सांसदों के निलंबन के संबंध में नियम | 30 Jul 2022
प्रिलिम्स के लिये:संसद सदस्यों का निलंबन, संसद के सदनों से संबंधित प्रावधान मेन्स के लिये:सांसदों के निलंबन के नियम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लोकसभा ने चार (संसद सदस्य) सांसदों को निलंबित कर दिया और राज्यसभा ने भी 23 सांसदों को निलंबित कर दिया क्योंकि वे सदन की कार्यवाही को बाधित कर रहे थे।
सांसदों द्वारा किया गया व्यवधान:
- राजनीतिक नेताओं और पीठासीन अधिकारियों द्वारा किये गए विश्लेषण के अनुसार, व्यवधान पैदा करने के चार मुख्य कारण हैं:
- महत्त्वपूर्ण मुद्दों को उठाने के लिये सांसदों के पास पर्याप्त समय का न होना।
- सरकार की गैर-जवाबदेही तथा और ट्रेज़री बेंच (मंत्री पक्ष) का प्रतिशोधी रवैया।
- राजनीतिक दलों द्वारा जान-बूझकर राजनीतिक या प्रचार कारणों से अशांति पैदा करना।
- संसदीय कार्यवाही में बाधा डालने वाले सांसदों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की विफलता
सांसदों को कौन निलंबित कर सकता है?
- सामान्य सिद्धांत:
- सामान्य सिद्धांत के अनुसार, यह लोकसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति का कर्तव्य है कि वह व्यवस्था बनाए रखें ताकि सदन सुचारू रूप से चल सके।
- यह सुनिश्चित करने के लिये कि कार्यवाही उचित तरीके से संचालित हो, अध्यक्ष/सभापति को किसी सदस्य को सदन से हटने के लिये मज़बूर करने का अधिकार है।
- प्रक्रिया और आचरण के नियम:
- नियम 373: अध्यक्ष किसी सदस्य के आचरण में गड़बड़ी पाए जाने पर उसे तुरंत सदन से हटने का निर्देश दे सकता है।
- जिन सदस्यों को हटने का आदेश दिया गया है वे तुरंत ऐसा करेंगे और शेष दिन की बैठक के दौरान अनुपस्थित रहेंगे।
- नियम 374: अध्यक्ष उस सदस्य का नाम ले सकता है जो अध्यक्ष के अधिकार की अवहेलना करता है या सदन के नियमों का लगातार और जान-बूझकर उल्लंघन कर कार्य में बाधा डालता है।
- इस प्रकार नामित सदस्य को शेष सत्र की अनधिक अवधि के लिये सदन से निलंबित कर दिया जाएगा।
- इस नियम के अधीन निलंबित कोई सदस्य सदन से तुरंत हट जाएगा।
- नियम 374A: नियम 374A को दिसंबर 2001 में नियम पुस्तिका में शामिल किया गया था।
- घोर उल्लंघन या गंभीर आरोपों के मामले में अध्यक्ष द्वारा नामित किये जाने पर सदस्य को लगातार पाँच बैठकों या सत्र की शेष अवधि के लिये स्वतः निलंबित हो जाएगा।
- नियम 255 (राज्यसभा): राज्यसभा की प्रक्रिया के सामान्य नियमों के नियम 255 के तहत सदन का पीठासीन अधिकारी संसद सदस्य के निलंबन का आह्वान कर सकता है।
- सभापति इस नियम के अनुसार किसी भी सदस्य को जिसका आचरण उसकी राय में सही नहीं था या उच्छृंखल था निर्देश दे सकता है।
- नियम 256 (राज्यसभा): यह सदस्यों के निलंबन का प्रावधान करती है।
- सभापति किसी सदस्य को शेष सत्र से अनधिक अवधि के लिये परिषद की सेवा से निलम्बित कर सकता है।
- नियम 373: अध्यक्ष किसी सदस्य के आचरण में गड़बड़ी पाए जाने पर उसे तुरंत सदन से हटने का निर्देश दे सकता है।
निलंबन की शर्तें:
- निलंबन की अधिकतम अवधि शेष सत्र के लिये है।
- निलंबित सदस्य कक्ष में प्रवेश नहीं कर सकते हैं या समितियों की बैठकों में शामिल नहीं हो सकते हैं।
- वे चर्चा या प्रस्तुत करने के लिये नोटिस देने के पात्र नहीं होंगे।
- वह अपने प्रश्नों का उत्तर पाने का अधिकार खो देता है।
न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप:
- संविधान का अनुच्छेद 122 कहता है कि संसदीय कार्यवाही पर अदालत के समक्ष सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
- हालाँकि अदालतों ने विधायिका के प्रक्रियात्मक कामकाज में हस्तक्षेप किया है, जैसे-
- महाराष्ट्र विधानसभा ने अपने 2021 के मानसून सत्र में 12 भाजपा विधायकों को एक साल के लिये निलंबित करने का प्रस्ताव पारित किया।
- यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के सामने आया, जिसने माना कि मानसून सत्र के शेष समय के बाद भी प्रस्ताव कानून में अप्रभावी था।
आगे की राह
- प्रचार या राजनीतिक कारणों से नियोजित संसदीय अपराधों और जान-बूझकर गड़बड़ी से निपटना मुश्किल है।
- इसलिये विपक्षी सदस्यों को संसद में रचनात्मक भूमिका निभानी चाहिये और उन्हें अपने विचार रखने तथा सम्मानजनक तरीके से खुद को व्यक्त करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
- जान-बूझकर व्यवधान और महत्त्वपूर्ण मुद्दे को उठाने के बीच संतुलन बनाने की ज़रूरत है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रारंभिक परीक्षाप्रश्न: लोकसभा अध्यक्ष के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: B व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही उत्तर है। मुख्य परीक्षा:Q भारतीय संविधान में संसद के दोनों सदनों का संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान है। उन अवसरों को गिनाइये जब सामान्यतः ऐसा किया जाता है और उन अवसरों को भी जब ऐसा नहीं किया जा सकता और इसका कारण भी बताइये। (2017) |