सांगली की हल्दी को मिला जीआई टैग | 30 Jun 2018
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय पेटेंट कार्यालय ने महाराष्ट्र स्थित सांगली की हल्दी को ज्यॉग्राफिकल इंडेक्स (जीआई) रैकिंग प्रदान की। सांगली में हल्दी की खेती करने वाले किसान लंबे समय से ‘सांगली ची हलद’ यानी सांगली की हल्दी को जीआई टैग देने की मांग कर रहे थे।
जीआई टैग का लाभ
इस उपलब्धि के चलते सांगली की हल्दी को ‘सांगली’ ब्रांड के नाम से पूरे भारत के साथ-साथ विदेश में भी बेचा जा सकेगा। कोई भी अन्य संस्थान, कंपनी अथवा व्यक्ति ‘सांगली हलद’ के नाम से इसकी बिक्री नहीं कर सकेगा। इसे अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में सांगली ब्रांड के नाम से पहचान प्राप्त होगी।
सांगली की हल्दी
- यह फसल यहाँ के किसानों के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
- माना जाता है कि सांगली के किसानों द्वारा लगभग 200 साल पहले हल्दी के उत्पादन तथा भंडारण का एक विशिष्ट तरीका खोजा गया था।
- इस तरीके के तहत किसान हल्दी को ज़मीन के नीचे काफ़ी गहराई में दबा देते थे ऐसा करने से ऑक्सीजन हल्दी तक नहीं पहुँच पाती थी तथा शीघ्र ख़राब भी नहीं होती थी।
- इस तकनीक के प्रयोग से न केवल हल्दी की पैदावार में वृद्धि हुई बल्कि इसकी गुणवत्ता तथा स्वाद में भी वृद्धि हुई जिसके कारण यह पूरे भारत में प्रसिद्ध हो गई।
सांगली
सांगली महाराष्ट्र के प्रमुख शहरों में से एक है। यह शहर पश्चिम-दक्षिण महाराष्ट्र में कृष्णा नदी के तट पर अवस्थित है। यह शहर पूर्व में सांगली राज्य (1761-1947) की राजधानी था। इसके आस-पास का क्षेत्र कृषि उत्पादन के लिये प्रसिद्ध है। यहाँ की मुख्य फसलें ज्वार, गेहूं तथा दलहन हैं। अंगूर भी इस क्षेत्र में विशेष रूप से उगाई जाती है तथा इसका भी एक बड़ा बाज़ार है। गन्ना इस क्षेत्र की मुख्य सिंचित फसल है जिसने कई चीनी मिलों के विकास में सहायता की है।
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⇒ भारत के विकास में जीआई टैग की भूमिका
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