एथिक्स
भारत में बढ़ता वैज्ञानिक कदाचार
- 14 Nov 2023
- 8 min read
प्रिलिम्स के लिये:वैज्ञानिक कदाचार, इंडिया रिसर्च वॉचडॉग, भारतीय अनुसंधान में प्रत्यावर्तन, साहित्यिक चोरी, प्रयोगात्मक तकनीकों से जुड़े कदाचार और धोखाधड़ी। मेन्स के लिये:वैज्ञानिक कदाचार, नैतिकता और मानव इंटरफेस: मानव कार्यों में नैतिकता का सार, निर्धारक तथा परिणाम। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
इंडिया रिसर्च वॉचडॉग के एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारतीय शोध में प्रत्यावर्तन की बढ़ती संख्या ने भारत में वैज्ञानिक कदाचार से संबंधित महत्त्वपूर्ण चिंताओं को जन्म दिया है।
वैज्ञानिक कदाचार:
- परिचय:
- वैज्ञानिक कदाचार को वैज्ञानिक अनुसंधान, अध्ययन और प्रकाशन की नैतिकता के स्वीकृत मानकों से विचलन के रूप में वर्णित किया जा सकता है।
- वैज्ञानिक कदाचार के कई रूप हो सकते हैं जैसे- साहित्यिक चोरी, प्रयोगात्मक तकनीकों से जुड़ा कदाचार और धोखाधड़ी।
- जब गलतियों, डेटा निर्माण, साहित्यिक चोरी और कदाचार के अन्य रूपों सहित विभिन्न कारणों से प्रकाशित पत्रों को वैज्ञानिक साहित्य से वापस ले लिया जाता है।
- उदाहरण:
- जब किसी वैज्ञानिक जाँच के नतीजे उन प्रमुख जाँचकर्त्ताओं को श्रेय दिये बिना रिपोर्ट किये जाते हैं जिनका काम इसमें शामिल रहा है।
- वैज्ञानिक धोखाधड़ी, जहाँ लेखक मनगढ़ंत छवियों या डेटा के साथ एक लेख तैयार करता है, जिसे बाद में एक स्वतंत्र निरीक्षण बोर्ड की मंज़ूरी के बिना सहकर्मी-समीक्षित प्रकाशन में प्रस्तुत किया जाता है।
भारत में वैज्ञानिक कदाचार के आँकड़े:
- वैज्ञानिक प्रत्यावर्तन में वृद्धि:
- भारत में वर्ष 2017-2019 के बीच दर्ज संख्या की तुलना में वर्ष 2020-2022 के बीच प्रत्यावर्तन में 2.5 गुना वृद्धि हुई है।
- इसका प्राथमिक कारण कदाचार के रूप में पहचाना जाता है, जहाँ लेखक जान-बूझकर अनैतिक प्रथाओं में संलग्न होते हैं।
- भारत में वर्ष 2017-2019 के बीच दर्ज संख्या की तुलना में वर्ष 2020-2022 के बीच प्रत्यावर्तन में 2.5 गुना वृद्धि हुई है।
- गुणवत्ता में गिरावट के संकेतक:
- अनुसंधान आउटपुट और प्रत्यावर्तन के अनुपात का उपयोग गुणवत्ता के लिये एक प्रॉक्सी के रूप में किया जाता है, जिससे भारत में गिरावट का पता चलता है, जिसके कारण अनुपात लगभग आधा हो जाता है। यह शोध की समग्र गुणवत्ता में संभावित गिरावट का संकेत देता है।
- प्रत्यावर्तन के क्षेत्र:
- इंजीनियरिंग में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो वर्ष 2017-2019 की अवधि में 36% बढ़कर सभी प्रत्यावर्तन का लगभग 48% है।
- इसके अतिरिक्त मानविकी के क्षेत्र में प्रत्यावर्तन में 567% की असाधारण वृद्धि का अनुभव होता है।
- वैज्ञानिक कदाचार में वृद्धि का कारण:
- आधे से अधिक उत्तरदाताओं का मानना है कि वृद्धि के पीछे विश्वविद्यालय रैंकिंग पैरामीटर हैं।
- अन्य 35% ने इसके लिये अनैतिक शोधकर्ताओं को ज़िम्मेदार ठहराया, जबकि 10% ने किसी आरोप की सूचना मिलने पर या किसी अपराधी के 'पकड़े जाने' पर की जाने वाली न्यूनतम कार्रवाई की ओर इशारा किया।
- प्रत्यावर्तन में वृद्धि में योगदान देने वाले अतिरिक्त कारकों में वर्ष 2017 में स्थापित पीएचडी छात्रों के लिये अनिवार्य प्रकाशन की आवश्यकता शामिल है, जिससे संभावित रूप से निम्न-गुणवत्ता वाले प्रकाशन और प्रीडेटरी पत्रिकाओं का प्रसार हो सकता है।
- तत्काल कार्रवाई का आह्वान:
- डेटा को कार्रवाई के लिये एक तत्काल आह्वान के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें भारतीय शिक्षा जगत में अनुसंधान कदाचार की जाँच करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
- अनुसंधान और शिक्षण दोनों पर संभावित परिणामों को लेकर प्रकाश डाला गया है, घटिया या फर्ज़ी अनुसंधान को रोकने के लिये तत्काल हस्तक्षेप का आग्रह किया गया है।
वैज्ञानिक कदाचार के नैतिक निहितार्थ क्या हैं?
- दीर्घकालिक परिणाम:
- पैमाने की परवाह किये बिना वैज्ञानिक कदाचार के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं, खासकर जब किसी क्षेत्र के प्रभावशाली व्यक्ति इसमें शामिल हों।
- शैक्षणिक सत्यनिष्ठा का उल्लंघन:
- साहित्यिक चोरी, डेटा निर्माण और हेर-फेर सहित वैज्ञानिक कदाचार, शैक्षणिक तथा वैज्ञानिक अखंडता का गंभीर उल्लंघन है। यह ईमानदार और पारदर्शी विद्वतापूर्ण जाँच की नींव को कमज़ोर करता है।
- दायित्व एवं विश्वसनीयता पर प्रभाव:
- अनैतिक आचरण वैज्ञानिक निष्कर्षों की विश्वसनीयता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, जिससे अनुसंधान की विश्वसनीयता कम हो जाती है। इससे न केवल व्यक्तिगत शोधकर्त्ताओं की प्रतिष्ठा प्रभावित होती है अपितु समग्र वैज्ञानिक समुदाय की छवि खराब होती है।
- गुणवत्ता एवं शिक्षण की संस्कृति से समझौता:
- अनुसंधान आउटपुट एवं प्रत्यावर्तन के अनुपात में चिंताजनक गिरावट, गुणवत्ता से समझौते का संकेत देती है।
- इससे शिक्षण की संस्कृति कमज़ोर होती है तथा ज्ञान के विस्तार और उन्नति में बाधा उत्पन्न होती है।
आगे की राह
- वैज्ञानिकों ने संस्थागत प्रयासों के अभाव में सहयोगात्मक कार्य की जाँच करने, विश्वसनीय एवं त्रुटिपूर्ण अनुसंधान के बीच अंतर करने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ली है ताकि उनके संपूर्ण कार्य पर सवाल न किये जा सकें।
- हालाँकि इसका एक व्यापक पुनर्मूल्यांकन होना चाहिये, विशेष रूप से जाने-माने वैज्ञानिकों की ओर से। इसकी जटिलता और बेहतर प्रक्रियाओं एवं मानदंडों की आवश्यकता को पहचानते हुए इस आदर्श धारणा को संशोधित किये जाने की आवश्यकता है कि विज्ञान स्वाभाविक रूप से जटिल और स्वयं-सुधार करने वाला है।
- इसमें निरंतर स्व-मूल्यांकन और सुधार को बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी को शामिल करने व प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता है, जिससे इसे 'विशेष' परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया के बजाय एक मानक अभ्यास में बदला जा सके।