सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले | 08 Mar 2022
प्रिलिम्स के लिये:सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले, डॉ. बी.आर. अम्बेडकर, महात्मा गांधी, सत्यशोधक समाज (द ट्रुथ-सीकर्स सोसाइटी) मेन्स के लिये:सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले की विरासत, जाति और लिंग आधारित भेदभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 19वीं सदी के समाज सुधारकों में शामिल सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले की "कम उम्र में हुई शादी का कथित तौर पर मज़ाक उड़ाने के लिये महाराष्ट्र के राज्यपाल की आलोचना की गई थी।
- महात्मा ज्योतिराव और सावित्रीबाई फुले की गिनती भारत के सामाजिक एवं शैक्षिक इतिहास में एक असाधारण युगल के रूप में की जाती है।
- उन्होंने महिला शिक्षा और सशक्तीकरण की दिशा में तथा जाति एवं लिंग आधारित भेदभाव को समाप्त करने में पथप्रदर्शक का कार्य किया।
प्रमुख बिंदु
सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले:
- वर्ष 1840 में जब बाल विवाह एक सामान्य बात थी, उस समय 10 साल की उम्र में सावित्रीबाई का विवाह ज्योतिराव से कर दिया गया, जो कि उस समय 13 वर्ष के थे।
- बाद के समय में इस जोड़े ने बाल विवाह का विरोध किया और विधवा पुनर्विवाह का भी वकालत की।
- ज्योतिराव फुले:
- ज्योतिराव फुले एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्त्ता, विचारक, जातिप्रथा-विरोधी समाज सुधारक और महाराष्ट्र के लेखक थे।
- उन्हें ज्योतिबा फुले के नाम से भी जाना जाता है।
- शिक्षा: वर्ष 1841 में फुले का दाखिला स्कॉटिश मिशनरी हाईस्कूल (पुणे) में हुआ, जहाँ उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की।
- विचारधारा: उनकी विचारधारा स्वतंत्रता, समतावाद और समाजवाद पर आधारित थी।
- फुले थॉमस पाइन की पुस्तक ‘द राइट्स ऑफ मैन’ से प्रभावित थे और उनका मानना था कि सामाजिक बुराइयों का मुकाबला करने का एकमात्र तरीका महिलाओं व निम्न वर्ग के लोगों को शिक्षा प्रदान करना था।
- प्रमुख प्रकाशन: तृतीया रत्न (1855); पोवाड़ा: छत्रपति शिवाजीराज भोंसले यंचा (1869); गुलामगिरि (1873), शक्तारायच आसुद (1881)।
- महात्मा की उपाधि: 11 मई, 1888 को महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्त्ता विट्ठलराव कृष्णजी वांडेकर द्वारा उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।
- समाज सुधार: वर्ष 1848 में उन्होंने अपनी पत्नी (सावित्रीबाई) को पढ़ना-लिखना सिखाया, जिसके बाद इस दंपत्ति ने पुणे में लड़कियों के लिये पहला स्वदेशी रूप से संचालित स्कूल खोला, जहाँ वे दोनों शिक्षण का कार्य करते थे।
- वह लैंगिक समानता में विश्वास रखते थे और अपनी सभी सामाजिक सुधार गतिविधियों में पत्नी को शामिल कर अपनी मान्यताओं का अनुकरण किया।
- वर्ष 1852 तक फुले ने तीन स्कूलों की स्थापना की थी, लेकिन 1857 के विद्रोह के बाद धन की कमी के कारण वर्ष 1858 तक ये स्कूल बंद हो गए थे।
- ज्योतिबा ने विधवाओं की दयनीय स्थिति को समझा तथा युवा विधवाओं के लिये एक आश्रम की स्थापना की और अंततः विधवा पुनर्विवाह के विचार के पैरोकार बन गए।
- ज्योतिराव ने ब्राह्मणों और अन्य उच्च जातियों की रुढ़िवादी मान्यताओं का विरोध किया और उन्हें "पाखंडी" करार दिया।
- वर्ष 1868 में ज्योतिराव ने अपने घर के बाहर एक सामूहिक स्नानागार का निर्माण करने का फैसला किया, जिससे उनकी सभी मनुष्यों के प्रति अपनत्व की भावना प्रदर्शित होती है, इसके साथ ही उन्होंने सभी जातियों के सदस्यों के साथ भोजन करने की शुरुआत की।
- उन्होंने जागरूकता अभियान शुरू किया जिसने अंततः डॉ. बी.आर. आंबेडकर और महात्मा गांधी को प्रभावित किया, जिन्होंने बाद में जातिगत भेदभाव के खिलाफ बड़ी पहल की।
- कई लोगों का मानना है कि यह फुले ही थे जिन्होंने सबसे पहले 'दलित' शब्द का इस्तेमाल उन उत्पीड़ित जनता के चित्रण के लिये किया था, जिन्हें अक्सर 'वर्ण व्यवस्था' से बाहर रखा जाता था।
- ज्योतिराव फुले एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्त्ता, विचारक, जातिप्रथा-विरोधी समाज सुधारक और महाराष्ट्र के लेखक थे।
- सावित्रीबाई फुले:
- वर्ष 1852 में सावित्रीबाई ने महिलाओं के अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये ‘महिला सेवा मंडल’ की शुरुआत की।
- सावित्रीबाई ने एक महिला सभा का आह्वान किया, जहाँ सभी जातियों के सदस्यों का स्वागत किया गया और सभी से एक साथ मंच पर बैठने की अपेक्षा की गई।
- उन्होंने वर्ष 1854 में ‘काव्या फुले’ और वर्ष 1892 में ‘बावन काशी सुबोध रत्नाकर’ का प्रकाशन किया।
- अपनी कविता ‘गो, गेट एजुकेशन’ में वह उत्पीड़ित समुदायों से शिक्षा प्राप्त करने और उत्पीड़न की जंजीरों से मुक्त होने का आग्रह करती हैं।
- उन्होंने विधवा पुनर्विवाह का समर्थन करते हुए बाल विवाह के खिलाफ एक साथ अभियान चलाया।
- उन्होंने वर्ष 1873 में पहला सत्यशोधक विवाह शुरू किया- दहेज, ब्राह्मण पुजारी या ब्राह्मणवादी रीति-रिवाज़ के बिना विवाह।
उनकी विरासत:
- वर्ष 1848 में फुले ने पूना में लड़कियों, शूद्रों एवं अति-शूद्रों के लिये एक स्कूल शुरू किया।
- 1850 के दशक में फुले दंपत्ति ने दो शैक्षिक ट्रस्टों की शुरुआत की- नेटिव फीमेल स्कूल (पुणे) और ‘द सोसाइटी फॉर प्रोमोटिंग द एजुकेशन ऑफ महार’- जिसके तहत कई स्कूल शामिल थे।
- वर्ष 1853 में उन्होंने गर्भवती विधवाओं के लिये सुरक्षित प्रसव हेतु और सामाजिक मानदंडों के कारण शिशुहत्या की प्रथा को समाप्त करने के लिये एक देखभाल केंद्र खोला।
- बालहत्या प्रतिबंधक गृह (शिशु हत्या निवारण गृह) उनके ही घर में शुरू हुआ।
- सत्यशोधक समाज (द ट्रुथ-सीकर्स सोसाइटी) की स्थापना 24 सितंबर, 1873 को ज्योतिराव-सावित्रीबाई और अन्य समान विचारधारा वाले लोगों द्वारा की गई थी।
- उन्होंने समाज में सामाजिक परिवर्तनों की वकालत की तथा प्रचलित परंपराओं के खिलाफ कदम उठाया जिनमें आर्थिक विवाह, अंतर-जातीय विवाह, बाल विवाह का उन्मूलन और विधवा पुनर्विवाह शामिल हैं।
- साथ ही सत्य शोधक समाज की स्थापना निम्न जाति, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति को शिक्षा देने तथा समाज की शोषक परंपरा से अवगत कराने के उद्देश्य से की गई थी।
विगत वर्षों के प्रश्नसत्य शोधक समाज ने किसे संगठित किया: (2016) (a) बिहार में आदिवासियों के उत्थान के लिये एक आंदोलन उत्तर: (c) |