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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

जीएम सरसों के वाणिज्यिक उत्पादन को चुनौती

  • 01 Aug 2017
  • 4 min read

संदर्भ

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि आनुवांशिक रूप से संवर्धित (जीएम) सरसों के बीज के वाणिज्यिक उत्पादन करने के सरकार के निर्णय को चुनौती दी जा सकती है। ऐसी नीति को न्यायिक जाँच के दायरे से गुजरना होगा।

प्रमुख बिंदु 

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि अगर सरकार जीएम सरसों के बीज को बाज़ार में ज़ारी करने के पक्ष में नीति बनाती है तो अदालत उसके स्वास्थ्य संबंधी खतरों पर प्रकाश डालने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। 
  • गौरतलब है कि सरकार सितंबर 2017 तक जीएम सरसों के वाणिज्यिक उत्पादन के लिये एक नीतिगत निर्णय ले सकती है।

बुवाई से पहले सुनवाई 

  • अदालत ने कहा कि अगर सरकार की नीति जीएम बीजों की व्यावसायिक रिहाई के पक्ष में है तो इस मामले की सुनवाई अक्टूबर से शुरू होगी।
  • पिछली सुनवाई में अदालत ने सरकार से कहा था कि वह जीएम सरसों के किसी भी परियोजना या इसकी व्यावसायिक रिहाई करने से पहले भविष्य में इसके पड़ने वाले प्रभावों के बारे में जानने की पहल स्वयं करे।
  • सरकार ने तब प्रतिक्रिया दी थी कि जीएम सरसों के बारे में जनता और वैज्ञानिक निकायों से बड़ी संख्या में प्राप्त हुए अभ्यावेदनों के बारे में चर्चा और अध्ययन चल रहे हैं और इस बारे में कोई अंतिम निर्णय लेने के बाद ही आनुवांशिक रूप से संवर्धित बीजों का रोपण शुरू होगा। 

क्या होती हैं जीएम फसलें ?

  • फसलों की उत्पादकता और प्रतिरोधकता को बढ़ाने के लिये तकनीक से किसी सजीव के जीन को दूसरे सजीव में प्रतिस्थापित किया जाता है। 
  • इस तकनीक का इस्तेमाल कर फसलों की सूखे और अन्य प्राकृतिक आपदाओं से लड़ने वाली किस्में तैयार जाती हैं।
  • जीएम सरसों एक इसी तरह की फसल प्रजाति है, जिसे आनुवांशिक रूप से रूपांतरित कर कीट प्रतिरोधी और अधिक पैदावार वाली प्रजाति  तैयार की गई है।
  • वर्तमान में विश्व के अनेक देशों में जीएम फसलें उगाई जा रही हैं। उनमें से 90 फीसदी खेती मात्र छह देशों- अमेरिका, ब्राज़ील, कनाडा, अर्जेन्टीना, चीन और भारत में ही की जा रही हैं।
  • सोयाबीन, मक्का, कपास और सरसों ही मुख्य रूप से जीएम फसलों के रूप में उगाई जा रही हैं।

विवाद क्यों 

  • जीएम फसलों को लेकर अलग- अलग दावे एवं प्रतिदावे हैं। 
  • जहाँ एक तरफ वैज्ञानिक इसकी उच्च उत्पादकता और प्रतिरोधकता का दावा कर रहे हैं,  वहीं सामाजिक कार्यकर्त्ता इससे स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव की ओर ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। 
  • वे इसके व्यापक परीक्षण से पहले इस पर और अध्ययन किये जाने की माँग कर रहे हैं।
  • इस विवाद का दूसरा पहलू आर्थिक भी है। इस पर बड़ी-बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों की नज़र भी है।
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