अमेरिका की वापसी और अफगान शांति वार्ता | 05 Jul 2021
प्रिलिम्स के लिये:अफगानिस्तान और संबंद्ध क्षेत्रों की भौगौलिक अवस्थिति मेन्स के लिये:अमेरिका और तालिबान के मध्य समझौते की शर्तें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी सैनिकों ने 20 वर्ष के लंबे युद्ध के बाद अफगानिस्तान के सबसे बड़े एयरबेस को खाली कर अपने सैन्य अभियानों को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका में हुए आतंकवादी हमलों में लगभग 3,000 लोगों की मृत्यु हुई थी।
- इस्लामिक आतंकवादी समूह अल-कायदा के प्रमुख ओसामा बिन लादेन को इन हमलों के लिये उत्तरदायी ठहराया गया था।
- कट्टरपंथी इस्लामवादी तालिबान, जो कि उस समय अफगानिस्तान पर शासन कर रहा था ने लादेन की रक्षा की और उसे सौंपने से इनकार कर दिया। इसलिये 9/11 हमले के एक महीने बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान के विरुद्ध हवाई हमले (ऑपरेशन एंड्योरिंग फ्रीडम) शुरू कर दिये।
- इसके पश्चात् नाटो गठबंधन ने भी अफगानिस्तान के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी।
- लंबी कार्रवाई के पश्चात् अमेरिका ने तालिबान शासन को उखाड़ फेंका और अफगानिस्तान में एक ट्रांज़ीशनल सरकार की स्थापना की।
अमेरिका की वापसी के कारण
- अमेरिका का मानना है कि तालिबान के विरुद्ध चल रहा यह युद्ध अजेय है।
- अमेरिकी प्रशासन ने वर्ष 2015 में ‘मुरी’ में पाकिस्तान द्वारा आयोजित तालिबान और अफगान सरकार के बीच पहली बैठक के लिये अपना एक प्रतिनिधि भेजा था।
- हालाँकि ‘मुरी’ वार्ता से कुछ प्रगति हासिल नहीं की जा सकी थी।
- दोहा वार्ता: तालिबान के साथ सीधी बातचीत के उद्देश्य से अमेरिका ने अफगानिस्तान के लिये एक विशेष दूत नियुक्त किया। उन्होंने दोहा में तालिबान प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की जिसके परिणामस्वरूप फरवरी 2020 में अमेरिका और विद्रोहियों के बीच समझौता हुआ।
- दोहा वार्ता शुरू होने से पहले तालिबान ने कहा था कि वह केवल अमेरिका के साथ सीधी बातचीत करेगा, न कि काबुल सरकार के साथ, जिसे उन्होंने मान्यता नहीं दी थी।
- अमेरिका ने प्रक्रिया से अफगान सरकार को अलग रखते हुए इस मांग को प्रभावी ढंग से स्वीकार कर लिया और विद्रोहियों के साथ सीधी बातचीत शुरू की।
अमेरिका और तालिबान के मध्य समझौते की शर्तें:
- इस समझौता विवाद के चार प्रमुख पहलू- हिंसा, विदेशी सैनिकों, अंतर-अफगान शांति वार्ता तथा अल-कायदा एवं इस्लामिक स्टेट (IS की एक अफगान इकाई) जैसे आतंकवादी समूहों द्वारा अफगान धरती के उपयोग पर आधारित हैं।
- समझौते के तहत यह तय किया गया था कि अमेरिकी प्रशासन 1 मई, 2021 तक अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों को वापस बुला लेगा।
- लेकिन फिलहाल इस समयसीमा को बढ़ाकर 11 सितंबर, 2021 कर दिया गया है।
- तालिबान ने हिंसा को कम करने, अंतर-अफगान शांति वार्ता में शामिल होने तथा विदेशी आतंकवादी समूहों के साथ अपने सभी संबंधों को समाप्त करने पर सहमति व्यक्त की है।
तालिबान तक भारत की पहुंँच:
- भारत ने दोहा में तालिबान से संपर्क किया।
- यह भारतीय पक्ष की ओर से देर से ही सही लेकिन तालिबान को एक यथार्थवादी स्वीकृति देने का संकेत है कि आने वाले वर्षों में तालिबान अफगानिस्तान में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- तालिबान से वार्ता करने के भारत के तीन महत्त्वपूर्ण हित हैं:
- अफगानिस्तान में अपने निवेश की रक्षा करना, जो अरबों रुपए का है।
- भावी तालिबान शासन को पाकिस्तान का मोहरा बनने से रोकना।
- यह सुनिश्चित करना कि पाकिस्तान समर्थित भारत विरोधी आतंकवादी समूहों को तालिबान का समर्थन न मिले।
- अतीत में भारत ने तालिबान को शामिल नहीं करने का विकल्प चुना (भारत द्वारा नॉर्दन अलायंस का समर्थन किया गया था) और तालिबान के सत्ता में आने पर यह भारत के लिये सही साबित नहीं हुआ।
- नवंबर 2001 में नॉर्दन अलायंस (Northern Alliance) ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर नियंत्रण कर लिया। नॉर्दर्न एलायंस ने तालिबान सरकार के खिलाफ एक रक्षात्मक युद्ध लड़ा जिसे अमेरिका और उन अन्य देशों द्वारा मदद की जा रही थी जो इससे सहमत थे, जिसमें ब्रिटेन भी शामिल था।
अफगानिस्तान के लिये संभावित परिदृश्य:
- अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी ने युद्ध के मैदान में शक्ति संतुलन को बदलते हुए इसे तालिबान के पक्ष में ला दिया है।
- वे पहले से ही बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं औरअमेरिकी सेना के देश से बाहर होने के बाद शहर के केंद्रीय भागों और प्रांतीय राजधानियों को निशाना बनाते हुए एक बड़ा हमला शुरू कर सकते हैं।
- अफगानिस्तान के लिये इसके संभवतः तीन परिदृश्य हो सकते हैं:
- एक राजनीतिक समझौता हो सकता है जिसमें तालिबान और सरकार शक्ति-साझाकरण तंत्र के लिये कुछ हद तक सहमत हो जाएँ तथा संयुक्त रूप से अफगानिस्तान के भविष्य को आकार दें लेकिन फिलहाल यह संभावना बहुत दूर नज़र आ रही है।
- एक चौतरफा गृहयुद्ध संभव हो सकता है, जिसमें आर्थिक रूप से समर्थित और पश्चिमी देशों द्वारा सैन्य रूप से प्रशिक्षित सरकार प्रमुख शहरों में बनी रहेगी तथा तालिबान ग्रामीण इलाकों में अपनी पहुँच का विस्तार करेगा जबकि अन्य जातीय मिलिशिया/लड़ाके समूह अपनी जागीर के लिये लड़ते रहेंगे। यह संभावना पहले से ही पूरी होती नज़र आ रही है।
- पूरे देश पर तालिबान का कब्ज़ा हो सकता है।
निष्कर्ष:
- समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद अमेरिका ने अफगान सरकार पर हज़ारों तालिबानी कैदियों को रिहा करने का दबाव बनाया।
- यह अंतर-अफगान वार्ता शुरू करने के लिये तालिबान की एक प्रमुख शर्त थी।
- तालिबान प्रतिनिधियों और अफगान सरकार के बीच सितंबर 2020 में दोहा (Doha) में बातचीत तो शुरू हुई लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। फिलहाल शांति प्रक्रिया रुकी हुई है।
- तालिबान ने विदेशी सैनिकों के खिलाफ शत्रुता कम कर दी लेकिन समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भी अफगान बलों पर हमला करना जारी रखा।
- काबुल का कहना है कि तालिबान को पाकिस्तान का समर्थन विद्रोहियों को सैन्य दबाव से उबरने और अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद कर रहा है।