भारतीय राजनीति
चुनावी बॉण्ड की बिक्री
- 25 Aug 2020
- 6 min read
प्रिलिम्स के लियेचुनावी बॉण्ड योजना मेन्स के लियेचुनावी बॉण्ड से संबंधित विभिन्न मुद्दे |
चर्चा में क्यों
केंद्र सरकार अक्तूबर-नवंबर 2020 में बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चुनावी बॉण्ड की बिक्री की अनुमति दे सकती है।
प्रमुख बिंदु
- चुनावी बॉण्ड योजना, 2018 को 2 जनवरी 2018 को आधिकारिक गजट में अधिसूचित किया गया था जिसमें समय-समय पर चुनावी बॉण्ड जारी करने संबंधी प्रावधान किये गए हैं।
- चुनावी बॉण्ड राजनीतिक दलों को दान देने हेतु एक वित्तीय साधन है।
- चुनावी बॉण्ड बिना किसी अधिकतम सीमा के 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख और 1 करोड़ के गुणकों में जारी किये जाते हैं।
- भारतीय स्टेट बैंक इन बॉण्डों को जारी करने और भुनाने (Encash) के लिये अधिकृत बैंक है, ये बॉण्ड जारी करने की तारीख से पंद्रह दिनों तक वैध रहते हैं।
- यह बॉण्ड एक पंजीकृत राजनीतिक पार्टी के निर्दिष्ट खाते में प्रतिदेय होता है।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 (A) के अंतर्गत पंजीकृत प्रत्येक पार्टी और हालिया लोकसभा या राज्य चुनाव में कम-से-कम 1% मत हासिल करने के बाद भारत निर्वाचन आयोग द्वारा एक सत्यापित खाता आवंटित किया जाता है।
- चुनावी बॉण्ड का लेन-देन केवल इसी खाते के माध्यम से किया जा सकता है।
- बॉण्ड किसी भी व्यक्ति (जो भारत का नागरिक है या भारत में शामिल या स्थापित है) द्वारा जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि हेतु खरीद के लिये उपलब्ध होते हैं, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया है।
- एक व्यक्ति या तो अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से बॉण्ड खरीद सकता है।
- बॉण्ड पर दाता के नाम का उल्लेख नहीं किया गया है।
- आम चुनावों के दौरान केंद्र सरकार इन बॉण्डों की बिक्री के लिये तीस दिनों की अतिरिक्त अवधि निर्दिष्ट कर सकती है।
- ऐसे कुछ अवसर आए हैं जब सरकार ने इन बॉण्डों को जारी करने के लिये निर्दिष्ट आवधिकता से विचलन किया है।
- उदाहरण के लिये- 1-10 नवंबर 2018 से चुनावी बॉण्ड की छठी किश्त जारी की गई और वर्ष 2019 के आम चुनावों के दौरान मार्च, अप्रैल और मई के महीनों में चुनावी बॉण्ड बेचे गए।
विवादास्पद स्थिति:
- हालाँकि पारंपरिक व्यवस्था के अंतर्गत जो भी चुनावी चंदा मिलता था वह मुख्यतः नकद में दिया जाता था, जिससे काले धन की संभावना काफी बढ़ जाती थी। परंतु चूँकि वर्तमान प्रणाली के अंतर्गत चुनावी बॉण्ड केवल चेक या ई-भुगतान के माध्यम से ही खरीदा जा सकता है, जिससे काले धन की संभावना कम होती है हालाँकि यह भी अधिक विवादास्पद है।
- अनामिता:
- न तो दान देने वाला (जो एक व्यक्ति या एक कॉर्पोरेट हो सकता है) और न ही राजनीतिक दल यह बताने के लिये बाध्य है कि दान किससे आता है।
- वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि जिन राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से दान मिला है उन्हें भारत निर्वाचन आयोग को विवरण प्रस्तुत करना होगा।
- यह व्यवस्था राजनीतिक जानकारी की स्वतंत्रता के मौलिक संवैधानिक सिद्धांत की अवहेलना करती है जो संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (A) का एक अनिवार्य तत्त्व है।
- न तो दान देने वाला (जो एक व्यक्ति या एक कॉर्पोरेट हो सकता है) और न ही राजनीतिक दल यह बताने के लिये बाध्य है कि दान किससे आता है।
- वित्तीय अपारदर्शिता:
- यह राजनीतिक वित्त में पारदर्शिता के मूल सिद्धांत की अवहेलना करता है क्योंकि यह सार्वजनिक जांच, कॉर्पोरेट्स और संपत्ति की पहचान छिपाने में मदद करती है।
- असममित अपारदर्शिता:
- सरकार हमेशा यह जानने की स्थिति में है कि दाता कौन है क्योंकि बॉण्ड केवल SBI के माध्यम से खरीदे जाते हैं।
- काले धन का माध्यम:
- कोई भी विक्षुब्ध, खत्म हो रही कंपनी या शैल कंपनियां किसी राजनीतिक पार्टी को गुमनाम रूप से असीमित राशि दान कर सकती हैं, जो उन्हें व्यापार के लिये एक सुविधाजनक मार्ग (Channel) दे सकती हैं,
आगे की राह
- भ्रष्टाचार के दुष्चक्र को तोड़ने और लोकतांत्रिक राजनीति की गुणवत्ता के क्षरण को रोकने के लिये साहसिक सुधारों के साथ-साथ शासन प्रणाली और राजनीतिक वित्तपोषण के प्रभावी विनियमन को ठीक करने की आवश्यकता है। संपूर्ण शासन तंत्र को अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाने के लिये मौजूदा कानूनों में खामियों को दूर करना महत्त्वपूर्ण है।
- ऐसे मतदाता जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है जो भारत के नागरिकों को परिवर्तन की मांग करने के लिये प्रेरित कर सकें। यदि मतदाता उन उम्मीदवारों और पार्टियों को अस्वीकार करना प्रारंभ कर देंगे जो अतिव्यय करते हैं या उन्हें रिश्वत देते हैं तो देश का लोकतंत्र स्वयं ही एक स्तर और ऊपर उठ जाएगा।