्यायिक कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग को अनुमति दे दी है।
न्यायलय द्वारा जारी दिशा-निर्देश
- सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को ‘व्यापक और समग्र दिशानिर्देश’ तैयार करने का निर्देश देने के साथ ही न्यायालयों में इस प्रक्रिया को पायलट आधार पर शुरू करने का निर्देश भी दिया है।
- यह परियोजना कई चरणों लागू की जाएगी।
- यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि अयोध्या तथा SC/ST आरक्षण जैसे मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग नहीं की जाएगी।
- चूँकि ‘न्यायालय की खुली सुनवाई’ के संबंध में संविधान में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, ऐसे में दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure- CrPC) की धारा 327 और सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 (Code of Civil Procedure- CPC) की धारा 153ख के प्रावधानों का अनुसरण किया जा सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 327
- दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 327 के अनुसार वह स्थान जहाँ कोई दंड न्यायालय किसी अपराध की जाँच या विचारण के प्रयोजन से बैठता है उसे खुला न्यायालय समझा जाएगा जिसमें जनता साधारणतः वहाँ तक प्रवेश कर सकेगी जहाँ तक कि वह सुविधापूर्वक उसमें समा सके।
- लेकिन, यदि पीठासीन न्यायाधीश ठीक समझे तो वह किसी विशिष्ट मामले की जाँच या विचारण के किसी भी प्रक्रम पर यह आदेश दे सकता है कि न्यायालय द्वारा उक्त प्रक्रिया के दौरान इस्तेमाल किये गए कमरे या भवन तक जनता अथवा किसी विशिष्ट व्यक्ति को न पहुँचने दिया जाए।
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 153ख
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 153ख के अनुसार, वह स्थान जहाँ किसी वाद के विचरण के प्रयोजन के लिये कोई सिविल न्यायालय लगता है तो उसे खुला न्यायालय समझा जाएगा और उसमें जनता की साधारणतः वहाँ तक पहुँच होगी जहाँ तक वह इसमें सुविधापूर्वक समा सके।
- लेकिन, यदि पीठासीन न्यायाधीश ठीक समझे तो वह किसी विशिष्ट मामले की जाँच या विचरण के किसी भी प्रक्रम पर यह आदेश दे सकता है कि न्यायालय द्वारा प्रयुक्त कमरे या भवन तक जनता या किसी विशिष्ट व्यक्ति की पहुँच नहीं होगी या वह उसमें नहीं आएगा या वह वहाँ नहीं रहेगा।
सरकार का पक्ष
- राष्ट्रीय महत्त्व के मामलों में न्यायिक कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को गाइडलाइन तैयार कर न्यायालय] में दाखिल करने के निर्देश जारी किये थे। अटार्नी जनरल द्वारा विस्तृत गाइडलाइन दाखिल करने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
- अटॉर्नी जनरल द्वारा दाखिल गाइडलाइन के अनुसार, पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर लाइव स्ट्रीमिंग की प्रक्रिया मुख्य न्यायाधीश के न्यायलय से शुरू होनी चाहिये और सफल होने पर इसे दूसरे न्यायालयों में लागू किया जा सकता है।
- इसमें संवैधानिक मुद्दों को भी शामिल किया जाना चाहिये। साथ ही इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये कि वैवाहिक विवाद, नाबालिगों से जुडे मामले, राष्ट्रीय सुरक्षा और सांप्रदायिक सौहार्द से जुडे मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग न हो।
- अटॉर्नी जनरल ने यह सुझाव भी दिया कि कोर्टरूम की भीड़-भाड़ को कम करने के लिये वादियों, पत्रकार, इंटर्न और वकीलों के लिये एक मीडिया रूम बनाया जा सकता है।
- अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने यह सिफारिश भी की थी कि यदि सर्वोच्च न्यायालय चाहे तो सरकार, लोकसभा या राज्यसभा की तरह ही अलग सर्वोच्च न्यायालयचैनल की व्यवस्था कर सकती है।
इंदिरा जयसिंह ने दाखिल की थी याचिका
- सर्वोच्च न्यायालयमें वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने PIL दाखिल कर यह अनुरोध किया था कि राष्ट्रीय महत्त्व और संवैधानिक महत्त्व के मामलों की पहचान कर उन मामलों की रिकॉर्डिंग की जानी चाहिये और उनका सीधा प्रसारण भी किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
- यह प्रक्रिया अधिक पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के साथ ही ‘दंड प्रक्रिया संहिता’ और ‘सिविल प्रक्रिया संहिता’ में जवाबदेहिता के लिये एक साधन के रूप में कार्य करेगी।