रूस का परमाणु-संचालित आइसब्रेकर | 26 Nov 2022
प्रिलिम्स के लिये:आर्कटिक परिषद, जलवायु परिवर्तन, आर्कटिक क्षेत्र, भारत की आर्कटिक नीति। मेन्स के लिये:भारत की आर्कटिक नीति। भारत के लिये आर्कटिक का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रूस ने ध्वजारोहण समारोह में अपनी आर्कटिक शक्ति का प्रदर्शन किया और दो परमाणु-संचालित आइसब्रेकर के लिये डॉक लॉन्च किया, जो पश्चिमी आर्कटिक में साल भर नेविगेशन सुनिश्चित करेगा।
आइसब्रेकर का महत्त्व:
- ‘महान आर्कटिक शक्ति’ के रूप में रूस की स्थिति को मज़बूत करना:
- यह "महान आर्कटिक शक्ति" के रूप में रूस की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिये घरेलू आइसब्रेकरों को नए रूप से आकार देने, सुविधाओं से लैस करने और पुनर्स्थापित करने के लिये रूस द्वारा बड़े पैमाने पर किये जाने वाले व्यवस्थित कार्य का हिस्सा है।
- पिछले दो दशकों में रूस ने कई सोवियत काल के आर्कटिक सैन्य ठिकानों को फिर से सक्रिय किया है और अपनी क्षमताओं को उन्नत किया है।
- यह "महान आर्कटिक शक्ति" के रूप में रूस की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिये घरेलू आइसब्रेकरों को नए रूप से आकार देने, सुविधाओं से लैस करने और पुनर्स्थापित करने के लिये रूस द्वारा बड़े पैमाने पर किये जाने वाले व्यवस्थित कार्य का हिस्सा है।
- आर्कटिक क्षेत्र का अध्ययन करना:
- रूस के लिये आर्कटिक का अध्ययन और विकास करना, इस क्षेत्र में सुरक्षित, स्थायी नेविगेशन सुनिश्चित करना एवं उत्तरी समुद्री मार्ग के साथ यातायात बढ़ाना आवश्यक है।
- एशिया पहुँचने में लगने वाले समय में कमी:
- इस सबसे महत्त्वपूर्ण परिवहन गलियारे के विकास से रूस को अपनी निर्यात क्षमता को पूरी तरह से उपयोग करने और दक्षिण-पूर्व एशिया सहित कुशल लॉजिस्टिक मार्ग स्थापित करने की अनुमति मिलेगी।
- रूस के लिये उत्तरी समुद्री मार्ग के खुलने से स्वेज़ नहर के माध्यम से वर्तमान मार्ग की तुलना में एशिया तक पहुँचने में दो सप्ताह तक का समय कम हो जाएगा।
आर्कटिक क्षेत्र का महत्त्व:
- आर्थिक महत्त्व:
- आर्कटिक क्षेत्र में कोयले, जिप्सम और हीरे के समृद्ध भंडार के साथ ही जस्ता, सीसा, सोना एवं क्वार्ट्ज के पर्याप्त भंडार मौजूद हैं। अकेले ग्रीनलैंड में ही विश्व के दुर्लभ मृदा तत्त्व भंडार का लगभग एक-चौथाई भाग मौजूद है।
- ज़्यादातर तटवर्ती स्रोतों से आर्कटिक पहले से ही दुनिया को लगभग 10% तेल और 25% प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करता है। इसके पास पृथ्वी के तेल एवं प्राकृतिक गैस भंडार का 22% का वह हिस्सा होने का भी अनुमान है जिसकी अभी खोज भी नहीं की गई है।
- भौगोलिक महत्त्व:
- आर्कटिक विश्व भर में ठंडे और गर्म जल को स्थानांतरित कर विश्व की महासागरीय धाराओं को प्रवाहित करने में मदद करता है।
- इसके अलावा आर्कटिक समुद्री बर्फ ग्रह के शीर्ष पर एक विशाल श्वेत परावर्तक के रूप में कार्य करता है जो सूर्य की कुछ किरणों को अंतरिक्ष में परावर्तित कर देता है, जिससे पृथ्वी को एक समान तापमान पर रखने में मदद मिलती है।
- सामरिक महत्त्व:
- जलवायु परिवर्तन के कारण आर्कटिक के सामरिक महत्त्व में अधिक वृद्धि हो रही है क्योंकि पिघलती बर्फ की चादर नए समुद्री मार्ग का निर्माण करती है।
- आर्कटिक और इसके आसपास के राज्य आर्कटिक के पिघलने से होने वाले लाभ अर्जित करने हेतु तैयार रहने के प्रयास में अपनी क्षमता में सुधार करने के लिये प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं।
- उदाहरण के लिये उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) इस क्षेत्र में नियमित अभ्यास करता रहा है।
- चीन, जो खुद को निकट-आर्कटिक राज्य कहता है, ने यूरोप से जुड़ने के लिये एक ध्रुवीय रेशम मार्ग की महत्त्वाकांक्षी योजना की घोषणा की है।
- पर्यावरणीय महत्त्व:
- आर्कटिक और हिमालय हालाँकि भौगोलिक रूप से दूर हैं, लेकिन वे परस्पर जुड़े हुए हैं और सदृश चिंताएँ साझा करते हैं।
- आर्कटिक का पिघलना वैज्ञानिक समुदाय को हिमालय में हिमनदों के पिघलने को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर रहा है। उल्लेखनीय है कि हिमालय को प्रायः 'तीसरा ध्रुव' भी कहा जाता है और उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवों के बाद यह मीठे जल का सबसे बड़ा भंडार है।
आर्कटिक के संबंध में भारत की स्थिति:
- भारत ने वर्ष 2007 से आर्कटिक अनुसंधान कार्यक्रम शुरू किया जिसमें अब तक 13 अभियान चलाए जा चुके हैं।
- मार्च 2022 में भारत ने अपनी पहली आर्कटिक नीति का अनावरण किया जिसका शीर्षक था: 'भारत और आर्कटिक: सतत् विकास के लिये साझेदारी का निर्माण'।
- यह नीति छह स्तंभों का निर्धारण करती है: भारत के वैज्ञानिक अनुसंधान और सहयोग को मज़बूत करना, जलवायु एवं पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक व मानव विकास, परिवहन तथा कनेक्टिविटी, प्रशासन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, आर्कटिक क्षेत्र में राष्ट्रीय क्षमता निर्माण।
- भारत, आर्कटिक परिषद के 13 पर्यवेक्षक देशों में से एक है, यह आर्कटिक में सहयोग को बढ़ावा देने वाला प्रमुख अंतर-सरकारी मंच है।
- आर्कटिक परिषद एक अंतर-सरकारी निकाय है जो आर्कटिक क्षेत्र के पर्यावरण संरक्षण और सतत् विकास से संबंधित मुद्दों पर अनुसंधान को प्रोत्साहित करता है तथा आर्कटिक देशों के बीच सहयोग की सुविधा प्रदान करता है।
आर्कटिक:
- आर्कटिक एक ध्रुवीय क्षेत्र है जो पृथ्वी के सबसे उत्तरी भाग में स्थित है।
- आर्कटिक क्षेत्र के भीतर की भूमि में मौसम के अनुसार बर्फ के अलग-अलग आवरण होते हैं।
- आर्कटिक के अंतर्गत आर्कटिक महासागर, निकटवर्ती समुद्र और अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका), कनाडा, फिनलैंड, ग्रीनलैंड (डेनमार्क), आइसलैंड, नॉर्वे, रूस तथा स्वीडन को शामिल किया जाता है।
आगे की राह
- पृथ्वी का गर्म होना ध्रुवों पर अधिक देखा जा सकता है और आर्कटिक महाद्वीप के संसाधनों को प्राप्त करने की यह दौड़ और तेज़ होने वाली है जिसके कारण आर्कटिक क्षेत्र अगला भू-राजनीतिक हॉटस्पॉट बन सकता है, जिसमें पर्यावरण, आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य हित शामिल हैं।
- भारत की आर्कटिक नीति उचित समय पर बनाई गई है और यह भारत के नीति-निर्माताओं को एक दिशा प्रदान करेगी जिससे सभी क्षेत्रों के साथ भारत के संबंधों की रूपरेखा तैयार करने में सहायता मिलेगी।
- बढ़ते हुए पर्यावरणीय प्रभावों को ध्यान में रखते हुए कुशल बहुपक्षीय कार्यों के साथ आर्कटिक क्षेत्र में सुरक्षित और टिकाऊ संसाधन अन्वेषण तथा विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2014)
उपर्युक्त में से कौन 'आर्कटिक परिषद' के सदस्य हैं? (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (d) व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न.1 भारत आर्कटिक क्षेत्र के संसाधनों में गहरी रुचि क्यों ले रहा है? (2018) प्रश्न.2 आर्कटिक सागर में तेल की खोज और इसके संभावित पर्यावरणीय परिणामों का आर्थिक महत्त्व क्या है? (2015) |