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सामाजिक न्याय

सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करना महिलाओं का मौलिक अधिकार

  • 19 Jul 2018
  • 5 min read

संदर्भ

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महिलाओं को केरल के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने और बगैर किसी भेदभाव के पुरुषों की तरह पूजा-अर्चना करने का संवैधानिक अधिकार है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पाँच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि यदि कोई कानून नहीं भी हो, तब भी मंदिर में पूजा-अर्चना करने के मामले में महिलाओं से भेदभाव नहीं किया जा सकता। मासिक धर्म के कारण प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने के लिये एक महिला को उसके अधिकार से वंचित करना अनुचित है|

प्रमुख बिंदु 

  • संविधान पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें 10-50 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध के देवस्वोम बोर्ड के फैसले को चुनौती दी गई है।  
  • न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की सदस्यता वाली पीठ ने कहा, “जब कोई पुरुष मंदिर में प्रवेश कर सकता है तो महिला क्यों नहीं प्रवेश कर सकती। मंदिर में पुरुषों के प्रवेश को छूट मिल सकती है तो महिलाओं पर यह नियम क्यों नहीं लागू हो सकता।“
  • मुख्य न्यायाधीश ने कहा, सबरीमाला मंदिर समेकित निधि से धन अर्जित करता है  जिसमें पूजा-अर्चना के लिये दुनिया भर से आ रहे लोगों का योगदान होता है, अतः यह "पूजा का सार्वजनिक स्थल है"।
  • न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ” पूजा के संबंध में मासिक धर्म की प्रासंगिकता क्या है, इसका पूजा से कुछ लेना-देना नहीं है और ऐसे किसी भी प्रतिबंध की अनुमति नहीं दी जा सकती है। आपका संवैधानिक अधिकार राज्य (केरल) कानून के तहत अधिकार पर निर्भर नहीं है। जब आप कहते हैं कि महिलाएँ ईश्वर या प्रकृति द्वारा निर्मित हैं, तो मासिक धर्म के आधार पर कोई प्रतिबंध नहीं हो सकता।“ 
  • न्यायमूर्ति रोहिंग्टन नरीमन ने कहा, “संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत अधिकार को सुसंगत बनाना होगा। इस अधिकार पर कोई अनचाहे प्रतिबंध नहीं हो सकते।“
  • सीजेआई ने कहा, “मंदिर और पूजा में प्रवेश करने के अधिकार के कई पहलू हैं। कोई कह सकता है कि एक व्यक्ति केवल एक बिंदु तक मंदिर के अंदर जा सकता है और देवता के पास नहीं जा सकता जहाँ पुजारी प्रवेश करते हैं। लेकिन मंदिर में प्रवेश पर कोई प्रतिबंध नहीं हो सकता है|
  • याचिकाकर्त्ताओं के लिये वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने तर्क दिया कि "धर्म आपके और आपके ईश्वर के बीच एक रिश्ता है।"
  • पूजा करने वाली महिला के रूप में आपका अधिकार कानून पर भी निर्भर नहीं है। यह आपका संवैधानिक अधिकार है। किसी मंदिर में प्रवेश करने के प्रतिरोध का अधिकार किसी को नहीं है|

पृष्ठभूमि 

  • सबरीमाला मंदिर में परंपरा के अनुसार, 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है| मंदिर ट्रस्ट के अनुसार, यहाँ 1500 साल से महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है| इसके लिये कुछ धार्मिक कारण बताए जाते हैं|
  • केरल के यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने इस प्रतिबंध के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 2006  में पीआईएल दाखिल की थी| 
  • सबरीमाला मंदिर में हर साल नवंबर से जनवरी तक श्रद्धालु अयप्पा भगवान के दर्शन के लिये जाते हैं, इसके अलावा पूरे साल यह मंदिर आम भक्तों के लिये बंद रहता है। भगवान अयप्पा के भक्तों के लिये मकर संक्रांति का दिन बहुत खास होता है, इसीलिये उस दिन यहाँ सबसे ज़्यादा भक्त पहुँचते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (विष्णु जी का एक रूप) का पुत्र माना जाता है। 
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