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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आकाश गंगाओं के एक नए सुपरक्लस्टर की खोज

  • 15 Jul 2017
  • 8 min read

संदर्भ
गौरतलब है कि भारतीय खगोलविदों के एक समूह ने आकाशगंगाओं के एक बड़े सुपरक्लस्टर की खोज की है| इस सुपरक्लस्टर का नाम ‘सरस्वती’ रखा गया है| यह सुपरक्लस्टर पृथ्वी से 4 बिलियन प्रकाश वर्ष दूर है तथा यह लगभग 600 मिलियन प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित ‘ग्रेट वाल’ तक फैला हुआ है| इस प्रकार यह अब तक खोजे गए तथा सबसे दूर स्थित सुपरक्लस्टरों में से एक है| 

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि आकाशगंगाओं के पहले सुपरक्लस्टर (द शाप्ले सुपरक्लस्टर) की खोज वर्ष 1989 तथा दूसरे(द स्लोअन ग्रेट वाल) की खोज वर्ष 2003 में की गई थी| मिल्की वे आकाशगंगा लानाकेआ सुपरक्लस्टर(Laniakea Supercluster) का भाग है| लानाकेआ सुपरक्लस्टर की खोज वर्ष 2014 में की गई थी|
  • पहली बार ऐसे सुपरक्लस्टर की खोज की गई है जो पृथ्वी से अत्यधिक दूरी(600 मिलियन प्रकाश वर्ष) पर है| शाप्ले क्लस्टर भी इसकी तुलना में लगभग 8-10 गुना नज़दीक है| 
  • प्रोफेसर रायचौधरी शाप्ले नामक सुपरक्लस्टर की खोज करने वाली टीम का हिस्सा थे| इसका नाम अमेरिकी खगोलविद हरलो शाप्ले के नाम पर रखा गया है| प्रायः आकाशगंगाओं का नाम नदियों के नाम पर रखा जाता है| मिल्की वे को ‘आकाश गंगा’ कहा जाता है| अतः इस सुपरक्लस्टर का नाम प्राचीन नदी ‘सरस्वती’ के नाम पर रखा गया है| प्रोफेसर रायचौधरी ने 15 वर्ष पूर्व इस क्षेत्र का अध्ययन करना प्रारंभ किया तथा उन्होंने दो क्लस्टरों को काफी नज़दीक पाया| उन्हें संदेह था कि ये क्लस्टर किसी बड़े समूह का हिस्सा है|
  • ब्रह्मांड की संरचना पदार्थ का समांगी वितरण नहीं है| यह आकाशगंगाओं से घिरा है जो क्लस्टरों का निर्माण करती हैं| इसके पश्चात् ये क्लस्टर आपस में मिलकर सुपरक्लस्टर बनाते हैं| आकाशगंगाओं को एक-दूसरे से जोड़ने के लिये पतले तंतु होते हैं जो कॉस्मिक वेब का निर्माण करते हैं| आकाशगंगाओं के मध्य स्थान भी उपस्थित होता है|
  • वर्तमान मत यह है कि इन तंतुओं में शिशु आकाशगंगाओं का निर्माण होता है तथा इसके पश्चात वे तंतुओं के प्रतिच्छेदन की ओर गमन करती हैं, जहाँ पर इनका विकास होता है| परन्तु ‘सरस्वती’ सुपरक्लस्टर की अवधारणा इसके विपरीत है| अतः इस मत को चुनौती दी जा सकती है| ‘सरस्वती’ सुपरक्लस्टर का निर्माण काफी समय पूर्व हो चुका है अतः इस प्रकार की  बड़ी संरचना का निर्माण कठिन हो सकता है|
  • 4 बिलियन प्रकाश वर्ष की दूरी पर सुपरक्लस्टरों के निर्माण का अवलोकन करने के लिये प्रेक्षक 4 बिलियन वर्ष पूर्व का अवलोकन करते हैं| 
  • प्रकाश वर्ष, प्रकाश द्वारा एक वर्ष में तय की जाने वाली दूरी को कहा जाता है| ब्रह्मांड 13.8 बिलियन वर्ष पुराना है| अतः इस खोज से स्पष्ट हुआ कि इस प्रकार की बड़ी संरचना उस समय भी विद्यमान थी, जब ब्रह्मांड मात्र 10 बिलियन वर्ष पुराना था| इस प्रकार ब्रह्मांड की बड़ी संरचनाओं और स्वरूप के विषय में कई प्रश्न उठ खड़े हुए हैं|
  • ब्रह्मांड की संरचना की व्याख्या करने के लिये डार्क मैटर(Dark matter) और डार्क एनर्जी(dark energy )का उपयोग किया जाता है| डार्क मैटर बड़ा होने के कारण ब्रह्मांड को एक साथ संगठित करता है जबकि डार्क एनर्जी इसके आस-पास के स्थान में मौजूद रहती है| इन दो प्रभावों का संतुलन ही ब्रह्मांड को वर्तमान अवस्था में बनाए रखने में सहायता करता है| 
  • प्रोफेसर रायचौधरी के अनुसार, सिद्धांतों को व्यावहारिकता के आधार पर ही समझा जा सकता है| यह सत्य है कि डार्क मेटर और डार्क एनर्जी के मध्य संतुलन स्थापित होने से बड़ी संरचनाओं का निर्माण अवश्य हो सकता है परन्तु इस आकार का सुपरक्लस्टर एक पहेली ही है|

आकाशगंगा क्लस्टर क्या हैं? ये कितने बड़े हैं?
आकाशगंगाएँ ब्रह्मांड की निर्माण इकाईयाँ हैं जिनमें बड़ी संख्या में तारे विद्यमान होते हैं| आकाशगंगा समूहों में 3-20 आकाशगंगाएं हो सकती हैं तथा इनकी प्रचुर संरचना को ‘क्लस्टर’ कहा जाता है| आकाशगंगा क्लस्टर में सैकड़ों आकाशगंगाएँ होती हैं|

सुपरक्लस्टर क्या हैं?
सुपरक्लस्टर ‘क्लस्टरों के क्लस्टर’(cluster of clusters) हैं| इसमें कम से कम दो क्लस्टर हो सकते हैं|

सरस्वती में 42 सुपरक्लस्टर हैं| क्लस्टर डार्क मैटर के तंतुओं और चादरों से जुड़े होते हैं तथा इनमें आकाशगंगाएँ होती हैं| सर्वप्रथम शाप्ले सुपरक्लस्टर की खोज की गई थी|

सरस्वती सुपरक्लस्टर की तुलना मिल्की वे से कैसे की जाती है?
हाल ही में खोजा गया सरस्वती सुपरक्लस्टर पृथ्वी से 600 मिलियन प्रकाश वर्ष की दूरी पर है| मिल्की वे पृथ्वी से तकरीबन 1,50,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है|

सरस्वती सुपरक्लस्टर आकाश में कहाँ पर है?
सरस्वती सुपरक्लस्टर स्लोअन डिजिटल स्काई सर्वेक्षण की पट्टी 82(stripe 82) में है| यह पृथ्वी से 4,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है| यह मीन राशि के तारामंडल पर स्थित है|

स्लोअन डिजिटल स्काई सर्वे(SDSS) का ‘स्ट्रिप 82’ क्या है?
स्लोअन डिजिटल स्काई सर्वे एक महत्वकांक्षी योजना है जिसके माध्यम से ब्रह्मांड का डिजिटली त्रिविमीय प्रतिचित्रण किया जा रहा है| इस योजना के तीसरे चरण में स्लोअन डिजिटल स्काई सर्वे ने उत्तरी आकाशगंगाओं(जो 75,00 वर्ग डिग्री में फैला हुआ है) तथा दक्षिणी आकाशगंगाओं(740 वर्ग डिग्री) का प्रतिचित्रण किया| इनके मध्य की पट्टी को ‘स्ट्रिप 82’ कहा जाता है|

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