70 वर्षों बाद देखा गया रेत साँप। | 31 Jul 2017

संदर्भ
वन्यजीव जीवविज्ञानियों ने आंध्र प्रदेश के शेशाचलम के वनों में एक रेत सर्प (Sand Snake) को 70 वर्षों के बाद देखा है। इस क्षेत्र पर और अधिक शोध से कई ऐसी दुर्लभ और नई प्रजातियों की खोज की जा सकती है। 

रेत सर्प की विशेषताएँ 

  • इसका नाम सैम्मोफिस कैंडनरौस ( Psammophis Condanarus ) है। 
  • यह सर्प एक चिकनी और चमकदार शरीर वाली प्रजाति का है। 
  • इसका सिर काफी बड़ा है। 
  • इसकी लंबाई लगभग 53 सेंटीमीटर है, जिसमें पूंछ की लंबाई 8 सेंटीमीटर है। 
  • यह सामान्य ज़हरीला प्रकृति का होता है।  

प्राप्ति स्थान 

  • यह सर्प व्यापक रूप से पूर्वी, उत्तरी और मध्य भारत में, हिमालय की तलहटी, बंगाल, गंगा के मैदानों, पाकिस्तान सहित उत्तर-पश्चिमी शुष्क रेगिस्तानी क्षेत्रों और दक्कन  पठार के उत्तरी भागों में पाया जाता है, लेकिन यह दक्षिण भारत में नहीं देखा जाता है।

अन्य प्रमुख बिंदु 

  • ‘जर्नल ऑफ थ्रेतेंड टैक्सा’ (Journal of Threatened Taxa) के नवीनतम अंक में यह शोध लेख प्रकाशित किया गया है। 
  • सबसे पहले 1943 में, एस. अली ने पश्चिमी घाट में मैसूर पठार से सटे बांदीपुर से एक छोटे पंजे वाले ईगल के पेट से बरामद एक नमूने के आधार पर इसकी प्रजातियों की सूचना दी थी। 
  • नागार्जुन सागर रेसर, गूटी  बड़ी मकड़ी,  पीला जंगली सर्प, भूरा बेल सर्प, पतला मूंगा सर्प, कवच पूंछ वाला सर्प आदि अन्य कई प्रजातियाँ शेशाचलम वास की जैव विविधता समृद्धि की गवाह हैं।